काशी विश्वनाथ मंदिर विस्तारीकरण : चिन्हित क्षेत्र के परिवारों को भी बैठक में बुलाए पीएमओ

पीएमओ इस महत्वाकांक्षी विस्तारीकरण योजना बनाने के पहले पुरातत्वविद, इतिहासकार, वास्तु शिल्प के जानकारो से विचार विमर्श करने जा रहा है।

New Delhi, Mar 17 : काशी विश्वनाथ मंदिर विस्तारीकरण प्रधानमंत्री और काशी के सांसद नरेन्द्र मोदी जी का ड्रीम प्रोजेक्ट है. कुछ दिनों पहले ही इसकी जानकारी मंदिर प्रशासन की ओर से मीडिया के मार्फत मिली. इसी के साथ भाजपा और संघ की इतने अहम संवेदनशील मुद्दे पर चुप्पी के रहस्य का भी खुलासा हो गया. बताने की जरूरत नही कि मोदी जी के सामने किसी की भी बोलने की हिम्मत नही होती.

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सैकडो साल से ज्ञानवापी मस्जिद ( पुराना विश्वनाथ मंदिर ) इंंतजामिया कमेटी से 48 बिस्वे के मालिकाना हक के लिए मुकदमा लड रहे व्यास परिवार के आवास, मंदिर और मुला मिश्र की समाधि को पिछले दिनों आधी रात मे मंदिर के तत्कालीन सीईओ ने चारों ओर अर्धसैनिक बल के जवानों को तैनात कर 200 मजदूर लगाते हुए मुगलो को भी मात करने वाली बर्बरता से जमीदोज किया था. इस तरह की जघन्यता लगातार भवन-मंदिरों को नष्ट करने के दौरान वह सीईओ वर्षों से करता चला आ रहा. मगर किसी भी राजनीतिक दल ने इस तरह मंदिर परिक्षेत्र मे किए गये अत्याचारों पर चूँ चपड तक नही की. सबसे ज्यादा ताज्जुब तो हिन्दुत्व की झंडाबरदार भाजपा, विश्व हिंदू परिषद आदि के मौन पर हुआ करता था.

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खैर, अब धीरे धीरे तस्वीर साफ हो रही है. प्रधानमंत्री कार्यालय इस महत्वाकांक्षी विस्तारीकरण योजना बनाने के पहले पुरातत्वविद, इतिहासकार, वास्तु शिल्प के जानकारो से विचार विमर्श करने जा रहा है.
हमारा तो यह आग्रह है कि चिन्हित क्षेत्र में सैकडो सालों से रह रहे परिवारों के प्रतिनिधिमंडल को बैठक में शामिल कर पीएमओ उनके विचार भी जाने. तभी क्षेत्र की ऐतिहासिकता की सही जानकारी मिलेगी. क्षेत्र के बाहर रहने वाले क्या जानते हैं कि यह मोहल्ला पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ( बहादुर भैया ) की कर्मस्थली रहा है ? क्या उन्हें पता है कि हिंदी शार्टहैड के जन्मदाता और बहादुर भैया के धर्मपिता पं निष्कामेश्वर मिश्र की भी जन्मस्थली लाहोरी टोला है ?

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यही नहीं ऐयारी उपन्यास के जनक और स्वाधीनता सेनानी बाबू देवकीनंदन खत्री और उनके यशस्वी पुत्र बाबू दुर्गा प्रसाद खत्री ने भी इसी मोहल्ले में चंद्रकांता और भूतनाथ सरीखी कालजयी रचनाओं को जन्म दिया था ? क्या वे जानते है कि उनके इसी लहरी प्रेस से आजादी की लडाई के दौरान रणभेरी का भी प्रकाशन होता था ? क्या वे जानते है कि क्षेत्र में न जाने कितने मठ, आश्रम और संस्कृत पाठशालाए हैं ? देश की विरल वैदिक गोयनका लाइब्रेरी के बारे मे कितने जानते है ? धरती के नीचे गर्भगृह मे कितने महादेव विराजमान है, क्या वे जानते हैं ?
सुंदरीकरण का मायने विरासत का ध्वस्तीकरण नही होता. फिर, सोमनाथ से विश्वनाथ को जोड़ना इसलिए सही नहीं कि दोनों के इतिहास-भूगोल में जमीन आसमान का फर्क है. मैं पहले भी कह चुका हूँ कि एक समुद्र तट पर स्थित है तो दूसरा गलियों में है. पीएमओ योजना तय करते समय इसका भी ध्यान रखे. साथ ही इसका भी ध्यान रखे कि हजारों साल पुरानी इस बस्ती को कैसे ज्यादा से ज्यादा संरक्षित रखा जाए.

(वरिष्ठ पत्रकार पद्मपति शर्मा के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)