हिंदुस्तान में ये बचाएंगे प्रजातंत्र?

कई बड़े राजनीतिक विचारक बीजेपी की सरकार न बनने पर खुशिया मनाना शुरु कर दिया. अब उन्हें बताना चाहिए कि शिवराम हेब्बर की पत्नी का फर्जी ऑडियो टेप जारी कर क्या कांग्रेस ने प्रजातंत्र को बचाया है?

New Delhi, May 22 : कर्णाटक की राजनीति में फिर से देवेगौड़ा के पुत्र कुमारास्वामी मुख्यमंत्री की शपथ लेंगे. इसमें देश में प्रजातंत्र और सेकुलरिज्म को बचाने में जुटे नेता शामिल होंगे. महज दो चार दिन पहले देश में ऐसा लग रहा था कि प्रजातंत्र मरने वाला है. अगर कर्णाटक में बीजेपी की सरकार बन गई तो न संविधान बचेगा न ही सेकुलरिज्म बचेगा. कांग्रेस के प्रोपेगैंडा का असर भी दिखा. बिल में छिपे कांग्रेसी-विश्लेषक ज्ञान देने जुट गए. राहुल गांधी ने फैसले के एक दिन पहले देश के सुप्रीम कोर्ट की तुलना पाकिस्तान से कर दी. बेचारे जज भी सहम गए. जजों पर ये दबाव जरूर होगा कि वो बीजेपी के साथ खड़े नजर न आएं. इसलिए, रात भर जग कर सुप्रीम कोर्ट प्रजातंत्र को बचाने में कामयाब रहा. काश, ऐसी ही चपलता कोर्ट ने अगर सलमान खान के केस में दिखाई होती तो शायद लोगों को लगता कि न्याय अंधा नहीं.. खैर, जो बीत गई सो बात गई.

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कांग्रेस पार्टी का सबसे बड़ा इल्जाम ये था कि अगर बीजेपी को बहुमत सिद्ध करने के लिए पंद्रह दिन दिए गए तो हॉर्स ट्रेडिंग होगी और इससे प्रजातंत्र की मौत हो जाएगी. अगर सिर्फ हॉर्स-ट्रेडिंग से ही प्रजातंत्र की मौत होती है तो कांग्रेस पार्टी कितनी बार डेमोक्रेसी मार चुकी है इसकी गिनती ही खत्म नहीं होगी. दरअसल, कांग्रेस पार्टी तो हॉर्स-ट्रेडिंग की जननी है. राहुल गांधी को बताना चाहिए यूपीए 1 की सरकार जब बनी थी तो तब सोनिया गांधी संसद के घोड़ो की क्या कीमत लगाई थी? कितने में लेफ्ट बिका था और कितने में डीएमके?
थूक फेंक कर रफुचक्कर हो जाना.. झूठ बोल कर लोगों को बरगला कर गायब हो जाना कांग्रेस की राजनीति का नया मंत्र है. कोर्ट पर दबाव बनाने के लिए कांग्रेस पार्टी ने दो दो टेप भी जारी कर दिए. ये दावा किया कि ये होर्स-ट्रेडिंग के सबूत हैं. बताया कि बीजेपी के नेताओ ने उनके विधायक शिवराम हेब्बर की पत्नी को फोन करके प्रलोभन दिया. टीवी पर इस टेप को दिखाया भी गया. इस दौरान कांग्रेस पार्टी ने अपने घोड़ों (विधायकों) को अस्तबल (रिसॉर्ट) में बांध रखा था. लेकिन अब जब इन घोड़ों पर थोड़ी ढिलाई बरती गई तो कांग्रेस को पहली दुल्लती शिवराम हेब्बर ने दी. उन्होंने अपने फेसबुक पेज पर लिखा- “मुझे देरी से पता चला कि न्यूज चैनलों में मेरी पत्नी और बीजेपी के लोगों के बीच संदेहास्पद बातचीत की चर्चा है। यह मेरी पत्नी की आवाज नहीं है। मेरी पत्नी ने कोई फोन रिसीव नहीं किया था। ऑडियो टेप फर्जी है और मैं इसकी निंदा करता हूं।”

