धर्म और ईश्वर के खिलाफ भी क्रांतिकारी थे भगत सिंह
मेरे लिए इस ख़याल के अलावा और क्या राहत हो सकती है कि मैं एक उद्देश्य के लिए अपने प्राणों का बलिदान करने जा रहा हूँ?- भगत सिंह
New Delhi, Mar 23 : आज सरदार भगत सिंह का शहादत दिवस है .शहीदे-आज़म नास्तिक थे. अपने नास्तिक होने के बारे में उनका एक उद्धरण .यह उनके एक लेख का हिस्सा है जो उन्होंने अपनी फांसी के पहले के महीनों में लाहौर जेल के क़ैदी के रूप में लिखा था।
” सब लोग अच्छी तरह जानते हैं कि हमारे मुक़दमे का फ़ैसला क्या होना है। हफ्तेभर में वह सुना भी दिया जायेगा। मेरे लिए इस ख़याल के अलावा और क्या राहत हो सकती है कि मैं एक उद्देश्य के लिए अपने प्राणों का बलिदान करने जा रहा हूँ? ईश्वर में विश्वास करने वाला हिन्दू राजा बनकर पुनर्जन्म लेने की आशा कर सकता है, मुसलमान या ईसाई जन्नत में मिलने वाले मज़े लूटने और अपनी मुसीबतों और क़ुर्बानियों के बदले इनाम हासिल करने के सपने देख सकता है।
मगर मैं किस चीज़ की उम्मीद करूँ? मैं जानता हूँ कि जब मेरी गरदन में फाँसी का फन्दा डालकर मेरे पैरों के नीचे से तख़्ते खींचे जायेंगे, सब कुछ समाप्त हो जायेगा। वही मेरा अन्तिम क्षण होगा। मेरा, अथवा आध्यात्मिक शब्दावली में कहूँ तो मेरी आत्मा का, सम्पूर्ण अन्त उसी क्षण हो जायेगा।
बाद के लिए कुछ नहीं रहेगा। अगर मुझमें इस दृष्टि से देखने का साहस है तो एक छोटा-सा संघर्षमय जीवन ही, जिसका अन्त भी कोई शानदार अन्त नहीं, अपने आप में मेरा पुरस्कार होगा। बस और कुछ नहीं। किसी स्वार्थपूर्ण इरादे के बिना, इहलोक या परलोक में कोई पुरस्कार पाने की इच्छा के बिना, बिल्कुल अनासक्त भाव से मैंने अपना जीवन आज़ादी के उद्देश्य के लिए अर्पित किया है, क्योंकि मैं ऐसा किये बिना रह नहीं सका।”