सीधी बात : गोरखपुर ट्रेजडी से सबक लीजिए, राजनीति मत कीजिए

गोरखपुर ट्रेजडी के बाद इस पर राजनीति हो रही है। हर दल योगी आदित्‍यनाथ पर फायर हो रहा है। होना भी चाहिए। लेकिन, साथ के साथ सबक भी लें तो बेहतर होगा।

New Delhi Aug 14 : गोरखपुर के तमाम घरों में मातमी सन्‍नाटा है। मीडिया को टीआरपी वाली खबर मिल गई है। विपक्ष को बीजेपी और योगी आदित्‍यनाथ को घेरने का मौका मिल गया है। कोई स्‍वास्‍थ्‍य मंत्री का इस्‍तीफा मांग रहा है तो कोई मुख्‍यमंत्री का। जो हो रहा है उसे नहीं रोका जा सकता है। रोकना भी नहीं चाहिए। लेकिन, बच्‍चों की मौत पर सियासत करने से पहले नेताओं को अपने गिरेबान में झांकना जरुर चाहिए कि क्‍या उनके कार्यकाल में कभी ऐसा नहीं हुआ। क्‍या उनका दामन पाक साफ है। 68 बच्‍चों की मौत के जो भी गुनाहगार हैं उन्‍हें कड़ी से कड़ी सजा मिलनी चाहिए। लेकिन, इस वक्‍त जरुरत इस बात की है कि क्‍या यूपी और देश के दूसरे प्रदेशों के अस्‍पताल इस कंडीशन में हैं कि वहां एेसी कोई घटना नहीं हो सकती है। क्‍या एक भी नेता इस बात का दावा कर सकता है। अपनी छाती ठोंक सकता है। शायद नहीं।

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गोरखपुर की ट्रेजडी से इस वक्‍त यूपी सरकार के साथ-साथ बाकी प्रदेश की सरकारों को भी सबक लेने की जरुरत है। ताकि देश के किसी भी कोने में इस तरह कि कोई घटना ना हो। नेताओं का काम राजनीति करने का है। बेशक वो अपने इस काम को करते रहें। उन्‍हें जो बेहतर लगता है करें। वो पूरी तरह स्‍वतंत्र हैं। लेकिन, कांग्रेस और दूसरे दलों के नेताओं को इसके साथ-साथ उन राज्‍यों के सरकारी अस्‍पतालों को भी देखना चाहिए जहां उनकी सरकारें हैं। दिल्‍ली में पिछले साल डेंगू और चिकनगुनिया से सैकड़ों लोगों की मौत हुई। खुशकिस्‍मती की बात है कि अब तक दिल्‍ली में ऐसा कुछ भी देखने को नहीं मिला है। दिल्‍ली सरकार को गोरखपुर ट्रेजडी से सबक लेने की जरुरत है। उसे चाहिए कि वो दिल्‍ली के सरकारी अस्‍पताल में ऐसे कदम उठाए कि इस तरह की घटना की पुनरावृत्ति ना हो।

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देश के सरकारी अस्‍पतालों का हाल किसी से छिपा नहीं है। कहीं डॉक्‍टर नहीं होते हैं तो कहीं दवाएं। कहीं सबकुछ है तो इलाज की जगह नहीं। कहीं संसाधनों का रोना है तो कभी व्‍यवस्‍थाओं का। लेकिन, कमोवेश देश के ज्‍यादातर सरकारी अस्‍पतालों का यही हाल है। तभी तो कभी सरकारी अस्‍पतालों में बदहाली की खबर पश्चिम बंगाल से आती है तो कभी हरियाणा से। कहीं काई आईसीयू में दम तोड़ता है तो कहीं किसी की आंख की रोशनी चली जाती है। ये सब होता है बड़े पैमाने पर। सरकारें आती हैं और चली जाती हैं। लेकिन, अफसोस सरकारी अस्‍पतालों के हालात नहीं बदल पाते हैं। कुछ सरकार व्‍यवस्‍थाओं को बदलना भी चाहती हैं तो कई बार भ्रष्‍ट तंत्र इस बदलाव में रोड़ा बन जाता है। क्‍योंकि कामचोरी और घूसखोरी का कीडा हर जगह है।

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इसीलिए हम ये कह रहे हैं कि गोरखपुर में जो हुआ उससे बाकी सरकारों को सबक लेने की जरुरत है। हो सकता है कि देश के कई अस्‍पताल ऐसे हों जहां मेडिकल एक्‍यूपमेंट की सप्‍लाई निजी कंपनियां करती हों। हो सकता है कि उनका भी कुछ रुपया बकाया हो। वहां पर गोरखपुर के बीआरडी अस्‍पताल जैसे हालात ना बने इस दिशा में काम होना चाहिए। सभी पक्ष और विपक्ष के नेताओं से हाथ जोड़कर निवेदन हैं कि वो ऐसी कोशिश करें कि किसी के भी घर का चिराग ना बुझे। इलाज के अभाव में किसी बच्‍चे के सिर से उसके मां या बाप का साया ना उठे। आप लोग राजनीति करते रहिए, ये आपका काम है। लेकिन, इस दिशा में भी तनिक देख लीजिए और जब आपका दिल ये कह दे कि फलां अस्‍पताल में सबकुछ ठीक है वहां कुछ नहीं हो सकता है तब आप खुलकर राजनीति कीजिए हमारा भी आपको समर्थन होगा।