‘खून की नदियां’ बहाने वाले कावेरी जल विवाद में सुप्रीम कोर्ट का सबसे बड़ा फैसला
कावेरी जल विवाद में सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुना दिया है। तमिलनाडु और कर्नाटक के बीच ये विवाद दशकों से चला आ रहा था। जानिए पूरा मामला।
New Delhi Feb 16 : शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने दशकों पुराने कावेरी जल विवाद का आखिरकार निपटारा कर ही दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने कावेरी जल विवाद पर अपना फैसला सुना दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में साफ तौर पर कहा है कि नदी के पानी पर किसी भी राज्य का मालिकाना हक नहीं है। इसके साथ ही तमिलनाडु के पानी में कटौती करते हुए कर्नाटक को मिलने वाले वाली की मात्रा बढ़ा दी है। दशकों से तमिलनाडु और कर्नाटक के बीच कावेरी जल विवाद चला रहा था। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में बंगलुरु में पानी की जरुरत को ध्यान में रखते हुए कावेरी से मिलने वाली पानी की मात्रा में 14.75 टीएमसी फीट का इजाफा किया है। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने ये भी स्पष्ट कर दिया है कि उसका ये फैसला अगले 15 सालों तक जारी रहेगा। माना जा रहा है कि कहीं ऐसा ना हो कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद एक बार फिर तमिलनाडु और कर्नाटक की जनता के बीच ठन जाए।
जल विवाद पर कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का स्वागत किया है। शुक्रवार की सुबह से ही सभी की निगाहें कावेरी जल विवाद में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर टिकी हुईं थी। इस केस की सुनवाई चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुवाई वाली तीन सदस्यीय बेंच कर रही थी। जिसने अपने आदेश में कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि तमिलनाडु को 404.25 टीएमसी फीट पानी दिया जाए। इससे पहले कावेरी जल विवाद ट्राइब्यूनल ने तमिलनाडु को 419 टीएमसी फीट पानी देने का फैसला दिया था। इसके साथ ही देश की सबसे बड़ी अदालत सुप्रीम कोर्ट ने कावेरी बेसिन के कुल बीस टीएमसी फीट भूमिगत जल में से दस टीएमसी फीट अतिरिक्त पानी निकालने की इजाजत दे दी है। कावेरी जल विवाद में सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कुछ और राज्यों में भी पानी की सप्लाई कितनी हो इसका निर्धारण कर दिया है।
जहां एक ओर सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक को 284.75 टीएमसी फिट पानी देने का फैसला सुनाया। वहीं दूसरी ओर केरल को 30 टीएमसी फिट पानी देने को कहा है। जबकि पुदुचेरी को सात टीएमसी फिट पानी दिया जाएगा। यानी सुप्रीम कोर्ट ने पुदुचेरी और केरल को कावेरी नदी से मिलने वाले पानी में कोई छेड़खानी नहीं की है। हालांकि सुप्रीम कोर्ट का मानना है कि बंगलुरू में पानी की किल्लत है। बेंगलुरु के लोगों की पेयजल और भूमिगत जल की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए ही कावेरी जल विवाद में कर्नाटक की हिस्सेदारी बढ़ा दी है। हालांकि माना जा रहा है कि सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद एक बार फिर तमिलनाडु और कर्नाटक के बीच हालात बिगड़ सकते हैं। क्योंकि तमिलनाडु के लोगों का कहना है है कि वो अपने हिस्से का पानी किसी और राज्य को नहीं देंगे। कावेरी जल विवाद को लेकर इससे पहले भी कई बार घमासान हो चुका है।
तमिलनाडु और कर्नाटक के बीच कावेरी जल विवाद दशकों पुराना है। 1990 की तत्कालीन केंद्र की सरकार ने इस विवाद को निपटाने के लिए कावेरी ट्रिब्युनल भी बनाया था। लेकिन, हुआ कुछ भी नहीं। हालांकि ट्रिब्युनल में लंबी सुनवाई के बाद साल 2007 में CWDT ने अपना फैसला सुनाया। CWDT ने अपने फैसले में कावेरी नदी से निकलने वाले पानी में से हर साल 419 अरब क्यूबिक फीट पानी तमिलनाडु को देने का फैसला सुनाया। इसके साथ ही कर्नाटक को 270 अरब क्युबिक फीट पानी हर साल देने की बात कही। लेकिन ट्राइब्यूनल का फैसला ना तो तमिलनाडु के लोगों को पंसद था और ना ही कर्नाटक को। जिसके बाद ये मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया थ। कावेरी नदी कर्नाटक के कोडागु जिले से निकलती हैं और तमिलनाडु के पूमपुहार में बंगाल की खाड़ी में जाकर गिरती है। कावेरी नदी के बेसिन में तमिलनाडु का करीब 44 हजार वर्ग किलोमीटर का इलाका है। जबकि कर्नाटक का इलाका 32 हजार वर्ग किलोमीटर है।