मायावती को भी लगी ‘परिवारवाद’ की बीमारी, बीएसपी में शुरू हुआ भाई-भतीजावाद !

राजनीति में परिवारवाद की बीमारी बहुत ही बुरी है। लेकिन, कोई भी दल इससे अछूता नहीं है। अब ये बीमारी बीएसपी सुप्रीमो मायावती को भी लग गई है।

New Delhi Sep 19 : देश की राजनीति में कई ऐसे लोग हैं जिन्‍हें सियासत विरासत में मिली हुई है। बहुजन समाज पार्टी अब तक इससे बची हुई नजर आ रही थी। लेकिन, राजनीति में परिवारवाद की ये बीमारी अब बीएसपी सुप्रीमो मायावती को भी लग गई है। बीएसपी के भीतर भी भाई-भतीजावाद शुरू हो गया है। अभी सोमवार को ही मायावती ने मेरठ में रैली की थी। इस मंच पर बीएसपी सुप्रीमो मायावती के साथ उनके भाई आनंद कुमार और उनका भतीजा आकाश भी दिखा। हालांकि मायावती राजनीति में परिवारवाद का विरोध करती रही हैं। लेकिन, अब वो खुद ही इस रास्‍ते पर चलती हुईं नजर आ रही हैं। उन्‍होंने पहली बार एक साथ अपने भाई और भतीजे को मेरठ की इस रैली के मंच से प्रोजेक्‍ट किया।

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इससे पहले भी उन्‍हें अपने राजनैतिक उत्‍तराधिकारी की तलाश रही है। भाई आनंद और भतीजे आकाश के इस मंच पर आने के बाद सवाल उठ रहे हैं कि क्‍या माया को अपना सियासी वारिस मिल गया है ? राजनीति में परिवारवाद का विरोध करने वाली माया पहले ही अपने भाई आनंद को पार्टी का राष्‍ट्रीय उपाध्‍यक्ष बना चुकी हैं। यानी बहन जी के बाद सेकेंड पोजिशन पर भाई जी ही रहेंगे। मेरठ रैली के मंच की तस्‍वीरों से साफ है कि मायावती अपने सियासी कुनबे को बढ़ाते हुए अब अपने भाई के बेटे आकाश को भी सियासी पहचान देने की कोशिशों में जुट गई हैं। लेकिन, अगर होता है तो क्‍या मायावती उन दलितों को जवाब दे पाएंगी जिनके सामने उन्‍होंने हमेशा राजनैतिक परिवारवाद के खिलाफ बड़ी-बड़ी बातें की थीं।

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दरअसल, माना ये भी जा रहा है कि रैलियों के जरिए माया अपने भाई और भतीजे को अब सियासी पहचान दिलाएंगी। ताकि पार्टी को उनके परिवार के लोग ही आगे बढ़ाएं। मायावती के परिवारवाद में भरोसा बढ़ने की एक वजह और भी है। माया को लगता है कि उन्‍हें हमेशा से बाहरी लोगों ने धोखा दिया है। चाहें बात नसीमुद्दीन सिद्दकी की हो या फिर स्‍वामी प्रसाद मौर्य की। ये दोनों ही नेता एक जमाने में माया के बहुत खास हुआ करते थे। लेकिन, अब दोनों ही अलग हैं। इतना ही नहीं उनकी पोल भी सार्वजनिक मंच पर खोलते हैं। ऐसे में मायावती को लगता है कि अगर पार्टी की कमान उनके परिवार का ही कोई शख्‍स आगे बढ़ाएगा तो कम से कम धोखे की गुुंजाइश ना के बराबर रहेगी।

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दूसरी वजह ये भी है कि मायावती की उम्र भी बढ़ती जा रही है। ऐसे में पार्टी को उनके उत्‍तराधिकारी की जरुरत है। इसलिए उन्‍होंने अब अपने भाई और भतीजे को आगे बढ़ाना शुरु कर दिया है। वैसे भी आनंद इस वक्‍त बीएसपी में सबसे पावरफुल हैं। मायावती ने आनंद को ये भी अधिकार दे रखा है कि वो जिसे चाहें पार्टी में रखें जिसे चाहें बाहर करें। बीएसपी में जिस वक्‍त कांशीराम की सल्‍तनत हुआ करती थी उस वक्‍त कांशीराम ने भी पहले मायावती को पार्टी का राष्‍ट्रीय उपाध्‍यक्ष बनाया था। इसके बाद पार्टी की पूरी कमान उनके हाथ आ गई थी। अब ऐसा ही कुछ आनंद के साथ होता हुआ नजर आ रहा है। यानी राजनैतिक परिवारवाद की धुर विरोधी मायावती को अब यही परिवारवाद भाने लगा है।