भगत सिंह की जेल डायरी, उनके विचारों को समझने की ख्वाहिश रखने वाले पढ़ें

आजाद भारत के सपने देखते हुए भगत सिंह द्वारा गुजारे लाहौर जेल में गुजारे हर कठिन दिनों का विवरण डायरी के हर पन्ने पर दर्ज है।

New Delhi, Mar 23 : भगत सिंह के विचारों को समझने की ख्वाहिश रखने वालों के लिए उनकी “जेल डायरी” एक महत्वपूर्ण दस्तावेज है . एक ऐसा युवा जिसने अभी जवानी में कदम ही रखा था, वह मुल्क की आज़ादी हे नहीं, आज़ादी के बाद यहाँ की शासन व्यवस्था कैसी हो , उसमें किसान-मजदूर- मजलूम को बराबरी का हक कैसे मिले ?यह सोच रहा था, उस समय के वैश्विक इतिहास, भूगोल, सियासत को किताबों के जरिये समझ रहा था , अदालत में क्या बोला जाये उसके लिए सन्दर्भ तैयार कर रहा था और वे सभी बातें एक डायरी में दर्ज कर रहा था, यह डायरी बानगी है कि जेल में ही सरदार भगत सिंह कैसे एक बन्दुक७ब्म से विचार में बदल गया .जेल में गुजारे लम्हों को भगत सिंह ने करीब 404 पन्नों में दर्ज किया था। यह जेल डायरी अब तक पाठकों को अंग्रेजी और उर्दू भाषाओं में दर्ज है .बता दें कि पाकिस्तान स्थित लाहौर जेल में लिखी भगत सिंह की डायरी के हर पन्ने पर उनकी वतनपरस्ती की झलक मिलती है। आजाद भारत के सपने देखते हुए लाहौर जेल में गुजारे हर कठिन दिनों का विवरण डायरी के हर पन्ने पर दर्ज है। जेल प्रशासन ने 12 सितंबर, 1929 को उन्हें कुछ लिखने के लिए यह डायरी उपलब्ध करवाई थी। क्रांतिकारियों के संघर्ष और अपने कठिन दिनों के बारे में उन्होंने जो कुछ भी लिखा, वे शब्द आज इतिहास में दर्ज हो गए हैं।

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डायरी के पन्ने अब पुराने हो चले हैं, लेकिन इसमें उकेरा गया एक-एक शब्द देशभक्ति की अनुपम मिसाल के साथ ही भगतसिंह के सुलझे हुए विचारों की तस्वीर पेश करता नजर आता है। शहीद-ए-आजम ने यह डायरी अंग्रेजी भाषा में लिखी है, लेकिन बीच-बीच में उन्होंने उर्दू भाषा में वतन परस्ती से ओत-प्रोत पंक्तियाँ भी लिखी हैं।
भगतसिंह का सुलेख इतना सुंदर है कि डायरी देखने वालों की निगाहें ठहर जाती हैं। डायरी उनके समूचे व्यक्तित्व के दर्शन कराती है। इससे पता चलता है कि वे महान क्रांतिकारी होने के साथ ही विहंगम दृष्टा भी थे। बाल मजदूरी हो या जनसंख्या का मामला शिक्षा नीति हो या फिर सांप्रदायिकता का विषय देश की कोई भी समस्या डायरी में भगतसिंह की कलम से अछूती नहीं रही है।

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उनकी सोच कभी विदेशी क्रांतिकारियों पर जाती है तो कभी उनके मन में गणित-विज्ञान, मानव और मशीन की भी बात आती है। डायरी में पेज नंबर 60 पर उन्होंने लेनिन द्वारा परिभाषित साम्राज्यवाद का उल्लेख किया है तो पेज नंबर 61 पर तानाशाही का। इसमें मानव मशीन की तुलना के साथ ही गणित के सूत्र भी लिखे हैं।
इन 404 पन्नों में भगत के मन की भावुकता भी झलकती है, जो बटुकेश्वर दत्त को दूसरी जेल में स्थानांतरित किए जाने पर सामने आती है। मित्र से बिछुड़ते समय मन के किसी कोने में शायद यह अहसास था कि अब मुलाकात नहीं होगी, इसलिए निशानी के तौर पर डायरी में भगतसिंह ने बटुकेश्वर दत्त के ऑटोग्राफ ले लिए थे।

