‘बिटवा इंजीनियर बनने के बजाय हाथ में तख्‍़ती लिए बाग़ी बन गया’

आप एटीएम जाइए। पैसा नहीं निकलेगा। एक दर्जन एटीएम छानने में इस मशीन की महानता का अहसास होगा।

New Delhi, Apr 24 : आजकल रोज़मर्रा के छोटे-छोटे काम बहुत बड़े हो गए हैं। मसलन, मेरे पास मकान मालिक के नाम से ग़ाजि़याबाद विकास प्राधिकरण का एक बिल आया। आए हुए दो हफ्ते हो गए। दस दिन तक पता लगाता रहा कि बिल किस मद में है। बिल पर लिखा था मेनटेनेंस चार्ज। जीडीए ने ऐसा कोई शुल्‍क अब तक लिया हो, याद नहीं पड़ता। हाउस टैक्‍स था नहीं। पानी का था नहीं। बिजली का हर महीने जमा करता ही हूं, वो हो नहीं सकता। जमा करने की अंतिम तारीख़ यही पता करने में निकल गई कि पैसे किस बात के देने हैं। अभी यह पता करना बाकी है कि बिल कहां जमा होगा क्‍योंकि पहले जहां जमा होता था वहां मना कर दिया गया है। सोचिए, जिन कामों को हम सत्‍तर साल तक मामूली समझते रहे, वे कितने भव्‍य हो गए हैं।

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आप एटीएम जाइए। पैसा नहीं निकलेगा। एक दर्जन एटीएम छानने में इस मशीन की महानता का अहसास होगा। आप बैंक जाइए, लौटती में लगेगा मानवमात्र को मिली कोई महान जिम्‍मेदारी निभाकर आ रहे हैं। बच्‍चे का इग्‍ज़ाम है? सोच रहे थे कट जाए तो किसी तरह घूमने चला जाए, पता चला पेपर ही लीक हो गया। बिटवा इंजीनियर बनने के बजाय हाथ में तख्‍़ती लिए बाग़ी बन गया। आप ट्रेन में बैठिए। अहसान मानेंगे कि आठ घंटा लेट सही, पहुंचे तो। अहसान फ़रामोश हैं, तो आप हवाई जहाज में बैठ जाइए। खिड़की का कांच टूट कर आपके ऊपर गिर जाएगा। आप घायल हो जाएंगे। ये सब तो ख़ैर बहुत बड़े-बड़े राष्‍ट्रीय काम हैं। आप मुझे फोन लगाइए। एक बार में सारी बात निपट जाए तो बताइएगा। तीन बार कटेगा। कमरे से बालकनी, बालकनी से सीढ़ी, सीढ़ी से नीचे भागते आइए। हैलो हैलो चिल्‍लाइए। जनता पागल समझेगी। अब तक आप इन तमाम सुविधाओं को हराम का सरकारी चंदन समझ के घिसते रहे। अब कर के देखिए। मोल समझ में आ जाएगा।

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हमारे यहां पानी की एक मोटर है। सबके यहां होगी। बेहद मामूली बात है। इसमें कौन बड़ाई? बड़ाई है बॉस। आपने स्विच दबाया। मोटर ऑन किया। नलका सूं सूं कर के सूख गया। सबकी मोटर चल रही है। आपके यहां दुष्‍काल पड़ा है। अब आप पिलास लेकर नीचे जाइए। पेंच खोलिए। धीरे-धीरे। सप्‍लाई का वेग बहुत तेज है। एक बार में पेंच पूरा खुल गया तो नहा लेंगे। धीरे-धीरे खुलते पेंच के नीचे से कुछ बुलबुले निकलेंगे। हवा निकलेगी। उतनी हवा निकाल के आप पेंच कस दीजिए। मोटर ऑन करिए। पानी आ जाएगा। कभी-कभार पानी तब भी नहीं आता। फिर आप किसी से एक लोटा पानी मंगवाते हैं। पेंच पूरा खोल के मोटर के सूखे गले में पानी डालते हैं। एक बिंदु पर वह पानी भीतर पैठे पानी से जा मिलता है और छेद से फव्‍वारा निकल पड़ता है। खुशी के आंसू छलछला उठते हैं।

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इस प्रक्रिया को अपने यहां आम भाषा में कहते हैं कि मोटर ने एयर ले लिया। जैसे पिन वाला स्‍टोव याद करिए। स्‍कूटर याद करिए। पुराना वाला लाल चांपाकल याद करिए। ये सब मशीनें एयर लेकर चोक हो जाती थीं। पिन से बर्नर खोदना पड़ता था। बाइक में चोक लेना पड़ता था। चांपाकल के गले में पानी डालना पड़ता था। मशीन जब एयर ले लेती है तो आउटपुट देना बंद कर देती है। आजकल मामूली चीज़ों के उपभोग का अनुभव बताता है कि बैंक, एटीएम, शिक्षा, परिवहन, दूरसंचार, हवाई जहांज़, स्‍वास्‍थ्‍य सेवा, सब के सब मोटर बन गए हैं। एयर ले लिए हैं। चोक हो गए हैं। क्‍या समझे?

उड़ते हुए एयर इंडिया के विमान में कांच का टूट कर गिरना एक घटना नहीं, परिघटना है। हमारे समय का केंद्रीय मुहावरा है। एयर इंडिया कोई कंपनी नहीं, समकालीन भारत का नाम है। इंडिया नाम की मोटर ने एयर ले लिया है। मोटर चोक हो गई है। इंडिया, एयर इंडिया बन गया है। उड़ रिया है। अष्‍टभुजा शुक्‍ल कभी लिखे रहे- भारत घोड़े पर सवार है। या तो घोड़वा हवा से बातें कर रहा है या फिर भारत ही कम स्‍पीड घोड़े को छोड़ कर अब हवा में पंख तौल रहा है। खतरा वास्‍तविक है। सभी यात्रियों से अनुरोध है कि कृपया वे अपनी सीट बेल्‍ट बांध लें। मौसम खराब चल रिया है।

(वरिष्ठ पत्रकार अभिषेक श्रीवास्तव के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)