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डेमोक्रेसी को बचाने का नया तरीका कांग्रेस पार्टी ने देश को बता दिया. बेशर्मी की हद ये है कि शिवराम हेब्बर के बयान पर कांग्रेस पार्टी ने जरा भी रिएक्ट नहीं किया. राहुल गांधी तो पढ़े लिखे हैं नहीं.. इसलिए उनसे उम्मीद नहीं है. लेकिन उनकी पार्टी कुछ बड़े वकील तो हैं उन्हें ये बताना चाहिए कि बाबा साहब अंबेदकर ने साफ साफ कहा था सबसे बड़ी पार्टी के पास अगर बहुमत नहीं है तो उसे बहुमत सिद्ध करने के लिए कम से कम एक महीने का वक्त देना चाहिए. कांग्रेस पार्टी जिस तरह गांधी और नेहरू का नाम लेकर उनके विचारों को दफनाते आई है उसी तरह वर्तमान में बाबा साहब अंबेदकर के नाम को दलितों को लुभाने के लिए तो लेती है लेकिन उनके विचारों का तिरस्कार बहुत पहले ही कर चुकी है.

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डेमोक्रेसी और सेकुलरिज्म को बचाने के कांग्रेस पार्टी ने कर्णाटक में पीएफआई के साथ समझौता किया. ये एक मौन समझौता था – टैसिट अंडरस्टैंडिग. पीएफआई एक इस्लामी संगठन है जिसके रिश्ते आंतकवादियों के साथ जगजाहिर है. बताया जाता है कि ये प्रतिबंधित सिमी का नया रूप है. वैसे भारतीय जनता पार्टी को ये बताना चाहिए कि अब तक इसे बैन क्यों नहीं किया गया और इसके नेताओं के सलाखों के पीछे क्यों नहीं भेजा गया? लेकिन इससे कांग्रेस का पाप कम नहीं होता है. सेकुलरिज्म को दुहाई देने वाली इन पार्टियो का सिर पर टोपी पहन कर मौलानों के पास जाकर समर्थन मांगना/फतवे जारी करवाना पुरानी आदत है.

प्रजांतत्र को बचाने की मुहिम यहीं खत्म नहीं होती है. अब दिल्ली के आर्कबिशॉप का एक नया पत्र सामने आया है जिसमें इस पादरी ने 2019 में मोदी सरकार को हटाने के लिए प्रार्थना सभा और हर शुक्रवार को उपवास करने का फऱमान जारी किया है. सेकुरिज्म का ये नया नाटक बीजेपी के अच्छा है लेकिन इसाई समुदाय के लिए एक बदनुमा दाग है. लगता है चर्च ने भी इमामों का रास्ता चुन लिया है. रास्ता अगर एक है तो अंजाम भी एक ही होगा. दरअसल, यही आर्क बिशॉप अनिल काउटो ने दिल्ली विधानसभा चुनाव से पहले चर्च पर हुए हमले का बहाना बना कर केजरीवाल को वोट देने की अपील की थी. बीजेपी की हार के बाद जश्न भी मनाया था. गुजरात चुनाव के दौरान बीजेपी के खिलाफ से चर्च ने ऐसी ही अपील की थी.

