नमक आंदोलन : जो सियासत को खेल रहे हैं खेलने दो, इतिहास से सबक लेकर मुस्तकविल तय करो
बापू की गिरफ्तारी के बाद नमक आंदोलन की बागडोर मौलाना अबुल कलाम आजाद के हाथ रहा जो दुनिया का सबसे कारगर सिविल नाफरमानी का हिस्सा बना ।
New Delhi, Mar 14 : कैसी कैसी लड़ाइयां लड़ी हैं कांग्रेस ने , दुनिया आज तक उन पर शोध कर रही है । 12 मार्च की अहमियत 9 अगस्त से ज्यादा नही तो कम भी नही है । अंदाज लगाइए कितनी मजेदार लड़ाई की शुरुआत होने जा रही है और लोग जो पहले इस सुन रहे हैं हँस कर हट जाए रहे हैं – यह भी कोई लड़ाई है ?
वायसराय को खबर मिलती है । सर! वह नमक बनाने जा रहा है ।
– नमक? क्या हो जाएगा इससे ? बनाने दो
– सर! कोई राजनीति जरूर होगी
– इसे छेड़ो मत । बनाने दो , कितना बनाएगा ।
12 मार्च 1930
साबरमती आश्रम से दांडी गांव तक यात्रा बहुत दिलचस्प और सियासत की गिरह खोलती चलती तारीख की तारीखों का हिसाब भी देती हैं । यह यात्रा तब शुरू होती है जब देश मे चर्चिल अपनी बिसात पर हिन्दू मुसलमान खेलने लगा था। गांधी जी आरोप लग रहे थे कि यह हिंदुओं के यहां ही रहते हैं वगैरह । गांधी जी इस दांडी मार्च में सैफ़ी विला में ठहरते हैं और सीधा सा जवाब देते हैं – हम वही रुकते हैं जहां बुलाये जाते हैं किसी पर जबरन बोझ नही बनना चाहते ‘ ।
साबरमती से दांडी तक कि दूरी 280 ‘0 किलोमीटर की है । नमक बनाने के बाद गांधी जी कराड़ी गांव में अपने पुराने दोस्त मगन भाई के साथ उनके झोपड़े में अपनी गिरफ्तारी तक रुके । वह झोपड़ी आज भी है बस उसके पत्ते फूस बदल जाते हैं जिससे वह छाया हुआ था । यहीं से गांधी जी को रात में पुलिस ने गिरफ्तार कर दो स्टेशनों के बीच गाड़ी रोक कर उन्हें गुजरात से बाहर ले गई ।
इस नमक आंदोलन ने अंग्रेजी हुकूमत को नंगा कर दिया और केवल एक सतर का बयान है बापू का
जब नमक तक पर टैक्स है तो अंदाज लगाया जा सकता है हिंदुस्तान को किस तरह लूटा जा रहा है ।
डॉ लोहिया का शोध इसी विषय पर रहा ।
बापू की गिरफ्तारी के बाद नमक आंदोलन की बागडोर मौलाना अबुल कलाम आजाद के हाथ रहा जो दुनिया का सबसे कारगर सिविल नाफरमानी का हिस्सा बना ।
गिरते गए , लहूलुहान हुए , पीछे नही हटे , न ही झंडे को झुकने दिया। पांच पांच के जत्थे में कांग्रेस बढ़ती रही , लाठी खाती रही लेकिन तिरंगा नही झुका
अमरीकन पत्रकार इस दर्द को नही बर्दास्त कर सका और समाचार भेजते समय रो पड़ा ।
‘ जिस अंग्रेज को अपनी न्याय व्यवस्था पर नाज था ,आज वह तार तार हो गई ‘ .
मित्रो जो सियासत को खेल रहे हैं खेलने दो इतिहास से सबक लेकर मुस्तकविल तय करो ।