डंके की चोट पर : गोरखपुर मेडिकल कॉलेज का प्रिंसिपल आरके मिश्रा है बच्‍चों की मौत का जिम्‍मेदार !

गोरखपुर मेडिकल कॉलेज में जो हादसा हुआ है वो दिल दहला देने वाला है। मौत के इस मंजर पर सियासत हो रही है। लेकिन, इस कांड का अगर कोई प्रारंभिक जिम्‍मेदार है तो वो है बीआरडी मेडिकल कॉलेज का प्रि‍ंसिपल आरके मिश्रा।

New Delhi Aug 13 : गोरखपुर के बाबा राघवदास मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल आरके मिश्रा को सस्‍पेंड किया जा चुका है। आरके मिश्रा कह रहे हैं कि उन्‍होंने अपने सस्‍पेंशन से पहले ही अपना इस्‍तीफा सरकार को भेज दिया था। तो क्‍या आरके मिश्रा को पता था कि इस हादसे की पहली गाज उन्‍हीं पर गिरने वाली है। यकीनन पता था। क्‍योंकि इस मानव त्रासदी में भ्रष्‍ट सिस्‍टम की बजबजाहट नजर आ रही है। इसी बजबजाहट और भ्रष्‍ट सिस्‍टम के सड़ते हुए कीचड़ को उठाकर नेता एक दूसरे पर फेंक रहे हैं। कीचड़ में डुबकी लगाने के बाद उन्‍हें लगा रहा है कि जैसे उन्‍होंने गंगा स्‍नान कर लिया है। यही हाल गोरखपुर मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल आरके मिश्रा का है। मिश्रा सोच रहे हैं कि इस्‍तीफा देने भर से वो पाक साफ हो गए हैं। जबकि डंके की चोट पर कहा जा रहा है कि इन मौतों का प्रारंभिक जिम्‍मेदार मिश्रा ही है।  

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दरसअल, आॅक्‍सीजन कंपनी को पैसों के भुगतान में रिश्‍वतकांड की बू आ रही है। कहा जा रहा है कि रिश्‍वत की रकम ना मिलने के कारण ही ऑक्‍सीज की सप्‍लाई करने वाली कंपनी पुष्‍पा सेल्‍स का पैसा रोका गया। भ्रष्‍ट तंत्र की सांसों को कायम रखने के लिए रिश्‍वत की ऑक्‍सीजन की जरुरत थी। जिससे 68 बच्‍चों की सांसे उखड़ गईं। उनकी जिदंगी की रफ्तार थम गई। गोरखपुर मेडिकल कॉलेज के सेंट्रल ऑक्सीजन पाइपलाइन डिपार्टमेंट के कर्मचारी ने अस्‍पताल प्रशासन को 10 अगस्‍त को एक चिट्ठी लिखी थी। जिसमें बताया गया था कि ऑक्‍सीजन की रीडिंग नौ सौ तक पहुंच गई है। यानी उस रात को भी ऑक्‍सीजन की सप्‍लाई मुश्किल थी। इस चिट्ठी में ये भी लिखा था कि पुष्‍पा सेल्‍स का पुराना भुगतान ना हो पाने के कारण ऑक्‍सीजन की सप्‍लाई कंपनी की ओर से रोक दी गई है।

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सबसे खास बात ये है कि ऑक्‍सीजन की कमी की जानकारी तीन अगस्‍त को ही दे दी गई थी। ये बात हर किसी को पता थी। आरके मिश्रा को ये भी पता था कि दस अगस्‍त तक का ही स्‍टॉक उनके पास है। फिर भी जनाब छुट्टी मनाने ऋषिकेश चले गए। कंपनी का कुल 63 लाख रुपए का बकाया था। नियमों के मुताबिक अस्‍पताल प्रशासन को ये हक नहीं है कि वो दस लाख रुपए से ज्‍यादा का उधार करे। फिर भी पुष्‍पा कंपनी ने अस्‍पताल की जरुरतों को ध्‍यान में रखते हुए और ये सोचते हुए ऑक्‍सीजन की सप्‍लाई जारी रखी कि देर-सवेर पैसा मिल ही जाएगा। लेकिन, एक अगस्‍त को पुष्‍पा कंपनी ने ऑक्‍सीजन की सप्‍लाई से हाथ खड़े कर दिए। गोरखपुर मेडिकल कॉलेज से लेकर लखनऊ के स्वास्थ्य महानिदेशालय तक को पता था कि ऑक्‍सीजन की कमी कभी भी संकट का कारण बन सकती है।

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लेकिन, भ्रष्‍ट तंत्र में शामिल अफसरों ने अपने रिश्‍वत की ऑक्‍सीजन के चक्‍कर में ये बातें मुख्‍यमंत्री योगी आदित्‍यनाथ तक से छिपाए रखीं। योगी ने एक महीने में दो बार यहां की समीक्षा की लेकिन, किसी ने उन्‍हें कुछ नहीं बताया। आरके मिश्रा की ओर से मुख्‍यमंत्री को मेडिकल कॉलेज के आर्थिक जरुरतों के बारे में कुछ भी नहीं बताया गया। कहा-सब ठीक है सर। कहा तो ये भी जा रहा है कि कुछ पैसा पुष्‍पा एजेंसी के लिए पांच तारीख को ही जारी कर दिया गया था। लेकिन, वो रकम 11 तारीख तक भी उनके पास नहीं पहुंची। इसका जिम्‍मेदार अगर आरके मिश्रा नहीं हैं तो कौन हैं ? क्‍यों उन्‍होंने तमाम बातों को मुख्‍यमंत्री से छिपाए रखा। जबकि वो बार-बार यहां के हालात सुधारने के निर्देश दे रहे थे। जाहिर है इस त्रासदी का जिम्‍मेदार एक भी व्‍यक्ति बचेगा नहीं। लेकिन, सवाल उन 68 चिरागों का है जो बुझ गए हैं।