मीडिया का मूल संकट

यह देखकर हैरत होती है कि पत्रकारिता के क्षेत्र में आने वाले युवक-युवतियों को न भारत और विश्व के इतिहास की जानकारी होती है। न स्वतंत्रता संग्राम की।

New Delhi, Jul 12 : पिछले दिनों एक यूनिवर्सिटी के पत्रकारिता विभाग में स्नातकोत्तर के अंतिम वर्ष के छात्र-छात्राओं से मुलाकात का अवसर मिला। मुझे परीक्षक के तौर पर उनके प्रैक्टीकल के प्रोजेक्ट देखने थे। उनके आधार पर प्रश्न पूछने थे और उत्तर कीगुणवत्ता के आधार पर अंक देने थे। कुल अठारह परीक्षार्थी थे। उनमें से दो गैर हाजिर थे। आप यकीन करेंगे ? वे भले ही स्नातकोत्तर अंतिम वर्ष के छात्र थे परंतु उन्हें पत्रकारिता से संबंधित बुनियादी बातों तक की जानकारी नहीं थी। पत्रकारिताकी परिभाषा वह नहीं जानते थे। एडिट पेज क्या होता है। एडिट नोट क्या होता है। किसी समाचार-पत्र की लीड स्टोरी कहां होती है। टाप बाक्स किसे कहते हैं। हैडिंग, सब हैडिंग, क्रासर क्या होते हैं। फोटो की एडिटिंग कैसे की जाती है। किसउपकरण से की जाती है। उन्हें जानकारी नहीं थी। जब उनसे जानने की कोशिश की गयी कि मास काम डिपार्टमैंट में उन्होंने दाखिला क्यों लिया, जबकि उनकी रुचि एक कुशल, जागरूक पत्रकार बनने में है ही नहीं तो बड़े दिलचस्प जवाब सुननेको मिले। किसी ने कहा कि वह स्पोर्टस में हैं। ज्यादा समय वहां देते हैं। सोचा, ये कोर्स तो आसानी से हो जाएगा। किसी ने कहा कि उन्हें बताया गया था कि सबसे आसान यही है। डिग्री-डिप्लोमा लेने के बाद किसी न किसी अखबार में काममिल ही जाएगा।

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वे लोग पढ़ते क्यों नहीं हैं और उन्हें पत्रकारिता से संबंधित बुनियादी जानकारी क्यों नहीं हैं। इसके जवाब में भी उनके चौंकाने वाले जवाब थे। किसी ने कहा कि पढ़ते तो हैं परंतु जो आपने पूछा है, वह अब याद नहीं आ रहा। किसी ने कहा कि उसका रिश्तेदार बीमार है। हास्पीटल में भर्ती है। साक्षात्कार की तैयारी के लिए समय नहीं मिल पाया। यानी एक से एक नायाब बहाना। साक्षात्कार निपट गये। मैं वापस लौट आया लेकिन यह सोचने पर बाध्य हो गया कि जब ये सोलह याअठारह होनहार सक्रिय पत्रकारिता के क्षेत्र में उतरेंगे तो कैसे पत्रकार साबित होंगे। इसका जवाब मुझे एक दूसरी घटना से मिल गया। एक समाचार चैनल के संपादक ने दिल का दुखड़ा साझा करते हुए बताया कि एक प्रमुख राजनीतिक दल काअंग्रेजी भाषा में प्रेस नोट आया था। उन्होंने कुछ ही समय पहले भर्ती हुई एक लड़की से कहा कि इसके आधार पर एक छोटी सी खबर बना दें। उसमें स्टेट प्रेजीडैंट के हवाले से कोई बात कही गयी थी। जब वह खबर ओन एयर होने वाली थी, तबउनकी मेज पर आई तो यह देखकर उनका सिर चकरा गया कि उस लड़की ने स्टेट प्रेजीडैंट को प्रदेश के राष्ट्रपति लिखा हुआ था। हक्के-बक्के संपादक महोदय ने जब उसे बुलाकर कैफियत तलब की तो उसने बड़ी मासूमियत से कह दिया किप्रेजीडैंट राष्ट्रपति ही तो होता है सर। इसमें मैंने क्या गलत लिख दिया है, जो आप नाराज हो रहे हैं ?

