‘रावण की बात मान ली गयी होती, तो आज ना जातिगत आरक्षण के बंटवारे होते ना छूत-अछूत’

अगर रक्षेन्द्र रावण की बात मान ली गयी होती तो आज न लिंगायत ,न वीर शैव ,न द्रविड़ , न आर्य ,न अनार्य ,न सुर ,न असुर जैसे अलगाव होते ।

New Delhi, Mar 22 : लिंगायत को अलग धर्म मानने को स्वीकृति मिल गयी तो मुझे यह प्रसंग याद आया। यह प्रसंग प्रामाणिक है। रामायण काल की बात है। दुनिया भर में कहीं देव तो कही दैत्य , कही असुर तो कहीं वानर , कहीं गंधर्व तो कही दानव का राज स्थापित था। रक्ष राज रावण ने वरुण ,कुबेर , दैत्यराज बलि , असुर राज को हरा दिया तब आर्यो के सबसे बड़े शासन को निशाना बनाया। आर्य भी कई उपजातियों में बंटे हुए थे। भरत ,भृगु ,उशीनर, क्रिवी, पारावत, चेदि , गंधार, कुरु ,पांचाल जैसी उपजातियां अलग अलग इलाको में शासन करते थे।

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देवराज इंद्र का शासन सबसे बड़े भूखंड पर था। रक्षेन्द्र रावण ने मेघनाद को इंद्र से लड़ने को भिड़ा दिया। मेघनाद ने इंद्र को हराकर बंदी बना लिया। इंद्र के बंदी बनाने से देवलोक जहां इंद्र का शासन था , हड़कंप मच गया । इंद्र को रावण के कब्जे से छुड़ाने के लिए देवलोक के कुछ प्रमुख लोगो ने रावण के यहां गुहार लगाई। गुहार लगाने वालों में वासु , आदित्य ,रुद्र इत्यादि थे। रावण ने शर्त रखी कि इंद्र को तभी छोड़ा जाएगा जब देव समुदाय को मिलने वाले विशेषाधिकार बाकी जातियों को भी मिले । रावण ने इतना ही नही कहा बल्कि एक शर्त यह रखी कि देव दैत्य , राक्षस ,असुर ,दानव ,आर्य , गंधर्व सब मिलकर एक महाजाति की छतरी में आ जाये।कोई भेदभाव नही हो।

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कोई अलगाव न हो। कोई किसी से ऊपर न हो ।कोई किसी के नीचे न हो। लेकिन देव समुदाय के प्रतिनिधियों ने इसे नही माना। Ravan2काफी वाद विवाद के बाद राक्षसों को पूजा पाठ , यज्ञ, हवन का अधिकार देने तक ही बात बनी।

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दरअसल कई और जाति के प्रतिनिधि भी भीतर ही भीतर रावण के इस शर्त का विरोध कर रहे थे। अगर रावण की शर्त मान ली गयी होती तो शायद आज जातियों को लेकर इतना तफरका नही होता। रावण ऐसे न्यायप्रिय और समाजवादी शासक थे। ravan-3अगर रक्षेन्द्र Ravan की बात मान ली गयी होती तो आज न लिंगायत ,न वीर शैव ,न द्रविड़ , न आर्य ,न अनार्य ,न सुर ,न असुर जैसे अलगाव होते । न जातिगत आरक्षण जैसे बंटवारे होते न छूत अछूत का भेदभाव।

(वरिष्ठ पत्रकार योगेश किसलय के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)