बदले हुए समीकरण में बाबा रामदेव की बेबाकी, कहीं कुछ गुल ना खिला दे

बाबा रामदेव की बेबाकी के कारण सत्ता के गलियारों में उनकी पैठ कुछ कमज़ोर हो गयी है. नतीजतन जो मंत्री -संत्री उनके आगे पीछे घूमते थे, डर के मारे कतराने लगे हैं।

New Delhi, Feb 07 : कोई कुछ भी कहे बाबा रामदेव की एक बात का तो मै वास्तव में कायल हूँ. वो पोंगापंथियों, खासकर ग्रहों – नक्षत्रों और हस्त-रेखाओं के नाम पर लोगों को बेवक़ूफ़ बना रहे पाखंडी धर्मगुरुओं खिलाफ बोलते हैं और खुलकर बोलते हैं. मुझे कई बार उनके आश्रम में जाने का मौका मिला है. तब बाबा इतने बड़े नहीं हुए थे।

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इधर कई साल से उनसे मुलाकात नहीं हुई पर कोई दस बारह साल पहले का मुझे याद है कि उनके आश्रम में पूजा-पाठ का माहौल नहीं रहता था. Baba Ramdev2याद नहीं पड़ता कि उनके आश्रम में पतंजलि के आलावा किसी देवी देवता या किसी और की कोई तस्वीर या मूर्ति लगी रही हो. अब का मुझे नहीं मालूम. कई बार वो मुझे आर्य समाजियों के ज़्यादा करीब लगते थे।

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न मै तब बाबा का भक्त था न अब हूँ – उनकी राजनीतिक सोच का तो मैं घोर विरोधी हूँ. लेकिन कई मित्रों की नाराज़गी का जोखिम उठाते हुए भी कहूंगा कि Baba Ramdevउनकी सादगी, सरलता और बेबाकी से मै प्रभावित ज़रूर था. अब भी हूँ. व्यापारी के रूप में उनकी अपार सफलता के साथ साथ उनकी सादगी और बेबाकी भी सम्मान योग्य है, ऐसा मेरा मानना है।

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इधर सुनने में आया है कि अपनी इसी बेबाकी के कारण सत्ता के गलियारों में उनकी पैठ कुछ कमज़ोर हो गयी है. नतीजतन जो मंत्री -संत्री उनके आगे पीछे घूमते थे, Baba Ramdev1डर के मारे कतराने लगे हैं. हो सकता है कि ये बदले हुए समीकरण आने वाले समय में कुछ गुल खिला दें. कुछ हो या न हो, बाबा की बेबाकी की परीक्षा की घड़ी तो आ ही गयी है…

(वरिष्ठ पत्रकार प्रभात डबराल के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)