यूपी में उपचुनाव से पहले ही अखिलेश यादव ने मानी हार ?

क्‍या गोरखपुर और फूलपुर के उपचुनावों से पहले ही समाजवादी पार्टी के अध्‍यक्ष अखिलेश यादव ने अपनी हार मान ली है। जानिए क्‍यों उठ रहे हैं ये सवाल।

New Delhi Jan 15 : देश और दुनिया की राजनीति बदल रही है। लोग बदल रहे हैं। सियासत बदल रही है। लोगों की सोच बदल रही है। लेकिन, हमारे देश के नेता आज भी अपने फायदे के लिए 17 वीं शताब्‍दी में जीने का दिखावा करते हैं। उन्‍हें लगता है कि जनता बेवकूफ है। वो जो कहेंगे जनता मान लेगी। लेकिन, हकीकत में ऐसा नहीं है। देश की जनता सबसे ज्‍यादा समझदार है। उसे सब पता है और दिख भी रहा है। उत्‍तर प्रदेश में गोरखपुर और फूलपुर में लोकसभा के उपचुनाव होने हैं। लेकिन, उत्‍तर प्रदेश के पूर्व मुख्‍यमंत्री और समाजवादी पार्टी के अध्‍यक्ष अखिलेश यादव की बातों से लगता है कि वो चुनाव से पहले ही हार मान चुके हैं। अभी चुनाव हुए नहीं हैं और अखिलेश यादव को अभी से गड़बड़ी का डर सताने लगा है। जिसका मतलब साफ है कि वो अपनी कमजोरी को छिपाने के लिए गड़बड़ी का सहारा लेना चाहते हैं।

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दरअसल, उत्‍तर प्रदेश के पूर्व मुख्‍यमंत्री और समाजवादी पार्टी के अध्‍यक्ष अखिलेश यादव ने ईवीएम में गड़बड़ी का मुद्दा उठाया है। इसके साथ ही उन्‍होंने गोरखपुर में ईवीएम के रखरखाव पर भी सवाल खड़े किए हैं। अखिलेश यादव का कहना है कि गोरखपुर में प्रशासन के व्यस्त कार्यक्रम के बीच इलेक्‍ट्रानिक वोटिंग मशीन के रखरखाव और उसे दुरूस्त करने का काम चल रहा है। ऐसे में ईवीएम पर भरोसा नहीं किया जा सकता है। अखिलेश यादव का कहना है कि ईवीएम में क्‍या ठीक कराया जा रहा है। वो कहते हैं कि इस मामले में सरकार पर भरोसा नहीं किया जा सकता है। इसके साथ ही उन्‍होंने फूलपुर और गोरखपुर के उपचुनाव बैलेट पेपर के जरिए कराने की मांग की। इससे पहले इसी महीने समाजवादी पार्टी, राष्‍ट्रीय क्रांति पार्टी, माकपा, भाकपा के अलावा कृष्‍ण पटेल वाला अपना दल, पीस पार्टी, आप, रालोद और राजद के प्रतिनिधि भी ईवीएम का मुद्दा उठा चुके हैं। इस पर चर्चा भी कर चुके हैं।

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माकपा को छोड़कर सभी दलों की राय है कि देश में भविष्‍य में होने वाले चुनाव ईवीएम की बजाए बैलेट पेपर से कराए जाएं। जबकि हकीकत ये है कि ये सभी दल जब खुद ईवीएम से चुनाव जीतते हैं तो कभी भी उसकी प्रामणिकता पर सवाल नहीं खड़े करते हैं। लेकिन, चुनाव हारते ही इनकी नजरों में ईवीएम गड़बड़ हो जाती है। सीधे शब्‍दों में कहें तो चाहें अखिलेश यादव हों या फिर राहुल गांधी या फिर मायावती ये सब के सब ईवीएम के नाम पर सिर्फ और सिर्फ राजनीति ही करते हैं। वो कभी भी चुनाव आयोग की उस चुनौती को स्‍वीकार नहीं करते हैं जिसमें वो कई बार ये कह चुका है कि कोई भी एक बार ईवीएम में गड़बड़ी करके तो दिखाए। अगर सरकार ईवीएम के सहारे ही चुनाव जीत सकती हैं तो फिर सोचने वाली बात है कि यूपीए सरकार को जनता ने सत्‍ता से क्‍यों बेदखल किया। 2014 में लोकसभा के चुनाव तो उसी के राज में हुए थे।

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जिन अखिलेश यादव को आज ईवीएम में गड़बड़ी नजर आती है वहीं अखिलेश यादव उत्‍तर प्रदेश में 2012 के विधानसभा ईवीएम से ही जीतकर मुख्‍यमंत्री बने थे। तब इन लोगों ने इस पर कोई सवाल नहीं खड़े किए। पंजाब विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी की सरकार बनती है तो कांग्रेस को ईवीएम साफ सुथरी नजर आती है। जबकि यूपी में बीजेपी की सरकार बनती है तो मायावती और अखिलेश यादव के साथ-साथ कांग्रेस भी कहती है कि ईवीएम में गड़बड़ी है। हकीकत ये है कि अखिलेश यादव सरीखे नेता सिर्फ अपनी कमजोरियों को छिपाने के लिए ही इस तरह के बेबुनियाद आरोप चुनाव आयोग पर लगाते हैं। जबकि पब्लिक सब जानती है। अगर वाकई इन नेताओं को लगता है कि कुछ गड़बड़ है तो फिर ये लोग चुनाव आयोग के सामने ईवीएम में गड़बड़ी साबित क्‍यों नहीं करते।