विपक्षी एकता की राह में रोड़ा बने राहुल गांधी, ले डूबेगा स्‍वयंभू ‘भोकाल’ !

कांग्रेस पार्टी के उपाध्‍यक्ष राहुल गांधी का कद अभी इतना नहीं बड़ा हुआ है कि पूरा का पूरा विपक्ष उनमें अपनी आस्‍था और भरोसा जता सके। जानिए क्‍यों ?

New Delhi Aug 25 : 2014 से ही नरेंद्र मोदी और भारतीय जनता पार्टी विजयी रथ पर सवार हैं। नरेंद्र मोदी और अमित शाह की जोड़ी वाला ये रथ 2019 की ओर बढ़ रहा है। पूरा का पूरा विपक्ष इस बात को बहुत ही अच्‍छे तरीके से जानता है कि किसी के भी भीतर इतना बूता नहीं है कि वो अकेले मोदी और शाह के विजयी रथ को रोक सके। मोदी और अमित शाह को रोकने के लिए पूरे के पूरे विपक्ष को एकजुट होना होगा। ये चाहत विपक्ष के हर नेता के भीतर है। अपनी ओर से सभी कोशिश भी कर रहे हैं। लेकिन, कांग्रेस पार्टी के उपाध्‍यक्ष राहुल गांधी विपक्षी एकता में सबसे बड़ा रोड़ा बनकर सामने आ रहे हैं। राहुल गांधी का कांग्रेस पार्टी के भीतर स्‍वयंभू भोकाल ऐसा है कि वो खुद को प्रधानमंत्री से कम नहीं समझते हैं। पूरी की पूरी कांग्रेस पार्टी राहुल गांधी को प्रधानमंत्री पद के उम्‍मीदवार के तौर पर ही देखती है।

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लेकिन, ये बात विपक्ष के एक भी नेता को रास नहीं आती। विपक्ष के नेता राहुल गांधी को सियासत की पाठशाला में सेकेंड क्‍लास का स्‍टूडेंट मानते हैं। कांग्रेस पार्टी से बैर ना हो इसलिए नेता ना तो खुलकर राहुल गांधी को नकारते हैं और ना ही उन्‍हें स्‍वीकारते हैं। विपक्ष को पता है कि अगर राहुल गांधी की छतरी तले सभी लोग एकजुट हो गए तो इससे बाकी का फायदा होगा या नहीं किसी को नहीं पता लेकिन, कांग्रेस पार्टी और राहुल गांधी को इसका व्‍यक्तिगत फायदा जरुर मिल सकता है। यही वजह है कि विपक्ष के एकजुट होने से पहले ही वो बिखर जाता है। कांग्रेस पार्टी में गांधी परिवार से अलग और राहुल गांधी के अलावा किसी और को नेता माना जाना पाप समझा जा सकता है वहीं दूसरी ओर किसी और नेता के नाम के नेतृत्‍व की चर्चा ही नहीं होती।

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यही वजह है कि विपक्ष का ग्राफ लगातार गिरता जा रहा है। तृणमूल कांग्रेस की अध्‍यक्ष ममता बनर्जी की अपनी महात्‍वाकांक्षाए हैं। बीएसपी सुप्रीमो मायावती भी प्रधानमंत्री बनने का ख्‍वाब देखती हैं। आरजेडी अध्‍यक्ष लालू यादव को लगता है कि वो विपक्ष की धुरी बन सकते हैं। जेडीयू के बागी नेता शरद यादव के भी तेवर किसी से छिपे नहीं हैं। एनसीपी नेता शरद पवार की अपनी ख्‍वाहिशें हैं। आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल के भी सपने किसी से कम नहीं हैं। महात्‍वाकांक्षी नेताओं की इस भीड़ को देखकर लगता है कि सियासत की इस लंका में हर कोई 52 गज का ही है। ऐसे में विपक्षी एकता का नेतृत्‍व कौन करेगा सवाल बना हुआ है। कांग्रेस पार्टी चाहती है कि ये सब राहुल गांधी के नेतृत्‍व में एकजुट हों और उनके नेतृत्‍व को स्‍वीकार भी करें। लेकिन, क्षेत्रीय क्षत्रपों को ये सब मंजूर नहीं।

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हालांकि विपक्षी एकता में सिर्फ राहुल गांधी ही एकमात्र रोड़ा नहीं हैं। क्षेत्रीय क्षत्रपों के वर्चस्‍व की लड़ाई के चलते भी विपक्ष मोदी और अमित शाह के खिलाफ एकजुट नहीं हो पा रहा है। पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस और लेफ्ट पार्टियों के समागन की उम्‍मीद ऐसे ही होगी जैसे पानी में तेल मिलाना। यही हाल उत्‍तर प्रदेश में मायावती और मुलायम सिंह का है, माफ कीजिए अखिलेश यादव का है। दिल्‍ली की आम आदमी पार्टी भी हर दल से इतना बैर ले चुकी है कि ना तो अरविंद केजरीवाल को कोई पूछता है और ना ही केजरीवाल किसी को घास डालते हैं। यहां पर एकला चलो का फार्मूला लागू होता है। विपक्ष के नेताओं में विचारधारों का भी कोई मेल नहीं हैं। सबकी अपनी-अपनी ढपली है अपना-अपना राग है।