स्टूडियो फिल्मिस्तान, कुछ लम्हे यंग-तरंग शशि कपूर के साथ !

आगे बढ़ते ही चार- पांच कैदी नुमा कलाकारों ने शशि कपूर जी को घेर लिया। बिलकुल, बिलकुल सब को कोड़े मरवाएंगे अगले हफ्ते सीन है।

New Delhi, Dec 05: अब यादों मे, बहुत खूबसूरत इंसान, बहता निर्झर, एक दिलफरेब इंसान , सदाबहार अभिनेता और अच्छे सिनेमा के सर्जक शशि कपूर इस लौकिक जीवन से विदा हो गए। दादा साहब फाल्के अवार्ड से सम्मानित इस शख्सियत के साथ बिताये चंद लम्हे जीवंत हो उठे। मुंबई के फिल्मिस्तान स्टूडियो में हुई मुलाक़ात एकदम जीवंत हो उठी है। सन 1985 का साल रहा होगा। मनोज कुमार की फिल्म ‘ क्लर्क ‘ की शूटिंग के सेट पर छैल छबीले शशि एकदम व्हाइट सूट में बहुत ही ग्रेसफुल, यंग और ग्लैमरस लग रहे थे। इंटरव्यू के लिए बात पहले ही तय हो चुकी थी टाइम्स ऑफ इण्डिया ग्रुप की फिल्म पत्रिका ‘ माधुरी ‘ के लिए बात करनी थी। माधुरी के संपादक विनोद तिवारी जी ने इंटरव्यू का एंगल समझाते हुए शशि और अम्बरीष पुरी का फोन नंबर दिया था। संयोग ऐसा बना कि इन दोनों ने एक ही दिन और ठिकाने यानी फिल्मिस्तान स्टूडियो का समय दिया। शशि ने पहले पहर यानी लंच से पहले और पुरी साहब ने लंच के बाद का। मुलाकात के लिए समय तय करने को शशि को फोन लगाया तो जवाब ‘ जी बोलिए, शशि कपूर बोल रहा हूँ ! जी ,शशि जी ही बोल रहे हैं ! हाँ, भाई शशि ही बोल रहा हूँ , अब और कोई नहीं होता इस फोन पर बोलने को , पत्नी जेनिफर बिदा हो गईं , बच्चे अपने कामों में बिज़ी। जब फोन बजा , मैं हुआ तो मैं ही उठाता हूं ,इन दिनों कोई नौकर भी नहीं , सो मैं ही ! फोन का मकसद बताया , ‘ मंडे से हफ्ते – दस दिन फिल्मिस्तान में रहूंगा , मनोज जी की फिल्म ‘ क्लर्क ‘ की शूटिंग है , मंडे ही आ जाइए , 11 बजे के आसपास ‘ .

Advertisement

मंडे को जब फिल्मिस्तान पहुंचे तो पता किया ‘ क्लर्क ‘ की शूटिंग किधर है खोज खबर ली, इसी बीच कोई खूबसूरत सा बगल से गुज़ारा, गुज़रने के बाद अहसास हुआ की ये रेखा जी थीं। थोड़ा और इधर -उधर भटके, ठिकाना मिला चिट में अपना नाम लिख कर शशि जी के लिए भेजा दो मिनट में जवाब आया , जहां हैं वहीं रहिये पांच मिनट में आता हूँ शशि जी ने उसी चिट पर लिख भेजा ! थोड़ा इंतज़ार और शशि जी सामने थे। एकदम लकलक सफ़ेद सूट में , बढ़ कर मैं बोला , मैं टिल्लन ! आइये ! मैं साथ हो लिया ! शशि जी , आप की जय हो , मेहरबानी करिये , मनोज बाबू से कह के दो-चार कोड़े मरवा दीजिये , घोड़ों से कुचलवा दीजिये। मेहरबानी होगी ! आगे बढ़ते ही चार- पांच कैदी नुमा कलाकारों ने शशि कपूर जी को घेर लिया। बिलकुल, बिलकुल सब को कोड़े मरवाएंगे अगले हफ्ते सीन है। आगे बढे तो मैंने पूंछा ये क्या ? अरे किसी सीन में कोड़े पड़ जाएँ या किसी से लड़ जाये तो इनकी फ़ीस बढ़ जाती है ! आइये कैंटीन चलते हैं, कुछ कोल्ड ड्रिंक हो जाए, कैंटीन पहुँच ऑडर दिया तो कैंटीन का लड़का उखड गया ‘ शशि जी आप को कुछ नहीं मिलेगा , आप पहले का पैसा देते नहीं और नया-नया ऑडर देते रहते हैं ! ‘ इसी बीच शत्रुघ्न सिन्हा 15 – 20 स्कूली बच्चों के साथ कैंटीन में दाखिल हुए ‘ अरे भाई कपूर खानदान के लोग पैसा जेब में नहीं तिजोरी में रखते हैं , दे दे हमारे खाते से दे दे ! ‘ लड़का मुस्कुराया ‘ आप कहते हैं तो दे देते हैं ! वैसे शशि जी जन्टलमैन हैं ‘ लिम्का पी कर आगे बढ़े, इंटरव्यू के मूड के साथ हम मुख़ातिब हुए , मेरा पहला सवाल था क्या गज़ब का लुक है ,खूबसूरती और ताज़गी में तो भतीजे ऋषि कपूर को भी मात दे रहे हैं ?

