ट्रिपल तलाक पर बेशर्मी और अवसरवाद की राजनीति

आपको लग रहा होगा कि ट्रिपल तलाक वाला बिल ऐतिहासिक है और सोशल मीडिया और मीडिया इसे सेलेब्रेट करने में लगी है

New Delhi, Dec 29:  राजनीति इसी बेशर्मी और अवसरवाद से चलती है। ये खुद को किसी ट्रेन की पटरी से बदलते हैं,आप किसी बेबस की तरह ठगे जाते हैं। तत्काल ट्रिपल तलाक पर चल रही बहस के दौरान इस राजनीति की हिप्पोक्रसी,बेशर्मी और अवसरवाद की हर पहलू नजर आयी। जरा 3 मिसाल को देखें- तत्काल ट्रिपल तलाक पर सरकार-बीजेपी की ओर से सबसे ओजपूर्ण-आक्रामक भाषण सरकार में मंत्री एम जे अकबर ने दिया। उन्होंने कांग्रेस की जमकर क्लास ली। शाहबानो केस के बहाने आईना दिखाया कि किस तरह तब राजीव गांधी ने जो गलती की उसे आज नरेन्द्र मोदी ठीक कर रहे हैं। एकदम “टीआरपीमार्का” और सोशल मीडिया पर हिट लेने वाला भाषण था। अब जरा फ्लैश बैक में चलें- 1985 में शाहबनो के हक में फैसला आया था।

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सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद मुस्लिम संगठन विरोध में उतरे और तब पीएम राजीव गांधी पर कोर्ट के फैसले को पलट कर नियम बनाने का दबाव बनाया। तब सरकार के अंदर प्रमुख मुुस्लिम चेहरे आरिफ मोहम्मद खान ने ऐसा करने से मना किया। लेकिन तब राजीव गांधी के दो सबसे करीबी-नजमा हेपतुल्लाह और एक जे अकबर ने उनपर नियम बनाकर फैसले को बदलने का दबाव बनाया। एम जे अकबर ने कहा- राजीव गांधी फैसला नहीं लेते हैं तो मूसलमान को लगेगा कि उनका कोई पीएम नहीं है। तब शाहबानो का फैसला बदलने की पैरवरी करने वालों में सबसे अहम-मजबूत अावाज यही अकबर थे। अब अकबर मंत्री हैं।हेपतुल्ला गवर्नर हैं। विचार बदलकर। आरिफ साहब गुमनामी में हैं,उसी विचार के साथ।

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आज वही एम जे अकबर शाहबानो का केस की मिसाल देकर बात कर रहे थे। कम से कम वह इस केस को स्किप करने भर की डिसेंसी दिखा सकती थी। लेकिन बेशर्मी की दौर में डिसेंसी की जगह कहां है। विडंबना देखिये, तब शाहबानाे के पक्ष में खड़ा होने वाले आरिफ मोहम्म्द खान कहीं खो गये और आज तब उसके खलनायक बने एम जे अकबर आज उसी तरह के मामले में मुस्लिम महिला के हित की आवाज बन रहे थे 2-वक्त बदलता है जहां राजीव गांधी ने तब शाहबानो के खिलाफ जाकर एतिहासिक भूल की थी और सालों तक उसका खामियाजा भुगता आज उनके बेटे राहुल गांधी शायरा बानो से जुड़े इस बिल में किसी तरह की अड़चन न हो उसके लिए पूरी तरह सतर्क थे।

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जिस बिल के बारे में खुद बीजेपी वाले अंदर से मानते हैं कि थोड़ी जल्दबादजी में बनायी गयी है,उसे कांग्रेस ने बिना किसी बाधा के पास कर दिया। न अपना संशोधन न दिया न दूसरे के संशोधन को सपोर्ट किया। आपको लग रहा होगा कि ट्रिपल तलाक वाला बिल ऐतिहासिक है और सोशल मीडिया और मीडिया इसे सेलेब्रेट करने में लगी है लेकिन माननीय सांसदों के लिए यह बिल कितना अहम है उसका अंदाजा इसी बात से लगा सकते हैं कि 545 सांसदों की लोकसभा में बहस के दाैरान 100 से भी अधिक एमपी मौजूद नहीं थे और वोटिंग के समय पक्ष-विपक्ष को मिलाकर 250 एमपी ही पहुंच पाए। मतलब जिस बिल को एतिहासिक कहा जा रहा था,उसके लिए संसद में आधे एमपी भी मौजूद नहीं थे

(वरिष्ठ पत्रकार नरेंद्रनाथ के फेसबुक पेज से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)