महाबली प्रधानमंत्री जी, जलन होती है आपके नसीब से

महाबली जवाब दीजिये कि, अब डर क्यों लगने लगा है मुझे इस देश के चुने हुए प्रधानमंत्री से कि “ये मोदी है, ज्यादा बोले तो लेने के देने पड़ जाएंगे।”

New Delhi, May 24 : महाबली प्रधानमंत्री महोदय,
महाबली आप कैसे हैं? हम तो मामूली हैं, सो हम विचलित हैं, माथा सुन्न है। अवाक् हैं हम।
आप सहज़ हैं महाबली? महाबली आपको पता है न आपके मुठ्ठी में बन्द महफूज़ मुल्क के सबसे दक्षिणी कोने पे सरकारी गोली चली है और 11 भारतीय नागरिक मारे गए हैं। आपको पता है न, ऐसा पहली बार हुआ है महाबली, महाबली पहली बार हुआ जब इस देश का नागरिक इस मुल्क में पीने को साफ़ पानी और साँस लेने खातिर शुद्ध हवा मांगता हुआ शहीद हो गया। हाँ महाबली, देश छोड़िये महराज, दुनिया में “पर्यावरण शहीद” देने वाले आप दुनिया के पहले शासक हैं। दुनिया की कई हुकूमतों ने कई जाने लीं, सभ्यता की कई लड़ाईयां कई कारणों से लड़ी गयीं लेकिन एक आज़ाद लोकतांत्रिक देश में कोई नागरिक पानी हवा मांगता हुआ मारा जायेगा ये नियति ने सिर्फ आपके नसीब में लिखा था, जलन होती है आपके नसीब से। इतना जलन कि देश जलने लगा है मालिक।
आपकी “पहली बार हुआ” वाली उपलब्धियों की जो नायाब स्वर्णिम लिस्ट है न उसमे ये काला अध्याय किसी सोने की कलम से दर्ज कर लीजिए। इतिहास के सारे पन्ने पलट लीजिये और खोजवा के देखिये, कभी नहीं, कहीं नही हुआ ये।

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महाबली आप जानते हैं न कि जब इतिहास लिखा जायेगा तो वो कांग्रेस, भाजपा, ममता, लालू, राहुल, अमित, कर्नाटक, जेडीएस, युदुयुरप्पा को समेट के ताज़ा अख़बार की तरह नही लिखा जायेगा। इतिहास की अपनी लेखन शैली होती है। वहां सभी लोग और सब कुछ दर्ज नही होता। न ही इतिहास किसी दलाल संपादक के द्वारा संभाल के लिखा जाता है।
इतिहास बहुत निर्मम हो कर लिखता है। वो लिखेगा कि अपने आदिकाल के एकमात्र स्वर्णिम पूर्व वैदिक काल से चला भारत जब 21वीं सदी में एक महाबली के अधीन पुनः खुद को स्वर्णिम शासन के अधीन महान भारत बोल इतरा रहा था और लोकतंत्र केसरिया धोती धारण किये आर्यावर्त के 21 खंडों में घोलटा हुआ तोंद पसार था, जिसके सभी नागरिक प्रति दिन डेढ़ जीबी डाटा खपत कर आनन्द में जीवन खर्च कर रहे था तथा पूरा विश्व जब भारत की इस निश्चिंतता और उसके सुख वैभव से ईर्ष्या करता था ठीक उसी समय देश के एक नगर में शुद्ध पानी और शुद्ध हवा मांग रहे नागरिकों की गोली मार हत्या करवा दी गयी थी। ये लोग देश के लिए खतरा बन गए थे।

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मैं सोचता हूँ कि जब इतिहास का कोई विद्यार्थी इस अध्याय को पढ़ेगा तो केलेज़े पर मुट्ठी पीट गिर पड़ेगा कि सर पकड़ के बेहोश होगा? उसपे क्या गुजरना चाहिए? वो कैसे समझ पायेगा उस तात्कालीन भारत के इस विरोधाभास को कि जहां मोडेश्वर नामक राजा के समय किसी चीज़ की कमी नही थी स्वर्गिक भारत में। जहां बच्चे भी स्वच्छता के अभियान के कसम के साथ पैदा होते थे और शून्य से पांच वर्ष की अवस्था में भी माँ की गोद में नही बल्कि सरकार द्वारा बनवाये गये शौचालय में जा करते थे उसी मुल्क में कोई पानी हवा मांगते कैसे मार दिया गया?
फिर कुछ शिक्षक उस काल में भी हिम्मत करेंगे और इस अध्याय का अर्थ समझाते हुए पढ़ायेंगे, “बच्चों ये भारत का ताम्र पाषाण काल था जब किसी तांबा निकालने वाली शक्तिशाली कम्पनी ने सोने की चिड़िया कहाने वाले देश को खरीद लिया था”।
बस, बच्चे सब समझ जाएंगे महाबली।

