योगी जी से भेंट : सदाशयता ही बन गयी जान- ए- बवाल

मेरी माननीय योगी जी से एकांत वार्ता हुई बाद मे महंत विश्वंभर नाथ मिश्र जी की बात हुई. हम दोनों ने ही काशी की अमूल्य विरासत उसकी गलियों सहित वहां विराजमान समस्त देवी देवताओं के साथ भवनों को संरक्षित करने का आग्रह किया।

New Delhi, May 23 : विगत शनिवार को मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ जी से काशी विश्वनाथ मंदिर परिक्षेत्र के विस्तारीकरण परियोजना को लेकर हुई एकांत वार्ता के बाद हुए विवाद से दिल को गहरी ठेस लगी. जिस तरह से मुझे नीचा दिखाने की कोशिश की गयी ऐसे तत्व द्वारा जो दशकों मेरा सहकर्मी रहा था.
यह बताने की जरूरत नही कि पिछले वर्ष अप्रैल में विस्तारीकरण को लेकर कतिपय समाचार पत्रों में प्रकाशित पाथवे और विश्वनाथ – माँ गंगा दर्शन योजना के विरोध में मुझे इसलिए उतरना पड़ा कि मेरा पौने दो सौ साल पुराना पैतृक भवन भी इस जद में आ रहा था. इसको लेकर गठित मेरे ही ब्रेन चाइल्ड “धरोहर बचाओ समिति” को कुछ विघ्न संतोषियो द्वारा मेरे मना करने के बावजूद विभिन्न राजनीतिक दल के नेताओं को शामिल करने के बाद मुझे उससे अलग हो जाना पड़ा था. लेकिन क्षेत्र के निवासियों के लिए अपने स्तर पर मैंने लड़ाई जारी रखी.

Advertisement

मैं कोई राजनेता नहीं, कलम का सिपाही हूँ. मगर पिछली आधी सदी से मेरी राजनीतिक प्रतिबद्धता एक दल विशेष के साथ जरूर रही. बच्चा था तब माननीय अच्युता जी ( देश के जाने पाने पत्रकार-सम्पादक व माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति अच्युतानंद मिश्र ) ने पितामह के आग्रह पर ज्ञानवापी में विश्वेश्वर शाखा में मेरा बपतिस्मा किया था और कालांतर में मुझे अपने ननिहाल कर्नलगंज ( जिला गोन्डा) में रह कर हाई स्कूल करने के दौरान राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की 1948 से बंद पड़ी शाखा को वहां पुनः शुरू करने का सुयोग मिला और आपका यह नाचीज सबसे कम उम्र का वहां कार्यवाह रहा.

Advertisement

खेल पत्रकारिता मेरी मात्र रोजी रोटी नहीं एक जुनून था. एक वो युग था जब पाठक पहले पन्ने से नही खेल पन्ने से अखबार पढ़ने की शुरुआत किया करते थे. देश के चार अखबारों का खेल प्रभारी होने के बावजूद बिना पर खोसे, बिना किसी आकांक्षा के मैं जनसंघ से भाजपा तक दल की निष्काम भाव से सेवा करता रहा. मतदान से दो दिन पहले अखबार से अवकाश लेकर क्षेत्र के तीन पोलिग स्टेशन देखा करता. 1996 में विधान सभा चुनाव के दौरान मुझ पर गोली चली, यह सर्वविदित है.
हालाँकि मैंने यह मानता हूँ कि पार्टी के छुटभैया पैराशूटर्स को छोड़ कर भाजपा और संघ के पदाधिकारियों ने कारिड़ोर परियोजना के समर्थन में कोई बयान नहीं दिया और यह मौन मेरे विरोध का एक तरह से समर्थन ही था. लेकिन उनकी चुप्पी मुझे सालती रही. इन्द्रासन तब डोला जब लोगो ने मुझे विरोधी खेमे मे बैठा पाया. भाजपा और विश्व हिन्दू परिषद के तमाम वरिष्ठ लोगों के फोन आने लगे. कुछ मुझसे गोदौलिया स्थित पब्लिसिटी सेंटर में, जहाँ मैं शाम को बैठता हूँ, आकर मिले. पिछले सप्ताह संघ के एक पदाधिकारी घर भी आए. एक माह पूर्व गंगा महासभा के, जो मेरे लिए परिवार की तरह है, सर्वेसर्वा आचार्य जितेन्द्रानंद सरस्वती अपने चच्चा से मिलने आए और उन्होने तोड़फोड़ कार्रवाई देखी भी.

Advertisement

स्थानीय वरिष्ठ जन खूब जानते है कि मैंने पार्टी को दिया ही है कुछ लिया कभी नही. इसलिए मेरा विरोध सभी को परेशान करने वाला था. पिछली 17 मई को एक उच्चस्तरीय बैठक में जिसमें मेरा एक मुँह बोला भतीजा भी शामिल था, तय हुआ कि माननीय मुख्यमंत्री जी के 19 मई के आगमन पर पदम जी की उनसे भेंट करायी जाय. वैसे भी माननीय योगी जी मुझसे अपरिचित नहीं थे.
खैर, 18 मई की शाम क्रिकेट प्रेमी जिलाधिकारी महोदय का जो मेरे प्रशंसकों मे रहे हैं, फोन आया कि भैया आप शनिवार को शाम साढ़े पांच से छह बजे के बीच उपलब्ध रहिएगा, मुख्य मंत्री जी आपसे मिलना चाहते है.

