समझना मुश्किल है कि सोनिया गांधी अब तक क्यों कतराती रही आमने-सामने दो टूक प्रश्नोत्तर से ?

काश तब भी सोनिया गांधी आज वाली कूटनीतिक भाषा में कहतीं कि उपाध्यक्ष के नाते राहुल दावेदार ज़रूर हैं पर पार्टी का नेतृत्व वे सम्भालेंगे या कोई और, यह तो पार्टी तय करेगी!

New Delhi, Mar 10 : मैं सोनिया गांधी का प्रशंसक नहीं रहा, पर आज अरुण पुरी के साथ उनकी बातचीत सुनते-देखते अच्छा लगा। उन्हें भावहीन और लिखा भाषण पढ़ने वाली नेता कहा जाता है। पर आज इस सम्वाद में वे जितनी सहज, कभी गम्भीर कभी चपल, आक्रामक और आत्मबल से भरी थीं कि सोचने को विवश हुआ हमारे कितने नेता ऐसा सम्वाद कर पाते हैं। समझना मुश्किल है कि वे अब तक कतराती क्यों रहीं आमने-सामने के दो टूक प्रश्नोत्तर से?

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सम्वाद में एक मौक़े पर तो वे प्रश्नकर्ता के ही कान काटने लगीं, sonia Gandhi1जब मोदी के बारे में राय पूछने पर तपाक से मुहावरेदार हिंदी में कहा – सारी रामायण सुनने के बाद आप मुझसे पूछ रहे हैं कि राम और सीता कौन थे?

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और अपने आप को कितना लोकतांत्रिक पेश किया, भविष्य में कांग्रेस को गांधी परिवार से अलग नेतृत्व मिल सकता है, लोकसभा चुनाव लड़ूँगी कि नहीं, यह फ़ैसला तो पार्टी करेगी आदि।
लेकिन पाँच महीने पहले, प्रणब मुखर्जी की आत्मकथा के लोकार्पण के वक़्त, उन्होंने एनडीटीवी को क्या कहा था? कि आप अब तक पूछते रहे हैं न, तो राहुल अब जल्द पार्टी का ज़िम्मा सम्भालने जा रहे हैं। काश तब भी वे आज वाली कूटनीतिक भाषा में कहतीं कि उपाध्यक्ष के नाते राहुल दावेदार ज़रूर हैं पर पार्टी का नेतृत्व वे सम्भालेंगे या कोई और, यह तो पार्टी तय करेगी!

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बहरहाल, सोनिया गांधी का आत्मविश्वास इस सम्वाद में देखते बनता था। sonia-gandhi2और अरुण पुरी भी बड़े सविनय थे। पूर्वोत्तर की ताज़ा हलचल के बावजूद देश की राजनीति में वे किसी करवट की आहट भाँप रहे हैं क्या?

(चर्चित वरिष्ठ पत्रकार ओम थानवी के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)