कसम से कह रिया हूं ‘राहुल’ अगर तुम ‘गांधी’ ना होते तो तुम्‍हें कोई नहीं पूछता

दिल पर हाथ रखकर एक सवाल का जवाब दीजिएगा कि अगर राहुल गांधी राजीव गांधी के बेटे ना होते, इंदिरा गांधी के पोते ना होते तो क्‍या आप उन्‍हें जानते ?

New Delhi Sep 12 : देश में लाखों करोड़ों राहुल होंगे। लेकिन, राहुल गांधी एक ही हैं। अभिषेक भी बहुत होंगे लेकिन, अभिषेक बच्‍चन एक ही हैं। अखिलेश भी ढेरों होंगे लेकिन, अखिलेश यादव इकलौते ही हैं। दीपेंद्र भी बहुत होंगे लेकिन, दीपेंद्र हुड्डा एक ही हैं। तेजस्‍वी भी बहुत होंगे लेकिन, तेजस्‍वी यादव एक ही हैं। ये वंशवाद के वो इकलौते चिराग हैं (तेजस्‍वी को छोड़कर) जिन्‍हें सियासत विरासत में मिली है (अभिषेक बच्‍चन को छोड़कर)। दरसअल, अमेरिका के बर्कले यूनिवर्सिटी आफ कैलिफोर्निया में आयोजित एक कार्यक्रम में राहुल गांधी उस वक्‍त फंसते नजर आए जब यहां के छात्रों ने उनसे वंशवाद को लेकर सवाल कर दिया। राहुल गांधी बगले झांक रहे थे। लेकिन, जवाब तो देना ही था। इसलिए उन्‍होंने अभिषेक बच्‍चन का भी ले लिया, अखिलेश यादव का भी नाम लिया और अंबानी का भी ले डाला। वो ये बताने की कोशिश कर रहे थे ऐसा हर जगह होता है। ये बीमारी हर दल में है।

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हम भी इस बात को मानते हैं कि ये बीमारी हर दल में है। अगर वंशवाद की बीमारी कांग्रेस में है तो बीजेपी भी उससे ग्रसित है। अगर भूपेंद्र सिंह हुड्डा अपने बेटे दीपेंद्र हुड्डा को आगे बढ़ाते हैं तो प्रेम कुमार धूमल भी अपने बेटे अनुराग ठाकुर को आगे बढ़ाने में पीछे नहीं रहते हैं। राहुल गांधी को लगता है कि हिंदुस्‍तान में डायनेस्‍ट ही सबकुछ चलाते हैं। लेकिन, एक सवाल मेरा राहुल गांधी से भी है और आप लोगों से भी है कि क्‍या अगर राहुल गांधी परिवार से ना होते तो क्‍या उनकी कोई पहचान होती ? या उन्‍होंने अपने दम पर आजतक कोई मुकाम हासिल किया है। बीजेपी कहती है कि राहुल गांधी विफल वंशवादी है। ये बात सच भी नजर आती है। जिस शख्‍स के पीछे इतनी बड़ी पार्टी खडी हो पर वो आगे नहीं निकल पा रहा है। खोट कहीं ना कहीं तो जरुर रही होगी।

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राहुल गांधी खुद वंशवाद की उपज हैं इसलिए वो इसकी पैरोकारी करते नजर आ रहे हैं। वहीं दूसरी ओर भारतीय जनता पार्टी कहती है कि लोकतंत्र में वंशवाद की नहीं बल्कि मेरिट की जगह होनी चाहिए। इस बात को लेकर तमाम लोगों के अपने तर्क-कुतर्क हो सकते हैं। कुछ लोग कह सकते हैं कि अगर राहुल गांधी राजनीति में आगे आएं हैं या उन्‍हें लाया गया है तो इसमें उनकी क्‍या गलती है। लेकिन, ऐसा करने से उन लोगों को वो जगह नहीं मिल पाती है जो उसके काबिल हैं। विदेशी धरती पर सीना चौड़ा कर राहुल गांधी कहते हैं कि हिंदुस्‍तान तो ऐसा ही है यहां डायनेस्‍ट ही सबकुछ चलाते हैं। जबकि उनके सामने ढेरों उदाहरण मौजूद थे। अपने हर बयान में वो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नाम ले रहे थे यहां भी लेना चाहिए था।

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अमेरिका के लोगों को बताना चाहिए था कि बेशक कांग्रेस में ऐसा ना होता हो लेकिन, बीजेपी में एक चाय बनाने वाला भी प्रधानमंत्री बन गया है। नरेंद्र मोदी की फैमिली का कभी कोई राजनैतिक बैकग्राउंड नहीं रहा। आगे भी नहीं है। वो सामान्‍य परिवार से आते हैं। गांव से आते हैं। देश के मौजूदा राष्‍ट्रपति भी दलित वर्ग से आते हैं। उनका परिवार भी कभी राजनीति में नहीं रहा। उन्‍हें राजनीति कभी भी विरासत में नहीं मिली। वो अपनी बदौलत इस मुकाम पर पहुंचे हैं। राहुल गांधी उपराष्‍ट्रपति वैंकेया नायडू का भी उदारहरण दे सकते थे। लेकिन, गांधी परिवार के इस शहजादे ने ऐसा कुछ भी नहीं किया। इन लोगों की बात दुनिया को नहीं बताई। बात अपने वंशवाद की आई तो अंबानी के नाम का सहारा लिया बच्‍चन का नाम को पकड़ा। उदाहरण दूसरे भी दिए जा सकते थे लेकिन, जानबूझकर नहीं दिए गए।