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बटुकेश्वर ने ऑटोग्राफ के रूप में बीके दत्त के नाम से हस्ताक्षर किए। अंग्रेजी पर अच्छी पकड़ होने के साथ ही भगतसिंह इतिहास और राजनीति जैसे विषयों में भी पारंगत थे। सभी विषयों की जबर्दस्त जानकारी होने के चलते ही हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी (एचएसआरए) के प्रमुख चंद्रशेखर आजाद ने उन्हें अंग्रेजों की नीतियों के विरोध में आठ अप्रैल 1929 को सेंट्रल असेंबली में बम फेंकने की इजाजत दी थी।
इस जेल डायरी में दर्ज बातें कीं पुस्तकों से लि गयीं, उन पुस्तकों का विवरण तलाशन , यही नहीं उन पुस्तकों का वाही संस्करण तलाशना, जिन्हें सरदार ने जेल में पढ़ा था , एक बड़ा शोध कार्य था.
प्रभात प्रकाशन द्वारा प्रकाशित पुस्तक _ “भगत सिंह जेल नोटबुक : संदर्भ और प्रासंगिकता ” इस दिशा में अनूठा, संग्रहणीय और जीवट भरा कार्य है. इस पुस्तक के सीरीज संपादक मलविंदर सिंह वड़ैच हैं, जबकि शोध, संकलन, संपादन आदि हरीश जैन ने किया है , यह उनके कई वर्ष के परिश्रम का प्रतिफल है,

यह पुस्तक शाहिदेआज़म भगत सिंह की अध्यांशिलता और रूचि-अभिरुचि का दिग्दर्शन कराती ऐतिहासिक महत्व की पुस्तक है.
इस किताब की खासियत है कि इसके बाएं पन्ने पर मूल जेल डायरी को यथावत रखा गया है जबकि उसके ठीक सामने दायें पन्ने पर उसका हिंदी अनुवाद, उसका सन्दर्भ, आदि का विवरण है
प्रभात प्रकाशन के मालिक श्री प्रभात जी से कुछ दिनों पहले मेरी बात हुई थी और वे इस बात से सहमत थे कि वे इसे प्रत्येक पातक को पच्चीस प्रतिशत छूट पर देंगे क्राउन आमाप कि इस पुस्तक में कुल ४७२ पन्ने हैं और कीमत मात्र ९०० रूपये है, सजिल्द पुस्तक की.

अपने खर्चे को काटें और यह किताब खुद पढ़ें व अपने मोहल्ले, घर, समाज में इसे पढ़ने को भी दें ,
भगत सिंह को माला ना पहनाएं, उसके बम फैंकने या गोली चलाने को याद मत करने, उसके विचारों को ज़िंदा रखें‘तुझे जिबह करने की खुशी और मुझे मरने का शौक है मेरी भी मर्जी वही जो मेरे सैयाद की है…’’ इन पंक्तियों का एक-एक लफ्ज उस महान देशभक्त की वतन पर मर मिटने की ख्वाहिश जाहिर करता है, जिसने आजादी की राह में हँसते-हँसते फाँसी के फंदे को चूम लिया।
देशभक्ति की यह तहरीर भगतसिंह की उस डायरी का हिस्सा है, जो उन्होंने लाहौर जेल में लिखी थी। शहीद-ए-आजम ने आजादी का ख्वाब देखते हुए जेल में जो दिन गुजारे, उन्हें पल-पल अपनी डायरी में दर्ज किया।
27 सितंबर 1907 को जन्मे भगतसिंह 23 मार्च 1931 को मात्र 23 साल की उम्र में ही देश के लिए फाँसी के फंदे पर झूल गए। देशवासियों के दिलों में वे आज भी जिन्दा हैं।

(वरिष्ठ पत्रकार पंकज चतुर्वेदी के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)