सब कुछ लुटने के बाद अखिलेश यादव जप रहे हैं ‘माया’ के नाम की माला

यूपी चुनाव में करारी हार मिलने के बाद अब अखिलेश यादव गठबंधन की बात कर रहे हैं। वो माया के नाम की माला जप रहे हैं। क्या मायावती गठबंधन करेंगी।

New Delhi, Nov 18: सियासत में झटके लगने के बाद जगना अक्सर देखने को मिलता है। यूपी चुनाव इसका सबसे बड़ा उदाहरण है. यूपी में बीजेपी और मोदी को रोकने के लिए अखिलेश यादव  ने कांग्रेस से गठबंधन किया था। हालांकि ये जिस तरह से होना चाहिए था वैसा नहीं था। जल्दबाजी में किया गया गठबंधन था। लेकिन ये कामयाब नहीं हुआ, इसके कई कारण है. बीजेपी विरोधियों के सामने एक सफल उदाहरण बिहार का था। बिहार के सभी बड़े दलों ने मिल कर महागठबंधन बनाया और बीजेपी को पछाड़ दिया। यूपी में इसकी कोशिश हुई तो लेकिन वो परवान नहीं चढ़ पाई. कांग्रेस और सपा के गठबंधन से बसपा दूर रही। नतीजा ये हुआ कि सभी को करारा झटका लगा। अखिलेश के हाथ से सत्ता गई. कांग्रेस और नीचे चली गई तो मायावती अभी तक उस झटके से उबर नहीं पाई हैं।

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अगर यूपी चुनाव में भी महागठबंधन बन जाता तो शायद नतीजा कुछ अलग होता, यही सोच कर अब फिर से अखिलेश यादव माया के नाम की माला जपने लगे हैं। दरअसल महागठबंधन बनने के बीच में सबसे बड़ा रोड़ा मायावती ही हैं। माया का कांग्रेस और सपा दोनों के साथ कड़वा अनुभव रहा है। वो शुरू से कहती रही हैं कि सम्मानजनक तरीके से सम्मानजनक सीटें देने पर ही गठबंधन को लेकर विचार किया जा सकात है। अब तो खैर यूपी चुनाव गुजरी बात हो गई है। अब आगे होने वाले चुनावों के लिए बीजेपी के खिलाफ महागठबंधन की तैयारी शुरू हो गई है। अखिलेश जो मायावती को बुआ कहते हैं वो फिर से माया के नाम की माला जपने लगे हैं। उनका कहना है कि वो गठबंधन की कोशिश कर रहे हैं। समाजवादी पार्टी के रिश्ते किसी के साथ खराब नहीं है।

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मायावती के साथ गठबंधन के सवाल पर अखिलेश ने कहा कि वो कोशिश कर रहे हैं। समाजवादी पार्टी रिश्ते बनाने में सबसे आगे हैं, हमारे संबंध किसी के साथ भी खराब नहीं है। बीजेपी के खिलाफ हम पहले से लड़ रहे हैं, ऐसे में अगर कोई बी दल गठबंधन बनाने की पहल करता है तो हम उसका स्वागत करेंगे। वहीं माया ने भी गठबंधन के सवाल पर सकारात्मक रुख दिखाया है। माया ने गुरुवार को पार्टी की समीक्षा बैठक के दौरान कहा था कि बीजेपी और सांप्रदायिक ताकतों को रोकने के लिए अगर गठबंधन की बात की जाती है तो हम इसका विरोध नहीं करेंगे, हम इसके पक्षधर हैं। माया का टारगेट आगामी लोकसभा चुनाव हैं, उस से पहले गठबंधन की कवायद शुरू हो गई है।

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गठबंधन के लिए हां कहने से पहले माया ने फिर से दोहराया कि गठबंधन का मतलब सम्मान के साथ समझौता नहीं है। बीएसपी का गठबंधन का पुराना अनुभव बेहद कड़वा रहा है। माया ने कहा कि कांग्रेस हिमाचल चुनाव के दौरान 68 सीटों में से अपनी हारी हुई 10 सीटें और गुजरात में हारी हुई 25 सीटें भी देने को तैयार नहीं हुई है। इस से पता चलता है कि उनकी नीयत क्या है। गठबंधन में इस तरह की बातों की कोई जगह नहीं है। कुल मिलाकर अखिलेश यादव कोशिश कर रहे हैं कि माया किसी तरह से गठबंधन का हिस्सा बन जाएं, उनको पता चल गया है कि अपने दम पर वो अभी बीजेपी को मात नहीं दे सकते हैं। इसी के साथ इन नेताओं को ये भी ध्यान रखना होगा कि अब जनता भी पहले वाली नहीं रही है। जनता को ये समझ आ रहा है कि गठबंधन क्यों और किस लिए किया जा रहा है।