बीजेपी के खिलाफ एक होंगे उद्धव ठाकरे और ममता बनर्जी ?

पश्चिम बंगाल की मुख्‍यमंत्री और टीएमसी अध्‍यक्ष ममता बनर्जी ने मुंबई में शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे से मुलाकात की। जिसके कई मायने निकाले जा रहे हैं।

New Delhi Nov 03 : पिछले करीब एक साल से शिवसेना ने भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ मोर्चा खोला हुआ है। कहने को शिवसेना एनडीए में शामिल है और उसका भारतीय जनता पार्टी के साथ गठबंधन है। लेकिन, ये सब सिर्फ कहने भर को ही है। शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे बीजेपी के खिलाफ जिस तरह की भाषा का इस्‍तेमाल करते हैं उतना तीखा तो विपक्ष के लोग भी नहीं बोलते। यही हाल पश्चिम बंगाल की मुख्‍यमंत्री ममता बनर्जी का भी है। ममता बनर्जी को पश्चिम बंगाल में अपना जनाधार खिसकता हुआ नजर आ रही है। उन्‍हें लगता है कि बीजेपी और संघ परिवार दोनों ही पश्चिम बंगाल में मजबूत होते जा रहे हैं जो तृणमूल कांग्रेस के लिए खतरे की घंटी है। ऐसे में कहा जा रहा है कि बीजेपी के ये दोनों दुश्‍मन एक साथ आ सकते हैं। अभी गुरूवार की ही बात है मुंबई में ममता बनर्जी ने उद्धव ठाकरे से मुलाकात की। इसके बाद इस तरह की चर्चाओं को और भी हवा मिल गई।

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हालांकि दोनों ही नेताओं का कहना है कि ये सिर्फ शिष्‍टाचार मुलाकात थी। लेकिन, उद्धव ठाकरे की शिष्‍टाचार की मुलाकात सिर्फ बीजेपी विरोधी नेताओं से ही क्‍यों हो रही है। इस बारे में उन्‍हें जवाब देना चाहिए। अब गुजरात को ही ले लीजिए। गुजरात में सभी को पता है कि पाटीदार आंदोलन की अगुवाई करने वाले हार्दिक पटेल और बीजेपी के बीच 36 का आंकड़ा है। बावजूद इसके उद्धव ठाकरे ने हार्दिक पटेल से मुलाकात की थी। यानी शिष्‍टाचार की इन मुलाकातों को हलके में कतई नहीं लिया जा सकता है। वो भी तब जब नोटबंदी का साल पूरा होने वाला है और विपक्ष 8 नवंबर को काला दिवस मनाने वाला है। आपको ध्‍यान होगा आठ नवंबर की रात आठ बजे जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नोटबंदी का एलान किया था तो सबसे पहले पश्चिम बंगाल की मुख्‍यमंत्री ममता बनर्जी ने ही उनके खिलाफ मोर्चा खोला था। इसके बाद एक-एक कर पूरा का पूरा विपक्ष इसके विरोध में खड़ा हो गया था।

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नोटबंदी का फैसला ममता बनर्जी को इतना नागवार गुजरा था कि उन्‍होंने ये तक कह डाला था कि वो इसके विरोध में किसी भी दल के साथ हाथ मिलाने को तैयार हैं। वो लेफ्ट के साथ भी जाने को तैयार थीं। दूसरी ओर एनडीए में शामिल शिवसेना ने भी नोटबंदी के खिलाफ मुहिम छेड़ दी थी। उस वक्‍त भी उद्धव ठाकरे ने ममता बनर्जी को खुला समर्थन दिया था। ममता बनर्जी से मुलाकात के बाद क्‍या एक बार फिर शिवसेना नोटबंदी के खिलाफ बीजेपी के सामने खड़ी होगी। ये सवाल बना हुआ है। हर किसी को मालूम है कि जब दो दलों के प्रमुखों के बीच मुलाकात होती है तो हमेशा राजनैतिक समीकरण बनते या फिर बिगड़ते जरूर हैं। शिवसेना के संबंध बीजेपी से बिगड़े हुए हैं। ऐसे में उसे भी एक सहारे की जरूरत है। लेकिन, शिवसेना के लिए ममता बनर्जी का सहारा ठीक होगा। ये सोचने वाली बात है।

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उद्धव ठाकरे और ममता बनर्जी के बीच हुई मुलाकात के कई सियासी मायने इसलिए भी निकाले जा रहे हैं क्‍योंकि अभी दो दिन पहले ही शिवसेना ने अपने मुखपत्र सामना के संपादकीय में बीजेपी से गठबंधन तोड़ने की धमकी दी थी। शिवसेना ने बीजेपी के लिए लिखा था कि ठीक लगे तो देख लो, नहीं तो छोड़ दो। इससे पहले उद्धव ठाकरे और उनकी पार्टी राहुल गांधी की भी तारीफ कर चुकी है। उनका कहना था कि लोग राहुल गांधी को पप्‍पू कहते हैं लेकिन, उन्‍हें हल्‍के में लेना ठीक नहीं। कांग्रेस पार्टी को अपना नेता मिल गया है। यानी राहुल गांधी का मजाक उडाना भी अब शिवसेना को पसंद नहीं आता है। उद्धव ठाकरे का ये परिवर्तन इशारा कर रहा है कि सबकुछ ठीक नहीं है। राजनीति में कोई बड़ा सियासी बदलाव होने वाला है।