लोक लुभावन नहीं, ठोस होगा आम बजट

ऐसे में मोदी सरकार का आम बजट दस्तूर भर नहीं होगा। आर्थिक विकास की दर, उसके घटने-बढ़ने का असर अब राजनीति में दिखता है।

New Delhi, Jan 31: वाले दिनों में नई दिल्ली की आर्थिक और राजनीतिक दिशा क्या होगी, इसकी रूपरेखा दावोस में तय हो गई है। सबसे तेज विकास वाली अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ रहे भारत ने विश्व को अपनी धाक का अहसास करा दिया है। स्विट्जरलैंड में विश्व आर्थिक मंच पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने दुनिया से आर्थिक मोर्चे को जोड़ने और आतंकवाद के मोर्चे को तोड़ने का आह्वान कर संदेश दिया कि उनकी सरकार अर्थव्यवस्था के लिए समूचे विश्व से हाथ मिलाने को तैयार है। यह भी कि आतंकवाद से लड़ने के लिए विश्व को भारत के साथ खड़ा होना पड़ेगा। संदेश दुनिया के लिए ही नहीं, बल्कि देश के लिए भी है कि बड़ा मुकाम हासिल करना है तो उसे मोदी के नेतृत्व वाली मौजूदा बीजेपी सरकार को अभी दूर तक समर्थन देना होगा। कम से कम 2019 तो इस पटकथा में शामिल है ही। ऐसे में मोदी सरकार का आम बजट दस्तूर भर नहीैंहोगा। आर्थिक विकास की दर, उसके घटने-बढ़ने का असर अब राजनीति में दिखता है। बजट में ऐसा क्या किया जाए कि 2015 में किसानों से किया गया वो वादा पूरा हो सके कि उनकी आमदनी 2022 तक दोगुनी हो जाएगी।

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ऐसा कैसे संभव होगा कि कॉरपोरेट टैक्स को वादे के मुताबिक सरकार 25 फीसद के स्तर पर ले आए। कराधार बढ़ाकर अधिक राजस्व की वसूली करे ताकि उसका देश के आर्थिक विकास और लोक कल्याण में संतुलित ढंग से उपयोग हो। यही नजरिया लेकर चल रही है सरकार। अनुमान है कि आम बजट में यह नजरिया परिलक्षित भी होगा।मोदी सरकार ने आर्थिक विकास को विदेश नीति से जोड़ा है। एक कमजोर राष्ट्र में या कमजोर सरकार के रहते निवेशक अपना पैसा लगाकर निश्चिन्त नहीं हो सकते। सो, राजनीतिक रूप से मजबूत सरकार ने हिन्दुस्तान को मजबूत करने का नया रास्ता चुना। इस्रइल से दोस्ती कर बाकी देशों को संबंधों की सुस्ती तोड़ने को बाध्य किया है। तय किया है कि पाकिस्तान के भरोसे हमारी मध्य-पूर्व की नीति नहीं चल सकती। हमें चाबहार बंदरगाह चाहिए ताकि अफगानिस्तान, अरब देशों और संपूर्ण मध्य-पूर्व तक हमारी स्वतंत्र पहुंच हो। लुक वेस्ट अब एक्ट वेस्ट हो गया है यानी लुक ईस्ट एक्ट ईस्ट होने जा रहा है।

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गणतंत्र दिवस पर आसियान देशों की मेजबानी यों ही नहीं है। सामुद्रिक व्यापार में खुद को मजबूत करने की यह पहल है। दावोस में पीएम मोदी ने इंडिया मीन्स बिजनेस कहकर दुनिया का ध्यान खींचा है।आप ताज्जुब कर रहे होंगे कि आम बजट पर बात करते हुए विदेश नीति की इतनी र्चचा क्यों? दरअसल, इस नीति ने विदेशी निवेशकों को एक्टिव बनाया है, और एनआरआई का अपने देश में विास जगाया है। भविष्य में विदेशी मुद्रा का संकट नहीं हो, वित्त मंत्री इस पर काम कर रहे हैं। बजट में भुगतान संतुलन की चिंता से ऊपर उठकर राजस्व घाटे को पाटने का प्रयास हो रहा है। पहले सरकारी खर्चे घटाने की बातें हुआ करती थीं, अब इसकी चिंता छोड़ कर विकास पर जोर दिया जा रहा है। सरकार ग्रामीण क्षेत्रों में खर्च बढ़ाने पर विचार कर रही है। यह विास विदेश नीति से ही आया है।

