पत्रकारिता को हांफते और कांपते देख रही हूं, फिर भी उम्मीद नयी पीढी से है- Nivedita Shakeel

मैं उनलोगों में से नहीं हूँ जो हमेशा अपने दौर को स्वर्णिम कहा करते हैं . हमारे समय में भी और उसके पहले भी पत्रकारिता ने कई बार समझौता किया है घुटने टेके हैं

New Delhi, Mar 21 : पिछले ३० सालों की पत्रकारिता में बहुत कुछ देखा, पत्रकारिता पर लोगों का यकींन देखा. सत्ता से टकराते देखा. गरीब और हाशिये पर पड़े लोगों के लिए अख़बारों का दिल धड़कते भी देखा . पर इन ३० सालों में दुनिया बदलने लगी और तेजी से बदली . फिर भी यकींन था की बाज़ार के इस दौर में चाहे हमारा समाज और हमारी सत्ता कितनी भी बदले हमारी पत्रकारिता के कुछ मानवीय मूल्य बचे रहेंगे .

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मैं उनलोगों में से नहीं हूँ जो हमेशा अपने दौर को स्वर्णिम कहा करते हैं . हमारे समय में भी और उसके पहले भी पत्रकारिता ने कई बार समझौता किया है घुटने टेके हैं . इसके बावजूद पत्रकारिता का मकसद था हमेशा लोगों तक सही सूचना पहुँचाना और ख़बरों के प्रति अपनी जबाबदेही तय करना. अभी का समय सबसे अँधेरा समय है . हिंसक, निष्ठुर और विवेकहीन समय है . झूठ और मक्कारी से भरा हुआ . २४ घंटे हम लोगों को जो दिखातें हैं वह खबर नहीं होती सिर्फ आतंक पैदा करतें हैं ख़बरों में . हाल का सबसे बुरा उदहारण है अररिया में हुए चुनाव के बाद एक वीडियो का वायरल होना .

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सभी मीडिया हॉउस ने बगेर खबर और वीडियो को परखे उसे दिखाना शुरू किया . बाद में पता चला ये वीडियो मॉप किया हुआ है . इस मक्कारी का पर्दाफास किये बिना उसे लगातार इस नाम पर दिखाया जाता रहा की अभी इसकी पुष्टि नहीं हुयी है . इस तरह के कई उदाहरण हैं , जिसमें पत्रकारिता को शर्मशार किया है . इस मुश्किल समय में भी कुछ लोग हैं जो सच लिखने और कहने की हिम्मत और हिमाकत कर रहे हैं और उसकी कीमत चुका रहें हैं . गौरी लंकेश इसलिए मार दी गयी और देश में कई और पत्रकार मारे गए . दुख ये नहीं है की सत्ता का सबसे बदनुमा चेहरा दिख रहा है दुख ये है की बहुत धीरे-धीरे प्रत्रकारिता के मूल्य मर रहे हैं , उसे बिकते देख रहीं हूँ .घुटने टेकते देख रहीं हूँ , हांफते और कांपते देख रही हूँ .

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फिर भी मेरी उम्मीद उस नयी पीढ़ी से है जो आज भी बहादूरी से सामना कर रही है . क्या ये हमारी जिम्मेदारी नहीं है की हम ख़बरों के प्रति जबाबदेह हों , media indiaसही सूचना लोगों तक दें और बिना किसी पूर्वाग्रह के खबर लिखें . अगर सिर्फ हम इतना कर पायें तो हम हिंसक और विवेकहीन समय के विरुध्य खड़े रहेंगे . हमारा काम है पाठकों तक अपनी खबर पहुँचाना पूरी जिम्मेदारी के साथ .

(निवेदिता शकील के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)