कहानी शिवांगी की : एक बहादुर लड़की से पहली मुलाक़ात

पता चल गया था कि वो लड़की यहीं काम करती है। मन नहीं मान रहा था। मैं जानना चाहता था उसके बारे में। मिलना चाहता था उससे। बात करना चाहता था उससे।

New Delhi Oct 16 : दिल्ली का सरदार पटेल विद्यालय। अपने बेटे आर्यमन की टीचर से मिलने के लिए स्कूल जाना हुआ। रिसेप्शन में बैठा इंतज़ार कर रहा था। तभी देखा कि दरवाज़ा बहुत हल्के से खुला और दरवाज़े से एक सुंदर से चेहरे ने झाँका। समझ नहीं आया कि ये लड़की ज़मीन पर बैठकर दरवाज़े से क्यों झाँक रही है ? दरवाज़ा और खुला .. वो और आगे आई तो देखा कि उस प्यारी सी लड़की के दोनों पैर नहीं है। घुटने के नीचे से दोनों पैर ग़ायब। इससे पहले कि मैं कुछ समझता, वो मेरी तरफ देखकर मुस्कुराई। जवाब में मैं भी मुस्कुरा दिया।फिर वो लड़की तेज़ी से ऑफ़िस के अंदर चली गयी। उसकी चाल को देखकर पता ही नहीं चल रहा था कि वो घुटनों के सहारे चल रही है या उसके पैरों पर पहिए लगे हुए हैं।

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समझ नहीं आया कि वो यहाँ काम करती है या किसी से मिलने आई है। कुछ ही देर में वो फिर तेज़ी से लौटी और सामने रिसेप्शन में जाकर बैठ गई और काम करने लगी। पता चल गया था कि वो लड़की यहीं काम करती है। मन नहीं मान रहा था। मैं जानना चाहता था उसके बारे में। मिलना चाहता था उससे। बात करना चाहता था उससे। सरदार पटेल में ही काम करने वाले अपने पुराने परिचित राजीव पंत को फ़ोन लगाया। संयोग से वो अंदर ही बैठे थे। राजीव जी से चाय पीने के बहाने मिला लेकिन अंदर तो कुछ और ही चल रहा था।राजीव जी व्यस्त थे।उन्होंने सिर्फ इतना बताया कि इस लड़की का नाम शिवांगी अग्रवाल है। उम्र 22 साल।पहले यहीं सरदार पटेल में पढ़ती थी। बचपन से ही उन्होंने शिवांगी को ऐसे ही देखा है।

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स्कूल की पढ़ाई पूरी करके वो चार साल के लिए विदेश चली गई और अब जब लौटी है तो बोली कि चाहे जो भी काम हो , मुझे अपने स्कूल सरदार पटेल में ही काम करना है। स्कूल प्रबंधन ने बताया कि उसकी क़ाबिलियत के हिसाब से उनके पास कोई पोज़ीशन नहीं है।तो शिवांगी ने कहा कि वो कोई भी काम करने को तैयार है। और जब उसे बताया गया कि हाल ही में एक रिसेप्शनिस्ट रिटायर हुई है तो बिना सोचे समझे शिवांगी ने कह दिया कि हाँ मैं करूँगी।तब से शिवांगी यही काम कर रही है। राजीव पंत ने बताया कि अपनी स्पीड के मामले में ये अच्छों अच्छों को पछाड़ देती है। एक कमरे से दूसरे कमरे तक , एक बिल्डिंग से दूसरी बिल्डिंग तक , ग्राउंड फ़्लोर से फ़र्स्ट फ़्लोर तक : शिवांगी के सामने बाधा क्या होती है , ये वो जानती ही नहीं।

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राजीव पंत से शिवांगी के बारे में जानकर उससे मिलने की इच्छा और बढ़ गई। मैंने संकोच करते हुए पूछा कि क्या मैं शिवांगी से मिल सकता हूँ। राजीव जी ने कहा कि आप बिलकुल मिल सकते हो लेकिन शिवांगी को ये बिलकुल पसंद नहीं कि कोई उस पर दया दिखाए।मेरे मिलने का मक़सद दया दिखाने का था भी नहीं , मैं तो बस मिलना चाहता था।राजीव मान गए और उन्होंने शिवांगी तक संदेश पहुँचा दिया। कुछ ही देर के बाद शिवांगी मेरे सामने बैठी थी। बिलकुल मेरे पास। सुंदर सा गोरा .. आभा बिखेरता .. मुस्कुराता हुआ चेहरा। उसे पास बैठे देखकर मुझे लगा कि इस बच्ची से मुझे प्यार हो गया है।  मेरा पहला सवाल था कि तुम पहाड़ी हो क्या ? लगा कि शायद पहाड़ी हो तो कनेक्शन जल्दी जुड़ जाएगा।उसने जवाब दिया : “ नहीं सर .. मेरा पूरा नाम शिवांगी अग्रवाल है।लगता है आप पहाड़ी हैं ?

हम सब मुस्कुराने लगे। पहले ही सवाल और जवाब के बाद माहौल हल्का हो गया। मैंने पूछा कि क्या करना चाहती हो जीवन में ? कोई सपना ? शिवांगी ने ना में सिर हिलाया और मुस्कुरा दी।  शिवांगी ने जानना चाहा कि मैं क्या करता हूँ तो मैंने बताया कि कुछ छोटी मोटी फ़िल्मे बनाता हूँ और यहाँ आने का मक़सद ये है कि मेरा बेटा आर्यमन इसी स्कूल में पढ़ता है और आज उसकी टीचर अमीना मैम ने मुझे डाँट खाने के लिए बुलाया है। इस बार बहुत ज़ोर से हँसी शिवांगी और बोली कि अगले हफ़्ते क्या आप दिल्ली में हैं ? मैंने जब हाँ में जवाब दिया तो शिवांगी बोली कि अगले हफ्ते मेरी एक परफ़ॉर्मेंस है , आप आएँगे तो अच्छा लगेगा। बदमाश लड़की !! तुम तो कह रही थी कि तुम्हारा कोई सपना नहीं है ? मैं समझ गया।इस परफ़ॉर्मेंस में ही तुम्हारा कोई सपना छिपा हुआ है और वो सपना क्या है – ये देखने मैं ज़रूर आऊँगा। मेरा जवाब सुनकर सिर्फ मुस्कुरा दी शिवांगी।अब मुझे इंतज़ार है शिवांगी की परफ़ॉर्मेंस का और चाहे जो हो जाए मुझे शिवांगी का सपना देखने जाना है। कहानी जारी है….. (वरिष्‍ठ पत्रकार और फिल्‍म निर्देशक विनोद कापड़ी के फेसबुक वॉल से साभार)