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नोटबंदी और जीएसटी ने वित्त मंत्री का काम आसान कर दिया है। बैंकों को एनपीए संकट से उबार देने और अप्रत्यक्ष कर की गारंटी देने के बाद अब अरु ण जेटली को प्रत्यक्ष कर पर ही ध्यान देना है। इसके लिए आम बजट में टैक्स सुधार किए जा रहे हैं। स्लैब में बदलाव की उम्मीद है। छूट की सीमा 3 लाख तक की जा सकती है। कर चोरी रोकने को लेकर सरकार गंभीर है। रियल सेक्टर में गति लाने के लिए भी पहली बार घर खरीदने वालों के लिए बड़ी राहत की योजना है। राजस्व घाटे की चिंता इसलिए भी नहीं है कि सरकार सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों में विनिवेश की गति और तेज करने जा रही है। यही वजह है कि डीजल-पेट्रोल जैसी चीजों पर एक्साइज ड्यूटी कम करने की हिम्मत भी सरकार दिखाने को तैयार है। इसका मतलब यह है कि अपनी आमदनी घटाकर सरकार आमजन को रियायत देने पर सोच रही है।

दरअसल, इससे महंगाई नियंत्रित करने में मदद मिलेगी। आठ राज्यों और उसके बाद लोक सभा चुनाव नजदीक हैं, इसलिए इस कदम का बड़ा महत्त्व है। किसानों के लिए फसलों का समर्थन मूल्य तय करने का चलन रहा है। मगर अब सरकार सब्जियों का भी समर्थन मूल्य तय करने पर विचार कर रही है ताकि लागत मूल्य से अधिक आय सुनिश्चित हो सके। खेती को लाभकारी बना लिया गया तो देश की बड़ी समस्या हल हो जाएगी। दावोस में पीएम मोदी ने कहा था कि इंडिया मीन्स बिजनेस। उस समय राहुल गांधी ने देश की 73 प्रतिशत दौलत एक प्रतिशत लोगों के हाथों में जमा होने का मुद्दा उठाया था। यह दरअसल सबका साथ, सबका विकास के नारे पर सवाल था। मोदी सरकार ने बजट में इसका जवाब देने की तैयारी कर ली है। देश की 65 फीसदी कृषि आबादी को सरकार बजट से जोड़ने जा रही है। फसल बीमा सुरक्षा के बाद अब खेती को लाभकारी बनाने की पहल से बजट की रंगत बदली बदली नजर आएगी।रेलवे सुरक्षा की गंभीरता आम बजट में नजर आएगी। बड़ा बजट देकर स्टेशनों के साथ ट्रेनों के भीतर तक सीसीटीवी की व्यवस्था होगी। रेल पटरियों के जाल के साथ तेज गति वाली ट्रेनों पर फोकस किया जा रहा है।

यात्री किराये को रैशनलाइज करने और माल ढुलाई को स्पर्धी बनाने की योजना है। कॉरपोरेट सेक्टर को मोदी सरकार से बड़ी उम्मीद रही है। टैक्स दर कम करके सरकार यह उम्मीद पूरी कर सकती है। यह कमी फ्लैट तरीके से न करके टर्नओवर की एक लिमिट तय करके की जा सकती है। फिर भी कॉरपोरेट सेक्टर उम्मीद कर सकता है कि एक बार पहल हुई तो आगे संभावनाओं का द्वार खुल जाएगा।सरकार का प्रयास है कि देश में उत्पादक इकाइयां बढ़ें। अब तक विदेशी निवेशक भारत को असेंबलिंग प्लेस के रूप में देखते रहे हैं। कल-पुजरे का आयात करके उन्हें यहां असेंबल कर देते थे, और मोटी कमाई कर चलते बनते थे यानी सरकार से लाभ लेकर आयात शुल्क भी बचा लेते थे। अब सरकार कल-पुजरे पर आयात शुल्क बढ़ाने जा रही है, ताकि मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा दिया जा सके। स्वास्य के क्षेत्र में भी बजट बढ़ने के संकेत हैं।

पीएम ने लोक लुभावन आम बजट नहीं देने का जो संकेत दिया है, उससे लोक कल्याणकारी योजनाओं की किसी नई पहल की उम्मीद कम है। हां, पहले से चल रही योजनाओं का बजट जरूर बढ़ सकता है।रक्षा बजट बढ़ेगा, इसमें संदेह नहीं है। यह जरूरी भी है। भारत का रक्षा बजट चीन के मुकाबले बहुत पीछे है। चीन ने अपने रक्षा बजट में 10 फीसद बढ़ोतरी की थी, जो 140 अरब डॉलर हो गई है, जबकि भारत का रक्षा बजट 40 अरब डॉलर भी नहीं है। सरकार 10 फीसद भी इजाफा करे तो रक्षा बजट में 4 अरब डॉलर की बढ़ोतरी हो सकती है। भारत इससे पीछे नहीं हट सकता। लगता है कि बजट 2018 में किसान, कॉरपोरेट जगत और रक्षा को पूरी तवज्जो मिलने जा रही है। वहीं, लोक कल्याण योजनाओं के लिए तिजोरी खुलती नहीं दिख रही है। बावजूद इसके पूरे आसार हैं कि यह बजट आम लोगों लिए उम्मीद भरा होगा।

(वरिष्ठ पत्रकार उपेंद्र राय के फेसबुक वॉल से साभार ये लेखक के निजी विचार हैं)