महाराष्ट्र के इस किसान आंदोलन ने बहुत कुछ सिखाया, अन्नदाता के इस आंदोलन को सलाम !

सरकार से बातचीत हुई, मांगें पूरा होने का भरोसा मिला, उतनी ही शालीनता से सारे किसान वापस भी चले आए।

New Delhi, Mar 14 : महाराष्ट्र के इस किसान आंदोलन ने बहुत कुछ सिखाया है। पहला तो ये कि हक के लिए आंदोलन कैसे करें। 40 हजार से ज्यादा किसान थे, लेकिन न कोई उत्पात, न कोई हिंसा। 180 किलोमीटर पैदल चलकर नासिक से मुंबई पहुंचे, लेकिन रास्ते भर कोई शोरगुल नहीं, न कोई हंगामा। इंसानियत के इतने कायल कि सोमवार की सुबह छात्रों को इम्तिहान के लिए स्कूल जाने में दिक्कत ना हो, इस नाते सुबह का पहले से तय सफर रात में ही तय कर लिया।

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न आराम किया और न ही कायदे से खाया-पिया। स्वाभिमान इतना कि सरकार ने उन्हें सोमैया मैदान से आजाद मैदान तक जाने के लिए 72 बसें दी थीं, Farmers Protest1लेकिन किसानों ने पैदल जाना कबूल किया, सरकार को संदेश भी दिया कि उन्हें इंसाफ चाहिए, खैरात नहीं। 6 दिन में 180 किलोमीटर पैदल चले, यानी हर दिन 30 किलोमीटर चले। इस भीड़ में नौजवान थे तो बुजुर्ग भी। पांवों में छाले पड़ गए, लेकिन हौसला नहीं टूटा। सरकार से बातचीत हुई, मांगें पूरा होने का भरोसा मिला, उतनी ही शालीनता से सारे किसान वापस भी चले आए।

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किसानों के इस आंदोलन को लाल-भगवा चश्मे से न देखें। कई वामपंथी साथी इसे वामपंथ की ताकत कह रहे है, ये अन्नदाता को दी गई सबसे बुरी गाली है। Farmers Protest12किसानों की टोपी के रंग में उनका सियासी डीएनए मत तलाशिए। जिन दक्षिणपंथियों को किसानों के मुंबई पहुंचने और इस किसान आंदोलन में वामपंथियों की चाल नजर आई, वो भी देश के अन्नदाता का घोर अपमान कर रहे हैं। किसान दशकों से तमाम समस्याओं में घिरे हैं, इसमें भला क्या संदेह है.? हर सरकार ने इन्हें छला है, इसमें क्या संदेह है..?

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बतौर पत्रकार मैंने देखा है आंदोलन के नाम पर अराजकता फैलाने वालों को। ट्रेन के डिब्बे और बसें फूंकने वालों को, सड़क पर टायर जलाकर उत्पात मचाने वालों को। Maharashtraबेवजह आम लोगों के लिए दुश्वारियों का अंबार लगाने, बेकसूर लोगों के साथ मार पीट करने और उसे आंदोलन का नाम देने वाले तथाकथित क्रांतिकारियों को। आज किसानों का ये शांतिपूर्ण आंदोलन देखकर मैं नतमस्तक हो गया। फिर निवेदन करना चाहता हूं कि किसानों को वामपंथ, दक्षिणपंथ में बांटकर मत देखिए। हमारे अन्नदाता वाकई मुश्किलों में घिरे हैं, उनका समर्थन जरूरी है।

(वरिष्ठ पत्रकार विकास मिश्र के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)