मेरा पाप उदय हो गया था शायद. मैं अपने अनुज समान पार्टी कार्यकर्ता को साथ लेकर धरोहर बचाने को लेकर आदोलनरत स्वामी अवमुक्तेश्वरानंद जी के पास त्रिपुरा भैरवी स्थित शंकराचार्य मठ गया जहाँ मंदिर दर्शनम अभियान के तहत उनका पड़ाव था. वहां स्वामी जी ने मुझे बताया कि सतुआ बाबा संतोष दास जी का फोन आया जिसमें उन्होंने योगी जी से मुलाकात की बात कही. स्वामी जी ने कहा कि मैं जाऊँगा मगर पदयात्रा करते हुए. मैंने उनसे विकल्प के बारे मे पूछा तो उन्होंने कहा कि शनिवार को उनका अपराह्न एक बजे के बाद लक्ष्मी कुंड स्थित काली मठ में पड़ाव है, मुख्यमंत्री जी वहां मुझसे मिल सकते है.
मैंने सतुआ बाबा से जो मेरे साथ वर्षों से फेसबुक पर जुड़े है, फोन पर स्वामी जी का संदेश दिया और आग्रह किया कि आप डी एम साहब को बता दें. सतुआ बाबा ने यह मुझ पर छोड़ दिया कि मैं डीएम योगेश्वर जी से इस बाबत बात करूँ. मैं रात्रि ग्यारह बजे तक फोन करता रहा उनके फालोवरो को स्वामी जी का संदेश लिखा दिया. मगर योगेश्वर भाई की सी एम साहब के साथ वीडियो कान्फ्रेसिन्ग तीन घंटा खिंच गयी.

सुबह सात बजे उनका फोन आया कि सुरक्षा कारणों से योगी जी का काली मठ जाना संभव नहीं. उन्होने फिर दोहराया कि मैं शाम को सुलभ रहूँ. मुझे निजी तौर पर निमंत्रण था. लेकिन मेरी सदाशयता यह कि क्षेत्र के लोग भी साथ रहें अपितु मैने डी एम साहब से अनुरोध किया कि मेरे साथ चार लोग और भी आ सकते है. उन्होंने स्वीकृति दे दी. तब मैंने पहले स्वामी जी को फोन कर डी एम महोदय का संदेश देते हुए कहा कि स्वामी जी आप अपना एक प्रतिनिधि मुझे दें जो मेरे साथ चले. उनका जवाब था कि आपसे बढ़िया मेरा प्रतिनिधि और कौन होगा.
मैंने चार लोगों से सम्पर्क किया और कहा कि शाम चार बजे मेरे घर आ जाएँ. सभी ने हाँ कहा. उनमे तीन मेरी “ब्रेन चाइल्ड” धरोहर बचाओ समिति के सदस्य थे जिनमे स्वयंभू अध्यक्ष भी शामिल था. उधर डी एम आफिस से फोन पर मुझे सूचित किया गया कि सी एम साहब से मुलाकात आठ बजे तय हुई है.

मुझे बताया गया कि चार में तीन लोग मेरे साथ जाने के इच्छुक नहीं है. चार बजे स्वामी जी के यहाँ मीटिंग में जो तय होगा, तदनुसार कदम उठाएँगे. मेरा माथा ठनका. खैर मैंने गाड़ी मंगायी और शाम साढ़े सात बजे सर्किट हाउस पहुंच गया. वहां पता चला कि स्वामी जी नंगे पाँव जुलूस के साथ पद यात्रा करते हुए सर्किट हाउस जाएंगे. उस समय भाजपा, संघ और उससे जुड़े संगठन के लगभग सभी वरिष्ठ पदाधिकारियों के अलावा राज्य मंत्री जो हमारे क्षेत्र के विधायक भी है पं नीलकंठ तिवारी और विधायक सौरभ श्रीवास्तव के साथ ही तमाम संत और पूरा प्रशासनिक अमला मौजूद था. खबर आयी कि स्वामी जी के जुलूस के साथ सर्किट हाउस पहुंचने पर अड़ने के चलते उनको लोहा मंडी से ही वापस लौटा दिया गया. पुलिस अधिकारियों ने उनसे आग्रह किया था कि जिन लोगों को साथ लेकर वह सी एम साहब से मिलने वाले है उनको ही लेकर वह जा सकते है. स्वामी जी को यह मंजूर नहीं था. जुलूस में शामिल कुपित स्वयंभू अध्यक्ष का फोन आया जिसमें उसक मुझे चिल्लाना ही समझ में आया.मैंने सतुआ बाबा से अनुरोध किया कि स्वामी जी के साथ योगी जी से मिलने वालों की कोई सूची यदि है तो उन्हें अंदर लाने का प्रबंध करें. उन्होंने बताया कि कुल सात लोगों की सूची है जिनमें संकट मोचन के महंत जी भी शामिल हैं. स्वामी जी ने पदयात्रा की मुझे कोई सूचना नहीं दी. पूरी तरह से संवादहीनता की स्थिति रही.

खैर, मेरी माननीय योगी जी से एकांत वार्ता हुई बाद मे महंत विश्वंभर नाथ मिश्र जी की बात हुई. हम दोनों ने ही काशी की अमूल्य विरासत उसकी गलियों सहित वहां विराजमान समस्त देवी देवताओं के साथ भवनों को संरक्षित करने का आग्रह किया.
यह भेंट कतिपय लोगों को नागवार गुजरी. उन्होंन न जाने कैसे सोच लिया कि मैं संघर्ष समिति के बतौर प्रतिनिधि के तौर पर मिला. उन बेचारो को यह नहीं पता कि मुझे निजी स्तर पर आमंत्रण मिला था. सच तो यह कि मेरी सदाशयता ही जान-ए-बवाल बन गयी.

(वरिष्ठ पत्रकार पद्मपति शर्मा के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)