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महाबली जवाब दीजिये कि, अब डर क्यों लगने लगा है मुझे इस देश के चुने हुए प्रधानमंत्री से कि “ये मोदी है, ज्यादा बोले तो लेने के देने पड़ जाएंगे।”
क्यों भय लगता है अब कि चुना हुआ प्रतिनिधि हमें बोलने पे, टोकने पे,लिखने पे चुन चुन कर मारेगा।
अब जब हवा और पानी मांगने से गोली मिलेगी तो वो मुल्क किस हिम्मत से आपसे नौकरी,रोजगार मांगेगा महाबली?
महाबली हमे गोली मार दोगे?
ये मेरे आस पास के लोग नही समझ रहे हैं महाबली।
इन्हें ये सब एक घटना की तरह लगा है बस। fb पे तीन दिन का ट्रेंड है इनके लिए ये। वोट का कुछ समीकरण है, कुछ के लिए कंपनी की आर्थिक राजनितिक शक्ति पे आलोचनात्मक व्याख्यान का कच्चा माल। ये बस एक खबर है महाबली मेरे आस पास के लोगों के लिए। वे बहुत परेशान नही हैं इसे लेकर, बस हाँ किसी के लिए बुरी लगने वाली खबर है किसी के लिए इग्नोर करने वाली।
पर मैं उनमें नही हूँ महाबली, मैं कमजोर नागरिक हूँ,मैंने कई बार सड़क पे आंदोलन किया है कुछ मांगने के लिए। इसलिए,मेरे लिए ये खबर या घटना नही है, मेरे लिए ये एक चेतावनी है, एक डर है महाबली।

मुझे अब समझना होगा कि सरकारों से कुछ मांगोगे तो गोली मार दिया जाएगा।गोली मार दिया जाएगा अगर तुम कुबेरों के चारदीवारी के पास आ हवा पानी तक भी मांगोंगे तो।राजा है,मंत्री हैं,सेठ हैं,साहूकार हैं..इन्हें करने दो देश का कल्याण..तुम चूं भी किये तो गोली मार देंगे।
आज ये याद कर सिहर रहा हूँ कि पिछले साल इन्ही गर्मियों में पर्यावरण को लेकर बालू माफिया के विरुद्ध कूद रहा था मैं। मार देते वो, एक ट्रक का धक्का तो लगना था,इन 11 से पहले चला जाता। तब नही लगा था डर, आज काँप रहा हूँ। ये कैसा समय हमें थमा रहे हो महाबली?मेरे लिए ये दक्षिण के किसी प्लांट की हिंसक घटना नही संकेत है उस आने वाले समय के भयावह मंजर का जब जनता हवा पानी के लिए किसी सरकार और उसकी कम्पनी के रहमो करम पे होगी, हमारे सीने पे विकास अपना कारखाना गाड़ेगा और हम अपनी ही जमीन में दफ़न पाये जाएंगे। इतिहास अपनी खुदाई में भी हमे नही पायेगा ,लोहे और मशीनें निकलेंगी,खोजने से भी हमारे निशान न होंगे,हड्डियां पीस के चूरन बना दी गयी होंगी।

महाबली आप तो चाय बेचते थे। कभी तो किसी गरीब से दिल लगा होगा, दोस्ती हुई होगी? उसके दुःख, उसका संघर्ष देखा होगा? और फिर ये अडानी, अम्बानी, अग्रवाल जैसे कुबेरों की संगत कब पकड़े महाबली?
ये क्या दोस्ती निभायी आपने जब 2009 से रुके आदेश को 2014 में दोबारा सरदार मनमोहन के द्वारा रोके जाने के बाद भी उसी साल सरकार बनते पहला काम यही किया कि, दोस्त की वेदांता कम्पनी के लिए नियमों में संशोधन के नाम पर पूरा नियम बदलते हुए चुपके से प्लांट लगाने की वैद्यता को सरकारी प्रमाण पत्र दे दिया।
ये कम्पनी दुनिया भर में अपने पर्यावरण दायित्वों के अवहेलना के मामले में सबसे कुख्यात कम्पनी है, क्या ये लेखक नीलोत्पल की कल्पना है महाबली?
क्या ये झूठ है कि ये कंपनी जहां भी प्लांट लगा खनन और उत्पादन कर रही वहां कहीं भी पर्यावरण के नियमों को ये ताक पे रख ही काम रही?
मैं ओड़िसा के लांजीगढ़,कालाहांडी,रायगगड़ा वाले बॉक्साइट खनन का किस्सा तो सुना ही नही रहा अभी महाबली।

