बिहार सरकार की जिद पर हाईकोर्ट का चाबुक, बच्चों को बख्श दो
यह तो अच्छा हुआ कि पटना हाईकोर्ट ने सरकार को आदेश दिया है कि वे बिना अभिभावकों की मरजी के बच्चों को मानव श्रृंखला में न खड़ा करे.
New Delhi, Jan 17: यह तसवीर पिछले साल की मानव श्रृंखला की है. जब अररिया में स्कूली बच्चों को उफनती नदी के नीचे चचरी के पुल पर खड़ा कर दिया गया था, ताकि बिहार के मुख्यमंत्री की जिद पूरी हो सके. इस साल भी एक सनकी राजा की जिद पूरी करने के लिए प्रशासन जमीन-आसमान एक कर रहा है. एक समय बाद हर समझदार आदमी सनकी हो जाता है और सनक में उस व्यक्ति को यह भी समझ नहीं आता कि वह जो कर रहा है वह मजह उसकी जिद है. पिछले एक पखवाड़े से लगभग पूरा बिहार थर-थर कांप रहा है. औऱ इस कंपकंपी के बीच सरकार के अधिकारी एक ही काम कर रहे हैं. 21 जनवरी को मानव श्रृंखला की तैयारी. क्योंकि राज्य के मुखिया की जिद है कि इस तारीख को इतने लोग सड़कों पर खड़े हों कि गिनीज बुक का रेकार्ड बन जाये.
यह तो अच्छा हुआ कि पटना हाईकोर्ट ने सरकार को आदेश दिया है कि वे बिना अभिभावकों की मरजी के बच्चों को मानव श्रृंखला में न खड़ा करे. नहीं तो पिछले एक पखवाड़े से जब राज्य ठंड से कांप रहा था, सरकारी लोग केवल औऱ केवल मानव श्रृंखला में बच्चों को खड़ा करने की योजना में जुटे हुए थे. अब देखना है कि वे हाईकोर्ट के इस आदेश की कैसे काट निकालते हैं… कहीं यह धमकी तो नहीं दी जाती कि जो बच्चे मानव श्रृंखला में नहीं आय़ेंगे उसे सरकारी योजना का लाभ नहीं मिलेगा… इस भीषण ठंड में एक पखवाड़े के भीतर लगभग उतने ही लोग मर गये हैं, जितने अमूमन हर साल बाढ़ में इस गरीब राज्य में मर जाते हैं. मगर राज्य का शासन इसे आपदा नहीं मान रहा.
कहीं कोई मदद नहीं. पढ़ाई-लिखाई ठप है, प्रैक्टिकल एक्जाम जैसे-तैसे चल रहे हैं. लोग घरों में कैद हैं. जिनके पास रोजगार नहीं वे ट्रेनों में भर-भर कर जा रहे हैं. बालू के अभाव में सारा निर्माण कार्य ठप है. अपराध चरम पर है. मगर सरकारके पास बस गिने चुने काम हैं. अवैध शराब की खेप पकड़ना, नीतीश की यात्राओं के लिए माहौल बनाना और मानव श्रृंखला के लिए बच्चे जुटाना. समझ से परे है कि यह कैसी सनक है. शिक्षा विभाग ने आदेश जारी कर दिया है. शिक्षकों को टारगेट दे दिया गया है. शिक्षक चीख-चीख कर कह रहे हैं, यह हमारा काम नहीं है. मगर सरकार में कोई सुनवाई नहीं है, नौकरी करनी है तो बच्चे को लेकर खड़े होना है. रोज पूर्वाभ्यास हो रहा है. विज्ञापन छप रहे हैं.
धमकियां दी जा रही हैं. रूट तैयार किये जा रहे हैं. सरकारकी तरफ से जारी विज्ञप्ति के मुताबिक इस साल मानव श्रृंखला 13647 किमी लंबी होगी और 4.5 करोड़ लोग इस श्रृंखला में खड़े होंगे. मगर क्या कोई सरकार से पूछेगा कि इसमें से कितने लोग अपनी मरजी से खड़े होंगे. सत्ता के चंद दलालों को छोड़ दिया जाये तो. और यह भी कि आखिरकार मानव श्रृंखला का रिकार्ड बना डालने से बिहार जैसे गरीब राज्य को क्या हासिल होगा? और यह भी कि इस श्रृंखला में पांच से आठवीं कक्षा के बच्चों को ही क्यों खड़ा कर रहे हैं. लोगों को अपनी मरजी से क्यों नहीं आने दे रहे. सरकारी अभियानों को लेकर इतनी उदासीनता क्यों है. क्यों कोई आपके साथ खड़ा होने के लिए तैयार नहीं है. मगर लगता है नीतीश ने इन मसले पर सुनना, सोचना और विचारना बंद कर दिया है.