इस तरह से मिलेगी प्रदूषण से निजात, जल स्रोत ही बचा सकते हैं

दिल्ली में लोग बढ़ते प्रदूषण का कारण कभी हरियाणा-पंजाब के किसानों द्वारा पराली जलाए जाने पर तो कभी बिहार और पूर्वांचल की छठ पूजा को बताते हैं।

New Delhi, Oct 28: दिवाली के अगले रोज़ मैंने दिल्ली से बाहर पंजाब जाने की ठानी। दिल्ली से अम्बाला पहुंचा। वहां से राजपुरा फिर पटियाला। बठिंडा फोर लेन के दोनों तरफ दूर-दूर तक धान की फसल कट चुकी थी और रबी की बुवाई की तैयारी चल रही थी। बीच-बीच में धान के पुआल (पराली) मैंने जलते हुए देखे भी। उसका धुआं आसमान में उड़ता जा रहा था। कहीं भी ऐसा नहीं लगा कि दिल्ली से 200 किमी दूर जल रही इस पराली से दिल्ली की हवा प्रदूषित हो रही होगी। मुझे चूंकि पटियाला नहीं रुकना था और मेरा गंतव्य भाखड़ा नंगल था, इसलिए हम पटियाला शहर के बाहर से ही यू-टर्न लेकर सरहिंद की तरफ लौट आए। इस दौरान पंजाब के अंदरूनी हिस्से को काफी करीब से देखा। वहां का साफ़ और स्वच्छ वातावरण तथा वहां की किसान की समृद्धि भी, जो हरित क्रांति की देन है और भाखड़ा नंगल बांध ने जिसे और सरसब्ज़ किया।

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सरहिंद से रोपड़ और आनंदपुर साहिब होते हुए शाम सात बजे के करीब जब हम भाखड़ा नंगल डैम के गेस्ट हाउस भाखड़ा-सदन पहुंचे तब वहां शाल ओढ़ने का मन कर रहा था। वहां का पारा दिल्ली से तीन-चार डिग्री कम रहा होगा जबकि समुद्र तल से ऊंचाई बराबर। यह कमाल था वायु में धूल के कण नहीं होने तथा अपने आसपास गन्दगी नहीं जमा होने देने का। इसके अलावा नहरें और पोखरों के विस्तार का। सतलुज का पानी इस पूरे क्षेत्र की धूल को अवशोषित कर लेता है। यहां सतलुज का साफ़ हरा पानी देखकर लगता है कि हम पानी के स्रोतों को साफ़ रखेंगे तो पानी भी हमारा ख्याल रखेगा। दिल्ली में लोग शहर में बढ़ते प्रदूषण का ठीकरा कभी हरियाणा-पंजाब के किसानों द्वारा पराली जलाए जाने पर फोड़ते हैं तो कभी बिहार और पूर्वांचल समाज की छठ पूजा को बताते हैं। लेकिन कभी भी वे आत्मावलोकन नहीं करते कि दिल्ली के प्रदूषण की वज़ह कोई और नहीं बल्कि वे स्वयं हैं, जो अपने घर और शहर की गंदगी को अपनी जीवनदायिनी नदी यमुना में फेंकते रहते हैं।

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हालांकि, दिवाली के आसपास जैसे ही पॉल्यूशन बढ़ता है फ़ौरन यह कहा जाना शुरू हो जाता है कि हरियाणा-पंजाब के किसानों द्वारा पराली जलाए जाने के कारण पॉल्यूशन बढ़ रहा है। मगर आज तक खुद सरकारी आंकड़े यह नहीं बता सके कि दिल्ली में पॉल्यूशन की वज़ह पराली ही है। यही कारण है कि कोर्ट ने पहले तो दिल्ली में पटाखों की बिक्री पर प्रतिबन्ध लगाया अब डीजल जनरेटरों पर भी लगा दिया है। सिस्टम ऑफ एयर क्वॉलिटी एंड वेदर फॉरकास्टिंग एंड रिसर्च (सफ़र) ने चेताया है कि दिल्ली में हवा की क्वालिटी ‘खराब’ हो गई है और आने वाले दिनों में हालात और बिगड़ेंगे। पॉल्यूशन के स्तर में हुई इस बढ़ोतरी के लिए पंजाब और हरियाणा जैसे पड़ोसी राज्यों में पराली (फसल के अवशेष) जलाने, ‘साइक्लोनिक सर्कुलेशन’ और हवा की रफ्तार में गिरावट को जिम्मेदार करार दिया जाता है। ‘सफर’ के मुताबिक आने वाले दिनों में पीएम 2.5 का स्तर 100 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर और पीएम 10 का स्तर करीब 190 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर को पार कर जाएगा।

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सवाल यह है कि जब खुद केंद्र सरकार के मंत्री पराली को दिल्ली के प्रदूषण का जनक नहीं मानते तब नाहक क्यों यह ठीकरा पंजाब और हरियाणा के किसानों पर फोड़ा जा रहा है। मैं खुद भी परिवार समेत दिवाली पर बाहर इसलिए ही गया था ताकि दिल्ली की प्रदूषित हवा से कुछ दूर रहा जा सके। इसके लिए मैंने वह मार्ग पकड़ा, जिसे पॉल्यूशन का स्रोत कहा जाता है। लेकिन मैंने अपने लगभग हज़ार किमी के सफ़र और चार दिन के प्रवास में कहीं नहीं पाया कि धान का पुआल अथवा खेतों में ठूंठ आदि एकमुश्त जलाए जा रहे हों और वहां धुआं फैल रहा हो। जब पंजाब-हरियाणा और चंडीगढ़ में मुझे शाम और सुबह का मौसम खुशगवार लगा तो किस आधार पर कह दिया जाए कि दिल्ली में बढ़ते पॉल्यूशन की वज़ह पराली है। जरूरी है कि दिल्ली आदि शहरों के लोगों को अपने पानी के स्रोत बचाये रखना होगा और उन्हें स्वच्छ भी रखना होगा।

(वरिष्ठ पत्रकार शंभूनाथ शुक्ल के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)