मैं डोंगारिया कोंध आदिवासियों के जीवन का हाल भी लिख आपको परेशान नही करना चाहता न उनके देवता राजा नियाम की लोककथा सुना के वर्तमान भारत के सर्वमान्य एकमात्र लोकतांत्रिक देवता “राजा मोदाम” का अपमान करना चाहता हूँ।
मैं तो बस ये जानना चाहता हूँ लखपतिया मशरूम सजी थाली में क्या तूतीकोरिन के घर का पानी छिड़क दूँ तो खा पाइयेगा? एक ग्लास महाबली, बस एक ग्लास पानी पिजियेगा तूतीकोरिन के मारे लोगों के घड़े का?
एक दिन कालाहांडी और लांजीगढ़ की हवा भर दूँ पीएमओ के चैम्बर में? घुंट के खतम हो जाइयेगा महाबली। चाय बेचते थे न, जहर के नाले किनारे बसे जीवन का संघर्ष समझो महाबली।

भरम में थे हम और वे सब जिन्हें लगता है कि किसी राज्यपाल का गुलाम हो जाना या किसी अयोग्य का शपथ ले लेना लोकतंत्र का मरना है। बेवकूफ हैं वे लोग जिन्हें लगा था विधायकों का बिकना होता है लोकतंत्र का खतरे में पड़ना।
महाबली, जब देश का नागरिक प्रकृति के दिए हवा और पानी पर से भी अपना दावा खो दे, ये है लोकतंत्र का मरना।इसे राज्य और नागरिक के अधिकार का राजनितिक टकराव बोल साधारण कहानी मत बनाना महाबली।
ये संकट मनुष्यता के अस्तित्व का है।
क्या सामर्थवान , गैरसमर्थवान से मनुष्य होने की ही शर्त छीन लेगा और फिर अपने शर्तों पे उसे बस वस्तु की भांति दुरपयोग में लाएगा और वस्तु की आयु भर उसका दोहन करेगा।इसे ही उद्योग से मिलने वाला रोजगार कहते हैं न तुम्हारे पालतू अर्थशास्त्री? सरकार उद्योग को सब देगी न? जमीन,पूंजी,श्रम और सुरक्षा। वाह सरकार। हम नागरिक समझे थे खुद को और हम तो हैं बस श्रम।उपयोग में आ चुका दोहित आदमी कारखाने से बाहर ढेर में डाल दिया जायेगा। फिर कचरे की भांति आदमी भी बहा दिया जायेगा?
यही है न ओद्योगिक क्रांति तुम्हारा?
एक कंपनी ने हम पर दो सौ वर्ष राज किया। हम सोचे कि आज़ाद हो कर 21वीं सदी में आ चुके होंगे। आज एक कंपनी के दरवाजे हवा पानी मांगते मर के हमे पता चला, हम एक कदम भी नही बढ़ सके हैं महाबली।हमे सीधे 200 साल पीछे भेज देने वाले तुम्हारे टाइम मशीन के लिए क्या दुआ दूँ महाबली?

आपके लिए राहत ये है महाबली कि उत्तर,पश्चिम,पूरब कहीं की भी जनता इस घटना पे बेचैन नही।
उन्हें लगता है ये सब इतना भी जरुरी और खतरनाक नही है। इनके लिए ममता के बंगाल वाले मौत,लालू नीतीश के राज का अपहरण,योगी राज्य का बलात्कार जो मसाला देता है व सनसनाहट हवा पानी की मांग और सुदूर दक्षिण की राजनीती में कहाँ?
साहित्य भी मनुष्यों को नही, मनुष्यों में दलित,अवर्ण,सवर्ण को देख रहा है, आप निश्चिंत रहें।साहित्य के लिए तो अब भी कविता में चिड़िया, हरी दूब, गंगा का निर्मल पानी,पहाड़ी,जंगल,पूर्वा,पछिया, सब है ही। इनको क्या चिंता?

मेरा भाग्य कि जंगल के पास से हूँ। जिंदल से लेकर अडानी के प्लांट का कहर देख रहा हूँ अपने आस पास। उन कुबेरों से लड़ रहे आम जन के हौंसले को भी देख रहा हूँ। इसलिए तो डरता हूँ, किसी दिन किस गोली पर किस गरीब का नाम लिखा होगा और उसे चलने का आदेश मिल जाएगा महाबली, हम यही सोच कांपते हैं।
कंपनी का शासन है। कंपनी का देश है। कंपनी के बहाल कर्मचारी हो आप महाबली। कंपनी में मजदूर हैं हमारे लोग।
कम्पनी से बाहर कुछ भी नही।कम्पनी का पक्ष है,उसी का विपक्ष है। “डेमोक्रेसी” ये कंपनी का विज्ञापन है।संसद कार्यालय है कंपनी का।
देश फैक्ट्री है।देश पैसा पैदा कर रहा है।उन पैसों से पैसे वाले हवा पानी सब खरीद चुके हैं।सुबह उठ के जोर से साँस ले रहे नागरिक को अहसास भी नही होगा कि उसकी हर सांस गिरवी है किसी कम्पनी के।
महाबली आपके खून में पैसा है न? आपके खून में खून क्यों नही है महाबली? जय हो।

(नीलोत्पल मृणाल के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)