गुजरात में मायावती बिगाड़ेंगी राहुल गांधी का ‘दलित’ खेल
बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने भी गुजरात की सभी सीटों पर विधानसभा का चुनाव लड़ने का मन बना लिया है। जिससे राहुल गांधी की मुश्किलें बढ़ गई हैं।
New Delhi Nov 09 : इस बार का गुजरात विधानसभा चुनाव दिलचस्प होता जा रहा है। एक ओर बीजेपी है तो दूसरी ओर कांग्रेस समेत तमाम छोटे दल हैं। कई दल तो अभी से आपस में ही लड़े मरे जा रहे हैं। इस बार कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी ने गुजरात विधानसभा चुनाव में बीजेपी को टक्कर देने के लिए फुलप्रूफ प्लानिंग की थी। लेकिन, उनकी प्लानिंग में एक और पलीता लग गया है। कांग्रेस पार्टी पाटीदार नेता हार्दिक पटेल, ओबीसी नेता अल्पेश ठाकोर और दलित नेता जिग्नेश मेवाणी के भरोसे ये चुनाव जीतना चाहती है। लेकिन, गुजरात में बीएसपी सुप्रीमो मायावती की एंट्री कांग्रेस के पूरे के पूरे दलित खेल को ही खराब कर सकती है। दरसअल, बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने भी तय कर लिया है कि वो इस बार गुजरात की सभी विधानसभा सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारेंगी। ऐसे में दलित वोटों का ध्रुवीकरण तय है। जिसका सीधा फायदा भारतीय जनता पार्टी को मिलेगा।
गुजरात में सभी सीटों पर चुनाव लड़ने के लिए मायावती ने तैयारी भी शुरु कर दी है। हर किसी को मालूम है कि मायावती दलितों की राजनीति करती हैं। ऐसे में गुजरात के चुनाव में उनकी एंट्री का मतलब साफ है कि जिग्ने श मेवाणी की सियासत में खतरे की घंटी बजना। जिग्नेश मेवाणी राष्ट्रीय दलित अधिकार मंच के संयोजक हैं। कांग्रेस की नजर उन पर काफी दिनों से टिकी हुई थी। राहुल गांधी चाहते थे कि जिग्नेश मेवाणी कांग्रेस में शामिल हो जाएं। लेकिन, जिग्नेश बेशक राजनीति में नए हों लेकिन, कच्चे खिलाड़ी नहीं हैं। उन्होंने भी दांव चला और कांग्रेस या किसी भी पार्टी में शामिल होने से साफ इनकार कर दिया। हालांकि उन्होंने ये जरूर कहा कि वो कांग्रेस पार्टी को बाहर से समर्थन करेंगे। यानी जिग्नेश की नजर भविष्य की राजनीति पर है। लेकिन, कांग्रेस पार्टी दलित वोटों को लेकर पूरी तरह जिग्नेश पर निर्भर है।
लेकिन, मायावती की गुजरात में एंट्री के बाद कांग्रेस और जिग्नेश का पूरा खेल बिगड़ जाएगा। बेशक मायावती गुजरात में एक भी सीट पर अपनी जीत दर्ज ना करा पाएं। लेकिन, अगर उनकी पार्टी चुनाव लड़ती है तो दलित वोटों का ध्रुवीकरण तय है। वोटों के बंटने का सीधा मतलब है बीजेपी को फायदा। गुजरात में ना तो बीएसपी का कोई जनाधार है और ना ही मायावती का। आजतक उनका एक भी उम्मीदवार किसी भी चुनाव में जीत नहीं पाया है। लेकिन, इतना जरूर रहा है कि जब भी बीएसपी का उम्मीदवार कहीं पर चुनाव में खड़ा हुआ है वहां हार जीत में उसकी भूमिका जरूर देखी गई है। गुजरात में दलितों का समीकरण क्या है जरा ये भी समझ लीजिए। मौजूदा वक्त में गुजरात में करीब सात फीसदी दलित वोटर हैं। 11 फीसदी आदिवासी वोटर्स हैं।
गुजरात में विधानसभा की कुल 182 सीटे हैं। जिसमें दस सीटों दलित बाहुल्य हैं। जबकि 25 सीटें ऐसी हैं जहां पर आदिवासी लोग ये तय करते हैं कि कौन सी पार्टी और किस उम्मीदवार को चुनाव जिताया जाए। गुजरात में विधानसभा की 13 सीटें एससी के लिए आरक्षित हैं जबकि 27 सीटें एसटी के लिए रिजर्व हैं। यानी 182 में कुल चालीस सीटें आरक्षित हैं। जहां पर SC/ST का दबदबा है। पिछले विधानसभा चुनाव की बात करें तो मायावती ने यहां पर 163 सीटों पर अपने उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतारे थे। बीएसपी का वोट शेयर 1.40 फीसदी था। मायावती का एक भी उम्मीदवार चुनाव नहीं जीता था। 2012 से पहले 2007 के विधानसभा चुनाव में भी मायावती ने 166 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे। 2002 के चुनाव में भी मायावती ने यहां पर अपनी किस्मत आजमाई थी। हर बार की तरह इस बार भी मायावती कतार में हैं। लेकिन, इस बार खतरे की घंटी कांग्रेस और जिग्नेश मेवाणी के लिए बजेगी।