‘टैक्सपेयरों की कमाई का सदुपयोग करना हो तो देश में जेएनयू जैसी दर्जनों संस्थान खोले जाएं’

जेएनयू ने हमेशा आस्था को ज्ञान मानने से इनकार किया है और ज्ञान पाने की पहली शर्त यही होती है कि हम अपने अज्ञान को स्वीकार करें।

New Delhi, Mar 18 : जेएनयू पर लगातार जो हमले हो रहे हैं उनका संबंध केवल उच्च शिक्षा को बाज़ार का माल बनाने की कोशिश से नहीं है। उनका संबंध आरएसएस की ऐसी सोच को पूरे समाज पर लादने की कोशिशों से भी है जिसमें न तो ज्ञान के लिए सम्मान है न मानव अधिकारों के लिए। पहले ज्ञान के प्रति सम्मान की बात करें। स्टीफ़न हॉकिंग ने कहा है ज्ञान का सबसे बड़ा दुश्मन होता है ज्ञान का भ्रम न कि अज्ञान। जब देश के विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्री यह कहते हैं कि स्टीफ़न हॉकिंग ने वेद में आइंस्टाइन के सापेक्षता सिद्धांत से भी ज़्यादा महत्वपूर्ण सिद्धांत के मौजूद होने की बात कही है तब वे ज्ञान के भ्रम का बेहतरीन उदाहरण हमारे सामने रखते हैं।

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मंत्री जी यह नहीं बताते कि यह महत्वपूर्ण सिद्धांत क्या है, बल्कि शब्दों का जाल बिछाकर यह साबित करने की कोशिश करते हैं कि वेद में ऐसा कोई सिद्धांत है। जेएनयू ने हमेशा आस्था को ज्ञान मानने से इनकार किया है और ज्ञान पाने की पहली शर्त यही होती है कि हम अपने अज्ञान को स्वीकार करें। यही वजह है कि आरएसएस जेएनयू से चिढ़ता है। जनविरोधी राजनीति तर्क से डरती है, इसलिए वह जनता को अंधविश्वासी और सांप्रदायिक बनाने की कोशिश करती है। जेएनयू से जुड़े हरबंस मुखिया, रोमिला थापर जैसे इतिहासकारों ने इतिहास के क्षेत्र में आस्था को तथ्यों पर हावी नहीं होने दिया है और यही वजह है कि आरएसएस लगातार इन विद्वानों पर झूठे आरोप लगाता रहता है।

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अब बात करते हैं मानव अधिकारों के प्रति सम्मान की। जेएनयू में समाज के शोषित तबकों के अधिकारों के लिए संघर्ष करने की परंपरा रही है। इसकी इस परंपरा ने पूरे देश के स्तर पर हमेशा एक मज़बूत बौद्धिक विपक्ष को सामने रखा है। इस विश्वविद्यालय की एडमिशन पॉलिसी ऐसी रही है जिसके कारण समाज के सबसे पिछड़े तबकों को भी यहाँ पढ़ने के मौके मिलते रहे हैं। इस पॉलिसी को कमज़ोर बनाकर अब ऐसा रूप दे दिया गया है कि पिछले साल इस विश्वविद्यालयों में एडमिशन लेने वाले एससी और एसटी विद्यार्थियों की संख्या 10 तक भी नहीं पहुँच पाई। जिन्होंने इसका विरोध किया, उन्हें कोर्ट के चक्कर काटने पर मजबूर कर दिया गया। जीएसकैश जैसी उस महत्वपूर्ण संस्था को ख़त्म कर दिया गया जिसने कैंपसों में जेंडर समानता लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। नजीब पर हमला करने वालों को प्रशासन ने बार-बार बचाने की कोशिश की।

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इस विश्वविद्यालय का संघी प्रशासन दीवार पर आंबेडकर का पोस्टर साटने वाले को नोटिस भेज देता है और लड़कियों के साथ अश्लील हरकतें करने वाले प्रोफ़ेसर को एफ़आईआर दर्ज होने के बावजूद महत्वपूर्ण अकादमिक पदों से नहीं हटाता है। ऐसे संघी प्रशासन को पूरे देश में लागू करने का क्या नतीजा होगा, आप इसकी कल्पना करके देखिए।
टैक्सपेयरों की कमाई का सदुपयोग करना हो तो देश में जेएनयू जैसे दर्जनों विश्वविद्यालय खोले जाएँ और उन्हें संघियों के कब्ज़े से बचाया जाए। इससे न केवल लोकतंत्र मज़बूत बनेगा, बल्कि सदियों से हाशिये पर रहते आए लोगों की प्रतिभा का पूरे देश को फ़ायदा मिल पाएगा। जो लोग करोड़ों लोगों को शिक्षा से दूर रखकर देश की प्रगति रोक रहे हैं, वे ही असली मायने में “देशद्रोही” हैं।

(छात्रनेता कन्हैया कुमार के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)