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कुछ साल पहले ही अस्तित्व में आई एक दूसरी यूनिवर्सिटी के मास काम डिपार्टमैंट से फोन आया कि पत्रकारिता के छात्रों का स्नातकोत्तर का पाठ्यक्रम संशोधित करना है। क्या आप समय निकाल सकते हैं। वहां जाना हुआ। मेरे अलावा जोचार अन्य लोग इसके लिए आमंत्रित किए गए थे, उनमें एक प्रमुख समाचार चैनल के संपादक, एक विज्ञापन विशेषज्ञ, एक वेब पोर्टल से जुड़े संपादक और एक भूतपूर्व कुलपति शामिल थे। पत्रकारिता के छात्रों को जो अब तक पढ़ाया जाता रहाहै, वह पाठ्यक्रम हमारे सामने रखा गया। उस पर हम लोगों की राय पूछी गयी। हमनें निःसंकोच उन्हें बताया कि यह बाबा आदम के जमाने का कोर्स है। अब पत्रकारिता की जरूरतों के हिसाब से देखें तो यह कोर्स पूरी तरह अप्रासंगिक हो चुकाहै। आज जिस तरह की पत्रकारिता हो रही है। मीडिया हाउस को जिस तरह की जानकारी और प्रशिक्षण से युक्त पत्रकारों की जरूरत होती है, इस कोर्स को पढ़कर उत्तीर्ण होने वाले छात्र वहां किसी काम के नहीं हैं। न इस कोर्स में वेबपत्रकारिता से संबंधित कोई विषय है। न सोशल मीडिया पर कुछ खास है। न इलैक्ट्रोनिक मीडिया की जरूरतों के मद्देनजर पाठ्यक्रम है। यह सब तो आधुनिक पत्रकारिता का अंग हैं। समाचार-पत्र और पत्रिकाओं में भी बहुत बड़े पैमाने पर नएतौर तरीके शुरू हो चुके हैं। यदि इस पाठ्यक्रम में वह सब नहीं रखा जाएगा तो यहां से निकलने वाले पत्रकारों को कोई काम नहीं देगा। यदि काम मिला भी तो उनके हिसाब से तैयार होने में उन्हें काफी वक्त लग जाएगा।

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छह घंटे की कड़ी मशक्कत और सलाह-मशविरे के बाद अंततः हम लोगों ने आज के युग की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए मास काम डिपार्टमैंट का नया पाठ्यक्रम तैयार किया, जिसमें उन सभी चीजों का ध्यान रखा गया, जो किसी भी पत्रकार के लिए बेहद जरूरी हैं। पुलिस, प्रशासन, अलग-अलग विभागों की कार्यप्रणाली से लेकर संसद, विधानसभाओं, मंत्रालयों, कैग, सीईसी, सीबीआई, आईबी, दूसरी एजेंसियां और विभाग कैसे काम करते हैं। इनकी भूमिका क्या है। महत्व क्याहै। खोजी पत्रकारिता से संबंधित विषय उसमें जोड़े गए। यानी किसी समाचार-पत्र अथवा चैनल से जुड़ने के बाद किसी पत्रकार या सब एडिटर को शुरू में और उसके उपरांत क्या-क्या जिम्मेदारियां मिलती हैं। उन्हें कौन से एसाइनमैंट मिलते हैं।कैसे वह वहां पत्रकारिता की व्यवहारिक दिक्कतों का सामना करते हैं और कौन सी चीजों की उन्हें जरूरत महसूस होती है, जो कि पाठ्यक्रम में कभी पढ़ाई या बताई ही नहीं गयी, वह सब हम लोगों ने पाठ्यक्रम में शामिल किया। यह भीपाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया गया कि पत्रकारिता का कोर्स करते-करते ही उन्हें विभिन्न विषयों पर डाक्यूमैंट्री बनाने, शोध परक लेख लिखने आदि की ट्रेनिंग दी जाए। एक साप्ताहिक-पाक्षिक अथवा मासिक पत्र मास काम डिपार्टमैंट निकाले,जिसका संपादक उनके पत्रकारिता विभाग छात्र ही करें। वही उसमें लिखें। उसका ले आउट तैयार करें। इसके अलावा चौथे सेमेस्टर को पूरी तरह प्रैक्टिकल में तब्दील कर दें और उस दौरान समाचार चैनलों, समाचार-पत्रों और वेब पोर्टल सेलेकर विज्ञापन जगत और जन संपर्क विभागों के वरिष्ठ लोगों को आमंत्रित कर उनसे छात्रों का सीधा संवाद कराएं ताकि वे उन्हें आगे की चुनौतियों और तैयारियों के संबंध में व्यवहारिक ज्ञान दे सकें। मीडिया हाउस के फैसला करने वाले लोगोंके संपर्क में आने से छात्रों का आत्मविश्वास भी बढ़ेगा और यह जान पहचान उन्हें काम ढूंढने में मददगार भी होगा।

