जनता को जवाब चाहिए ! गोरखपुर हादसे में अब तक क्यों नहीं हुई एक भी गिरफ्तारी ?
गोरखपुर हादसे के 7 दिन गुजर चुके हैं। 70 बच्चों की मौतें हो चुकी हैं। लेकिन, अफसोस अब तक इस ‘हत्याकांड’ में एक भी शख्स की गिरफ्तारी नहीं हुई है।
New Delhi Aug 16 : गोरखपुर हादसे की जांच जारी है। जांच के लिए हाईलेवल कमेटी बन चुकी है। जाहिर है अब तक कमेटी के हाथ बहुत कुछ लग चुका होगा। लेकिन, गोरखपुर हादसे के सात दिन गुजर चुके हैं। 70 बच्चों की मौतें हो चुकी हैं। पर गिरफ्तारी एक की भी नहीं हुई है। बहुत सारे तथ्य मीडिया रपट में हैं। तो बहुत सारे तथ्य फाइलों में छिपे हुए हैं। हर चीज को खंगाला जा रहा है। लेकिन, एक भी गुनाहगार सलाखों के पीछे नहीं पहुंचा है। जिन मांओं ने अपने कलेजे के टुकड़ों को अपनी आंखों के सामने दम तोड़ते देखा है उनकी फोटो देखकर आज भी उन मांओं का कलेजा छाती फाड़कर बाहर आ जाता है। 70 मांओं ने नौ महीने अपने दुलारों को कोख में रखने के बाद उन्हें खो दिया है। लेकिन, कोख के गुनाहगार कौन है किसी को पता नहीं है।
यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ कहते हैं कि गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कॉलेज के हादसे का जो भी गुनाहगार होगा बख्शा नहीं जाएगा। उन्हें कड़ी से कड़ी सजा दी जाएगी। लेकिन, गोरखपुर की रोती-बिलखती मांएं पूछ रही हैं कि आखिर कब गुनाहगारों को सजा मिलेगी। कब जांच पूरी होगी। क्या सरकार की प्रारंभिक जांच में ऐसा कुछ नहीं मिला है जो गुनाहगारों को जेल पहुंचा सके। अरे योगी जी जेल भेजने के लिए आरके मिश्रा और कफील खान की जुगलबंदी ही काफी है। क्या इन दोनों के सस्पेंशन भर से बात बन जाएगी। आखिर क्यों इन सवालों के जवाब नहीं दिए जा रहे हैं कि जब बीआरडी मेडिकल कॉलेज के अकाउंट में एक करोड़ रुपए से ज्यादा की रकम थी तो फिर ऑक्सीजन सप्लाई करने वाली कंपनी का बकाया अदा क्यों नहीं किया गया?
गोरखपुर हादसे से दो दिन पहले जब योगी आदित्यनाथ बीआरडी मेडिकल कॉलेज पहुंचे थे तब उन्हें यहां पर ऑक्सीजन की सप्लाई करने वाली कंपनी के बकाए की जानकारी आरके मिश्रा या फिर डॉ कफील खान ने क्यों नहीं दी थी? डॉ कफील खान किसकी इजाजत से अस्पताल के ऑक्सीजन सिलेंडरों को अपने निजी हॉस्पिटल ले जाते थे? वो किसकी इजाजत से सरकारी नौकर होते हुए भी प्राइवेट प्रैक्टिस कर रहे थे? यकीन मानिए गोरखपुर हादसे में ये सवाल ही आरके मिश्रा और कफील खान सरीखे लोगों को जेल पहुंचाने के लिए काफी हैं। लेकिन, अफसोस होता है ऐसी सरकार पर और जांच की रफ्तार पर, जो हफ्ता गुजर जाने के बाद भी पूरी होती नजर नहीं आ रही है। इसे व्यवस्था का दिवालियापन नहीं कहेंगे तो क्या कहेंगे।
बात यहीं नहीं खत्म हो जाती है। गोरखपुर हादसे में जो बातें सामने निकलकर आईं हैं उसमें ये भी कहा जा रहा है कि जिस वक्त बच्चों की जिदंगी के लिए ऑक्सीजन की सख्त जरुरत थी, उस वक्त अस्पताल प्रशासन की ओर से ऑक्सीजन सिलेंडर लाने के लिए 350 किलोमीटर लंबे सफर को चुना गया। टेंडर प्रक्रिया को फॉलो करते हुए इलाहाबाद से ऑक्सीजन सिलेंडर मंगाए गए। जबकि ये सिलेंडर नजदीक से भी आ सकते थे। विरोधाभास अस्पताल प्रशासन और लिक्विड ऑक्सीजन की सप्लाई करने वाली पुष्पा एजेंसी के बयानों में भी है। अस्पताल कह रहा था कि भुगतान ना होने के कारण कंपनी ने ऑक्सीजन की सप्लाई रोक दी थी। जबकि कंपनी कहती है कि लीगल नोटिस भेजने के बाद भी उसने ऑक्सीजन की सप्लाई जारी रखी। तो फिर सिलेंडर कहां गए। क्या सरकार को ऑक्सीजन चोर का पता लगाने में भी बरसों लगेंगे ?