बिहार : 38 साल, 80 बैठकें, 828.80 करोड़ खर्च, लेकिन सब बेकार !

बिहार : सरकारी टेंडर लेने वाले इस बात को समझते हैं कि कैसे 5 करोड़ की परियोजना का डीपीआर 25 करोड़ का बनाया जाता है।

New Delhi, Sep 22 : क्या बिहार में सुशासन के राज में भागलपुर भ्रष्टाचार और घपले-घोटाले का गढ़ बन गया है? अभी सृजन घोटाले की आंच में यह इलाका झुलस ही रहा था कि बटेश्वर गंगा पंप नहर परियोजना के उद्घाटन से पहले ही बह जाने की खबर आ गयी. सोचिए कैसी नहर बनी थी कि पानी छोड़ते ही जगह-जगह से टूटने लगी और कहलगांव शहर में बाढ़ जैसी स्थिति पैदा हो गयी.

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इस भ्रष्टाचार की कथा को यूं समझिये. जल संसाधन विभाग के आंकड़ों के मुताबिक 1979 में यह परियोजना शुरू हुई थी, तब लागत सिर्फ 13.88 करोड़ बतायी गयी थी. kahalgaon-damतीस साल बाद 2008 में लागत का जब पहला रिवीजन हुआ तो यह 389.31 करोड़ हो गयी और 2016 में लागत को फिर से रिवाइज करके 828.80 करोड़ पहुंचा दिया गया. यानी लगभग 38 में परियोजना की लागत साठ गुनी बढ़ गयी. इस बीच में महंगाई भी इतनी नहीं बढ़ी होगी.

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लागत कई दफा मुद्रास्फीती की वजह से बढ़ती है, तो कई बार घपले-घोटाले के इरादे से. सरकारी टेंडर लेने वाले इस बात को समझते हैं कि कैसे 5 करोड़ की परियोजना का डीपीआर 25 करोड़ का बनाया जाता है. मंत्री से लेकर इंजीनियर तक के कमीशन का इंतजाम होता है और फिर भी ठेकेदार के पास अच्छी खासी बचत होती है, और काम भी ठीक-ठाक हो जाता है. bhagalpur1मगर यहां 13 करोड़ की परियोजना के 828 करोड़ के होने और पैसों का बंदरबांट होने के बावजूद काम नहीं के बराबर हुआ. दिखावे के लिए रेत और सीमेंट हर जगह चिपका दिया गया.

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कहलगांव के हमारे साथी प्रदीप विद्रोही जी ने लगातार खबरें छापीं कि काम में बेइमानी हो रही है, इस घटना से एक रोज पहले भी उन्होंने आगाह किया. मगर जल संसाधन विभाग को जैसे आनन-ुफानन में श्रेय नीतीश जी को देने में जुटा था. संभवतः नीतीश जी इस परियोजना का श्रेय उसी तरह लेना चाहते थे, जैसे सरदार सरोवर परियोजना का मोदी ने लिया, लाखों को डुबा कर.
खबर यह भी है कि वरिष्ठ कांग्रेसी नेता सदानंद सिंह की महत्वाकांक्षा भी इस परियोजना से जुड़ी थी. वे लगातार सक्रिय थे और आखिरी दिनों में ठेकेदार को बदल कर उन्होंने अपने आदमी को काम दिलाया ताकि काम जल्द पूरा हो. यह उनके लिए अपने बेटे का लांचिंग पैड था. यहां से वे अपने बेटे को राजनीति में घुसाना चाहते थे.
मगर आखिरकार वही हुआ जो किस्मत को मंजूर था. नतीजा आपके सामने है…

(वरिष्ठ पत्रकार पुष्य मित्र के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)