फिर अपनी औकात भूले ओवैसी, आर्मी चीफ बिपिन रावत को दी नसीहत

AIMIM चीफ असदुद्दीन ओवैसी ने अपनी हद लांघते हुए आर्मी चीफ बिपिन रावत को ही नसीहत देनी शुरु कर दी है। जानिए क्‍या है पूरा मामला।

New Delhi Feb 22 : AIMIM चीफ असदुद्दीन ओवैसी एक बार फिर अपनी हद लांघते हुए नजर आए हैं। इस बार तो उन्‍होंने आर्मी चीफ बिपिन रावत को ही नसीहत देनी शुरु कर दी है। ओवैसी का कहना है आर्मी चीफ को राजनैतिक बयानबाजी से दूर रहना चाहिए। जबकि दूसरी ओर सोशल मीडिया पर आर्मी चीफ को लोगों का समर्थन मिला है। लोगों ने अब AIMIM चीफ असदुद्दीन ओवैसी से ही सवाल करने शुरु कर दिए हैं कि क्‍या बांग्‍लादेशी घुसपैठियों के खिलाफ आवाज उठाना या उस पर बयान देना राजनीति है? ओवैसी की गिनती उन नेताओं के तौर पर होती है जो हमेशा अलगाव को बढ़ावा देते हैं। वो एक सांप्रदाय विशेष की राजनीति करते हैं। ओवैसी अकसर अपने बयानों को लेकर विवादों और सुर्खियों में रहते हैं। दरअसल, आर्मी चीफ बिपिन रावत ने देश में बांग्‍लादेशी घुसपैठ को लेकर ना सिर्फ चिंता जाहिर की थी बल्कि उस पर एक बयान भी दिया था। लेकिन, ये बयान ओवैसी को पसंद नहीं आया।

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आर्मी चीफ बिपिन रावत ने बांग्लादेशी नागरिकों की घुसपैठ और असम की ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट यानी AIUDF पर बयान दिया था। जिसका अब राजनीतिकरण किया जा रहा है। आर्मी चीफ के इस बयान के बाद ही ओवैसी ने ट्वीट किया और उनके बयान पर सवाल उठाए। ओवैसी ने आर्मी चीफ बिपिन रावत पर हमला करते हुए अपने ट्वीट में लिखा है कि उन्‍हें राजनीतिक मामलों में दखल नहीं देखा चाहिए। किसी राजनैतिक पार्टी के उदय पर बयान देने का काम उनका नहीं है। लोकतंत्र और देश का संविधान इस बात की इजाजत नहीं देता है। ओवैसी का कहना है कि आर्मी एक निर्वाचित नेतृत्व के अंतगर्त काम करती है। ऐसे में उन्‍हें समझना चाहिए और राजनैतिक मसलों से दूर रहना चाहिए। ओवैसी के इस बयान के बाद उनकी जमकर आलोचना हो रही है। कहा जा रहा है कि वो आर्मी के काम में दखल ना दे तो बेहतर होगा।

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दरसअल, एक सेमिनार में आर्मी चीफ बिपिन रावत ने कहा था कि जितनी तेजी से देश में भारतीय जनता पार्टी का विस्‍तान नहीं हुआ है उतनी तेजी से तो असम में बदरुद्दीन अजमल की पार्टी ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट यानी AIUDF बढ़ी है। दरअसल, आर्मी चीफ बिपिन रावत ने इस इलाके में होने वाली बांग्लादेशी घुसपैठ और जनसांख्यिकी परिवर्तन को समझाने के लिए बदरुद्दीन अजमल की पार्टी ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट का उदाहरण दिया था। उन्‍होंने कहा कि इस तरह की घुसपैठ का एक ये भी मकसद होता है कि एक बड़े जमीन पर कब्‍जा जमाया जाए। भारत में हो रही बांग्‍लादेशियों की घुसपैठ को लेकर उन्‍होंने कहा था कि इसके पीछे हमारे पश्चिमी पड़ोसी देशों की छद्म नीति जिम्‍मेदार है। आपको बता दें कि देश के उत्‍तर-पूर्व इलाके में बांग्‍लादेश से सबसे ज्‍यादा घुसपैठ होती है।

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आर्मी चीफ बिपिन रावत का कहना था कि इस काम में हमारे पश्चिमी पड़ोसी देशों को उत्तरी पड़ोसी देशों का साथ मिल रहा है। इसके साथ ही उन्‍होंने कहा कि नॉर्थ ईस्‍ट की समस्याओं का समाधान तभी मुमकिन है जब वहां के लोगों को मुख्‍यधारा में जोड़ा जाए। विकास किया जाए। दरअसल, इस बात को नकारा नहीं जा सकता है कि देश में बांग्‍लादेशियों की घुसपैठ बड़ी समस्‍या बनती जा रही है। इस तरह की घुसपैठ देश की सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा बन रही है। दूसरी हकीकत ये है कि बांग्‍लादेशी घुसपैठिए आसानी से देश में अपनी सरकारी पहचान हासिल कर लेते हैं। वोटर लिस्‍ट में नाम आते ही इनका राजनीतिक इस्‍तेमाल शुरु हो जाता है। चंद पार्टियां वोट बैंक की खातिर इन्‍हें खूब बढ़ावा देती हैं। लेकिन, देश के लिए खतरा बढ़ता ही जाता है। देश के राजनैतिक दलों को इस संवेदनशील मसले पर राजनीति की बजाए गंभीरता से विचार करना होगा। नहीं तो आने वाले दिनों में देश के भीतर एक नया बांग्‍लादेश बन जाएगा।