कर्णाटक की जनता का फैसला बिल्कुल साफ है.. उन्होंने कांग्रेस पार्टी को सत्ता से दूर रहने का आदेश दिया है. लेकिन, पूरे अस्तबल को ही बेचने वाली पार्टी प्रजातंत्र की दुहाई देकर सरकार में शामिल हो रही है. इससे न तो प्रजातंत्र बचा और न ही सेकुलरिज्म. कर्णाटक की जनता अब अफसोस कर रही है कि उनसे ये गलती कैसे हो गई? लोग नाराज हैं यही वजह है कि कांग्रेस और जेडीएस के चुने हुए विधायक अपने अपने क्षेत्र में विजय जुलूस निकालने से मना कर दिया है. राहुल गांधी को ये कौन बताएगा कि प्रजातंत्र बचाने का काम देश की जनता का है.
कई बड़े राजनीतिक विचारक बीजेपी की सरकार न बनने पर खुशिया मनाना शुरु कर दिया. अब उन्हें बताना चाहिए कि शिवराम हेब्बर की पत्नी का फर्जी ऑडियो टेप जारी कर क्या कांग्रेस ने प्रजातंत्र को बचाया है? क्या पीएफआई जैसे इस्लामी संगठन से सांठगांठ करके सेकुलरिज्म को मजबूत किया? क्या चर्च की मदद से इसाइयों के वोट लेने की कवायद संविधान को मजबूत करने वाला प्रयास है? दिल्ली के आर्क बिशॉप की चिट्ठी हिंदुस्तान में इसाई-कट्टरपंथ का बीज है. सेकुलर पार्टियां अगर इसे सींचती है तो इसके परिणामों को झेलने के लिए देश को तैयार हो जाना चाहिए.

आखिर में, बैगलुरू में कुमारास्वामी के शपथ समारोह में शामिल होने वाले सूरमाओं की बात भी जरूरी है. पहले नंबर पर प्रजातंत्र बचाने में सबसे अव्वल ममता दीदी. कम्युनिस्टों ने कोशिश की लेकिन कर सके लेकिन ममता ने कर दिखाया. यहां की हालत ये है कि अगर कोई टीएमसी का समर्थक नहीं हैं तो उसे वोट का अधिकार नहीं है. दूसरे नंबर भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ने वाला केजरीवाल जिसकी पूरी कैबिनेट पर भ्रष्टाचार के आरोप हैं. अब तो साढू का बेटा भी जेल में हैं. बेशर्मी का आलम ये है कि जिसके खिलाफ इसने आंदोलन किया उसी की सरकार के शपथ समारोह में पहुंच रहा है. तीसरे नंबर पर सेकुलर्जिम की नई पौध अखिलेश यादव – जिसकी पार्टी हिंदुओं पर गोलियां चलाने में फक्र महसूस करती है. चौथे नंबर पर उसके दूर से संबंधी, लालू के सुपुत्र तेजस्वी, बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना.. इसके बारे में कुछ लिखने लायक नहीं है. इसके अलावा भ्रष्टाचारी पार्टी डीएमके के स्टालिन. ये पता नहीं कि वामपंथियों को बुलाया गया है कि नहीं.. लेकिन ये विलुप्त प्राणी ऐसे सूरवीरों के साथ हमेशा फोटोफ्रेम में नजर आते हैं.. तो कोई न कोई जरूर पहुंचेगा. मायावती को भी न्यौता दिया गया है शायद वो अपने बंगले को बचाने में बिजी हैं शायद वो न जाए. और अगर गईं भी तो सवाल ये पैदा हो जाएगा कि फोटोफ्रेम में किसे कौन सी जगह मिलेगी क्योंकि देश के नेता इस छोटी बात पर भी आपस में लड़ भिड़ते हैं.

तो ये है राहुल गांधी के नेतृत्व में बनी फौज जो 2019 में मोदी सरकार को हटाने के लिए एकजुट हो रही हैं. मेरा अनुमान ये है कि मोदी विरोधी गैंग में खुशी की लहर दौड़ेगी. यहां पहुंचे नेता कर्णाटक की राजनीति और कुमारास्वामी से ज्यादा प्रधानमंत्री मोदी की बातें करेंगे. देश को एक संदेश देने की कोशिश होगी कि पूरा विपक्ष मोदी खिलाफ एकजुट हो गया है. लेकिन सवाल ये है कि देश की जनता क्या इन चेहरे पर विश्वास करेगी? क्या ये देश के प्रजातंत्र को बचाना तो दूर समझने के भी काबिल हैं क्या?
लेकिन ये कहना पड़ेगा कि 2019 का चुनाव बीजेपी के उतना आसान नहीं होगा जितना 2014 था.

(वरिष्ठ पत्रकार मनीष कुमार के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)