Advertisement

अरे भाई पहली बात तो ये कि फिल्म का हीरो कभी बूढ़ा नहीं होता मेकअप ,गेटअप , लाइट , कैमरा उसे बराबर जवान और आकर्षक बनाये रखते हैं ! इस फिल्म के चरित्र के मुताबिक़ मेरा ये रूप-स्वरूप है ! पर अगर आप हकीक़त में देखें तो हम कपूर कानदान के लोगों को एक यह अभिशाप भी है कि 45 के बाद हम ऐसा फैलाते हैं कि शरीर सम्हाले नहीं सम्हलता ! इसी बीच दस्तक होती है। आने वाला बोला ‘ मनोज बाबू याद कर रहे हैं ! शशि जी चहक कर बोले ‘ अभी आया , कुछ मिलने वाला है ! ‘ मुस्कुराते हुए निकल गए। 5-7 मिनट खामोशी रही। हल्की दस्तक के साथ दरवाजा आधा खुलता है, ‘ शशि जी ‘ रेखा जी थीं। मैंने बताया , मनोज जी के पास गए हैं। ओ के … ओ के… शशि जी वापस आये। ‘ कुछ खाते पीते रहें बात भी होती रहे ‘… टिफिन खुला … चार चपातियां , सलाद, दाल , दो सूखी सब्ज़ी और मज़े का छाछ। ‘ आप के लिए कुछ मंगाएं ‘… ‘ नहीं मैं थोड़ा छाछ ही लूँगा। ‘

Advertisement

बात आगे बढ़ी , ‘ उत्सव ‘ के बाद कोई नया क्लासिक उत्सव ‘ न बाबा न। अब तो घोर कामर्सियल बनाऊंगा। मनमोहन देसाई को डायरेक्टर ले कर। क्लासिक सर के ऊपर से गुज़र जाता है। ‘ ये सिनेमा का इलीट अंग्रेजीदां क्रिटिक ‘ उत्सव ‘ जैसे क्लासिक को कितना समझ पाया ? ‘ ‘ – ये बाज़ार है , यहां ऊंची उड़ान , क्लासिक टच … आप खुशकिस्मत हैं कि बॉक्स ऑफिस आप को पार लगा दे। रही बात क्रिटिक की अगर इस पर ध्यान दिया तो काम ही नहीं कर सकते। भाषाई अभिजात्य के नखरों के आगे सर झुकाने में ही समझदारी है। ‘ ‘ आप कामर्सियल सिनेमा से खूब कमाते हैं पर अच्छे सिनेमा के नाम पर सब दांव पर लगा देते हैं ? ‘ ‘ – हाँ , मैं अच्छे सिनेमा के लिए कमिटेड हूँ , इसी लिए कई बार ऐसी वैसी फ़िल्में करता रहता हूँ। ‘ ‘ अभी तक कोई बड़ा मान सम्मान एवार्ड … ‘ – कैसे मिलते हैं यह सब…. सब को पता है। अपनी चाहत सिनेमा है, मान सम्मान एवार्ड नहीं ‘ ‘ इधर कुछ किस्सों में रेखा जी के साथ आपका नाम आ रहा है ? ‘ – किस्से तो किस्से ही होते हैं , हमें सब मिला। … जो चाहा , सारे अरमान पूरे हुए। नाम,खानदान,शोहरत, प्यार, मोहब्बत ,दोस्त सब आला दर्जे के मिले। किस्से बनने के दिन तो अब हमारे बच्चों के हैं। हम अपना मुकाम पा चुके हैं। ‘ शूटिंग का बुलावा आ गया। शशि जी बोले ‘ काम पर चलें , आप भी आओ थोड़ा शूटिंग देख लो। ‘ तकरीबन पौन घंटे सेट पर रुका। इस बीच शशि जी दो बार पास आये। भरा पूरा सेट , मनोज कुमार , प्राण , रेखा और भी जाने पहचाने चेहरे। आँखें मिलीं , इशारे से जाने की इजाजत मांगी। इशारे का जवाव इशारा , शशि जी आये मैंने इजाज़त मांगी हाथ मिलाते हुए। वे सेट के गेट तक आये ‘ फिर मिलेंगे जल्दी ‘ ! – ये वृतांत शशि कपूर एक शालीन शख्सियत पर फोकस है.

(वरिष्ठ पत्रकार टिल्लन रिछारिया के फेसबुक पेज से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)