जज प्रेस कॉन्फ्रेंस: देश के सर्वोच्च न्यायालय की साख दांव पर
सर्वोच्च न्यायालय के 4 जजों ने प्रेस कॉन्फ्रेंस करके जो बातें कहीं हैं, उस से कई गंभीर संकेत मिल रहे हैं, क्या न्यायपालिका की साख दांव पर लगी हुई है।
New Delhi, Jan 15: देश के सर्वोच्च न्यायालय की साख, आज फिर इंदिरा गांधी काल के वर्ष १९७३ व १९७७ की भाँति, दाँव पर, पहली बार सर्वोच्च न्यायालय के मुख्यन्यायाधीश की कार्यप्रणाली पर ऊँगली उठी है कि वे केंद्र सरकार की और से बैटिंग कर रहे हैं। आज प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव, मुख्यन्यायाधीश के बंगले के गेट से मीडिया को देखकर बिना मिले वापिस लौट गए और प्रचारित किया गया कि मुख्यन्यायाधीश ने मिलने से मना कर दिया। क्या इतने बड़े पद पर विराजमान अधिकारी/प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव बिना पूर्व अनुमति/टाइम लिए मुख्यन्यायाधीश के घर आ जाएँगे, ऐसा कोई सोच भी नहीं सकता। इस देश में क्या मज़ाक़ चल रहा है। न्यायपालिका आज कार्यपालिका के दबाव में है, यदि ऐसा है तो देश का लोकतंत्र ख़तरे में है।
लोकतंत्र में कार्यपालिका व विधायिका के ऊपर न्यायपालिका ही नियंत्रण रखती है, इसीलिए लोकतंत्र में स्वतंत्र न्यायपालिका अत्यंत आवश्यक है। कल प्रेसकॉन्फ़्रेन्स करने वाले चारों न्यायाधीशों को मुख्यन्यायाधीश की कुर्सी से मिलने से रही अर्थात इन चारों न्यायाधीशों ने न्यायिक व्यवस्था के ‘स्वतंत्र अस्तित्व’ को बचाने के लिए अपनी कुर्सी दाँव पर लगा दी है। अब इस समस्या के हल के रूप में निम्न विकल्प ही सम्भव हैं: – यदि ये चारों न्यायाधीशों ग़लत हैं, को इसे सिद्ध करने के लिए मुख्यन्यायाधीश को उनपर लगे आरोपों की जाँच के लिए अपने आप को प्रस्तुत करना चाहिए। या ….
मुख्यन्यायाधीश को अपने क़दम वापिस लेकर अपनी ग़लती का अहसास कर सब कुछ पूर्व व्यवस्था की भाँति restore कर देना चाहिए। या पहले समस्त प्रकरण की निष्पक्ष जाँच प्रतिष्ठावान पूर्व न्यायाधीशों की कमेटी बनाकर करायी जाए और दोनों में से जो भी पक्ष दोषी पाया जाए, उसका/उनका impeachment की कार्यवाही की जाए। चाहे जो भी हो, हर हाल में न्यायपालिका की निष्पक्षता व स्वतंत्रता सुनिश्चहित की जाए, यही भारत के स्वस्थ लोकतंत्र का तक़ाज़ा है नहीं तो जैसा ‘इंदिरा गांधी’ के कार्यकाल में जब वर्ष १९७३ में जस्टिस ए॰एन॰ रे को सर्वोच्च न्यायालय के तीन वरिष्टम न्यायाधीशों को दरकिनार कर मुख्य न्यायाधीश बनाया गया था, जैसे हालात पैदा हो जाएँगे।
उस समय अटल बिहारी बाजपेई ने जस्टिस AN RAY की मुख्य न्यायाधीश के पद पर नियुक्ति को ‘लोकतंत्र के इतिहास में काला दिवस’ कहा था। उसी प्रकार वर्ष १९७७ के आपातकाल में Justice Hans Raj Khanna को supercede कर Justice Mirza Hameedullah Beg को इंदिरा गांधी ने मुख्यन्यायाधीश बना दिया था….. उस समय भी दुनियाभर में देश की बड़ी बदनामी हुई थी। उम्मीद है कि आज फिर देश को ये सब नहीं देखना पड़ेगा और सब कुछ ठीक हो जाएगा….. जो भी मुद्दे सामने आए हैं उनका सर्वमान्य हल खोज लिया जाएगा।