‘चुनाव अगर एक प्रोजेक्ट है, और सरकार एक प्रोडक्ट’

चुनाव के साहूकारों ने ममता की पेंटिंग्स करोड़ों में खरीद खरीद कर दीदी को चंदा उपलब्ध कराया और बाद में सरकारी ठेकों से चंदे की वसूली की।

New Delhi, Apr 24 : खुदी को कर बुलंद इतना …….
लेकिन खुद को अगर आप अडानी के पैसे से बुलंद कर रहे हैं ….अम्बानी के दान से बुलंद कर रहे हैं तो कौन खुदा आकर आपसे पूछेगा …”कि बता तेरी रज़ा क्या है ? ”
“खुदी को कर बुलंद इतना कि हर तकदीर से पहले खुदा बन्दे से खुद पूछे ….” कोई 90 साल पहले सर अल्लामा इक़बाल ने ये शेर कहा था। कोई 600 साल पहले, गोस्वामी तुलसीदास (1511-1623 ) या फिर विलियम शेक्सपियर (1564-1616 ) ने भी कुछ ऐसा ही कहा था कि जो अपनी मेहनत से पाँव पर खड़ा है यानि जो ‘सेल्फ मेड’ है उसके आगे ज़माना झुकता है। वो जिस लक्ष्य को पाना चाहता है उसे पा लेता है। वे अपने समाज को, अपने देश को अगर आगे ले जाना चाहता है तो वाकई आगे ले जा सकता है। आज से नहीं सदियों से स्वनिर्मित व्यक्ति यानि सेल्फ मेड की ताकत को कोई चुनौती नहीं दे पाया है।

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गाँधी इसलिए कारगर हुए क्यूंकि वे खुद बुलंद थे। और अगर गाँधी के पीछे कोई घनश्याम दास बिड़ला या जमना लाल बजाज खड़े भी थे तो वो गाँधी की रेहमत से थे, गाँधी उनकी रेहमत पर नहीं थे। वैसे भी तबके बिड़ला और बजाज की व्यापारिक साख से आज अडानी या अम्बानी की तुलना करना नैतिक अपराध है। गाँधी के बाद नेहरू आगे बड़े तो उनके पीछे कोई आसाराम या राम रहीम का वोटतंत्र नहीं था। नेहरू मूलता गाँधी के आशीर्वाद से आगे बड़े। नेहरू के साथ तब जेआरडी टाटा और बिड़ला जैसे उद्योगपति तो थे लेकिन इस साथ का आधार कोई मोल-तोल कोई घटिया लाभ का सौदा नहीं था।
1970 में मुलायम सिंह यादव जैसे सादगी भरे समाजवादी नेता यूपी में सिर्फ दो चार ही थे। लेकिन सत्ता के शीर्ष की तरफ जब मुलायम बढ़े तो हर कदम पर झुके। आखिर पांच सौ करोड़ की बिसात पर यूपी असेंबली का चुनाव वे किसी सुब्रोतो रॉय के बगैर कैसे लड़ते ?

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कांशीराम की साइकिल के कैरियर पर बैठने वाली मायावती किस तरह चड्ढा और जेपी की काली कमाई पर अरबों के चुनाव लड़ती रही, ये तथ्य तो आज सीबीआई की फाइलों पर दर्ज़ है। मुंबई में शरद पवार किसके दम पर सत्ता के पावर पुरुष बने ये कौन नहीं जानता है ? हद तो ये है कि इन सब को एक्सपोज़ करने वाले केजरीवाल आज खुद से बुलंद नहीं है। केजरीवाल ने राज्य सभा के चुनाव में जिस तरह धनपशुओं को तरजीह दी उससे उनकी बुलंदी की परतें जनता के सामने खुल गयी हैं । वे भी आज ‘कोम्प्रोमाईज़ लीडर’ की कतार में खड़े है। बहरहाल छोड़िये केजरीवाल को , रबर की चप्पल और सूती धोती पहनने वाली ममता दी को कौन कौन चिट फंड वाले बुलंद कर रहे थे इसकी गवाह अब कोलकत्ता जेल की कोठरियां है। चुनाव के साहूकारों ने ममता की पेंटिंग्स करोड़ों में खरीद खरीद कर दीदी को चंदा उपलब्ध कराया और बाद में सरकारी ठेकों से चंदे की वसूली की।

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सवाल है कि इस देश में खुद से बुलंद, कौन सा नेता है ? कौन है वो जिसके पीछे कोई ब्लैकमेलर, कोई सौदेबाज़, कोई काली कमाई वाला , कोई लाल सौदागर नहीं खड़ा है ?
अगर कोई खुद से बुलंद है, तो मुझे बताएं। अगर कोई एक भी ऐसा नहीं है तो देश के भविष्य के बारे में फिर ईमानदारी से सोचिये ? चोरों, साहूकारों, तेल के आढ़तियों और बैंक के क़र्ज़ लुटेरों के अहसानों से दबे नेता क्या इस मुल्क के मुस्तकबिल को कभी बुलंद कर सकते हैं ? ज़रा सोचिये ? दो मिनट के लिए ही सही, पर नीचे लिखे सवाल पर सोचिये।
चुनाव अगर एक प्रोजेक्ट है। और सरकार एक प्रोडक्ट। तो इन साहूकारों की बैसाखियों पर खड़ा लीडर और उसका देश सही दिशा में आगे कैसे बढ़ेगा ?

(वरिष्ठ पत्रकार दीपक शर्मा के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)