यह देखकर हैरत होती है कि पत्रकारिता के क्षेत्र में आने वाले युवक-युवतियों को न भारत और विश्व के इतिहास की जानकारी होती है। न स्वतंत्रता संग्राम की। आजादी किस कीमत पर मिली है। विभाजन की वजहें क्या थीं। गांधी जी से लेकरनेहरू, पटेल, अबुल कलाम आजाद, राजेन्द्र प्रसाद, सरदार भगत सिंह, सुभाष बाबू जैसी शखिसयतों का भारत की आजादी और निर्माण में क्या योगदान है, इसकी भी उन्हें जानकारी नहीं होती है। स्वतंत्रता मिलने के उपरांत कौन सी बड़ीराजनीतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक घटनाएं घटी हैं। क्या बड़े बदलाव हुए हैं। देश पर आपातकाल कैसे थोपा गया। आपरेशन ब्लू स्टार की नौबत क्यों आई। आर्थिक उदारीकरण का दौर कब शुरू हुआ। भूमंडलीकरण के नफे-नुकसानक्या रहे हैं। आधुनिक भारत का इतिहास क्या है और हमारे नायक कौन-कौन हैं। पाकिस्तान और चीन के साथ हुए युद्धों की परिणति क्या रही और किस तरह की सुरक्षा चुनौतियां हमारे सामने खड़ी हैं, इस सबकी सतही जानकारी तक उन्हें नहींहै। मुझे जब भी विश्वविद्यालयों अथवा महाविद्यालयों में पत्रकारिता के छात्रों से रू-ब-रू होने का अवसर मिलता है, हमेशा उन्हें एक सलाह जरूर देता हूं कि आप लोग भारत की जानी-मानी हस्तियों की जीवनी अवश्य पढ़ें। भारत ही नहीं, दुनियाकी ऐसी चुनींदा हस्तियों की जीवनी अवश्य पढ़ें, जिन्होंने अलग-अलग क्षेत्रों में कामयाबी के झंडे बुलंद किए हैं। इससे न केवल उन्हें समकालीन इतिहास और घटनाओं की जानकारी मिलेगी, बल्कि वे सब कैसे उस मुकाम तक पहुंचे, इसका भीपता लगेगा। उनके संघर्ष और चुनौतियों से अवगत होंगे। जो भी पत्रकारिता क्षेत्र में आना चाहते हैं, उनके लिए बेसिक सा ज्ञान बहुत आवश्यक है, जो नई पीढ़ी में देखने को नहीं मिल रहा है। और यह आज की पत्रकारिता के सामने बहुत बड़ा संकट है, जिससे उबरना बेहद जरूरी है। अज्ञानता का यह संकट पत्रकारिता की गंभीरता को ही कम नहीं कर रहा, साख पर बट्टा भी लगा रहा है।

(वरिष्ठ पत्रकार ओमकार चौधरी के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)