क्या बिहार की एक चौथाई सीट पाकर नीतीश कुमार संतुष्ट होंगे ?

भाजपा के सामने संकट यह है कि वह नीतीश कुमार की पार्टी को लोकसभा में कितनी सीटें देने का वादा करे।

New Delhi, Apr 18 : बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को लेकर भाजपा में भी चर्चा गर्म है और जेडीयू में भी भ्रम की स्थिति बनती जा रही है. जेडीयू के नेता जानना चाहते हैं कि अगले लोकसभा चुनाव में नीतीश की भूमिका क्या होगी, लेकिन दिल्ली से भाजपा नेतृत्व ने अभी तक इस बारे में साफ साफ जवाब नहीं दिया है. सुनी-सुनाई है कि नीतीश कुमार अब मोदी-शाह की जोड़ी के साथ असहज महसूस करने लगे हैं।

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पहले उन्हें लगता था कि उन्हें एनडीए में पद के साथ प्रतिष्ठा भी मिलेगी. लेकिन ऐसा नहीं हुआ है. उनके पास मुख्यमंत्री का पद तो है, लेकिन उन्हें वैसी अहमियत नहीं मिल रही है जैसी जेडीयू को उम्मीद थी.. जेडीयू के एक पूर्व सांसद आज के एनडीए की तुलना वाजपेयी के वक्त के एनडीए से करते हुए कहते हैं, ‘15 साल पहले पहले नीतीश कुमार एनडीए के ज्यादा बड़े नेता थे. उस वक्त के प्रधानमंत्री वाजपेयी, उपप्रधानमंत्री आडवाणी से उनकी लगातार बात होती थी. अटलजी उन्हें बेहद प्रेम करते थे और आडवाणी की नजर में नीतीश का सम्मान जगजाहिर था.’ वे आगे कहते हैं, ‘लेकिन आज के एनडीए में स्थिति बिल्कुल उल्टी है.

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प्रधानमंत्री और बिहार के मुख्यमंत्री के बीच अब वैसा संपर्क नहीं है. राज्यों के ज्यादातर मसले भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ही देखते हैं. आज भी नीतीश कुमार और अमित शाह के बीच संबंध कोई खास नहीं हैं. अगर डिप्लोमेसी से एक शब्द उधार लिया जाए तो कहा जाएगा कि नीतीश कुमार और भाजपा नेचुरल सहयोगी नहीं दिखते’. जानकारों के मुताबिक ऐसा नहीं है कि नीतीश कुमार ने मोदी-शाह के सामने सरेंडर कर दिया है. वे गाहे-बगाहे अपनी बात इशारे में समझाते रहते हैं. जेडीयू के भी सभी नेताओं को ऊपर से साफ निर्देश है कि नरेंद्र मोदी और अमित शाह पर न ही तारीफों की बारिश करनी है और न ही आलोचना के शब्दबाण चलाने हैं. बिहार में भाजपा के एक मंत्री कहते हैं, ‘नीतीश कुमार के लिए बिहार सरकार चलाना इस वक्त बेहद आसान है क्योंकि पटना में मुख्यमंत्री नीतीश और उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी की जोड़ी एक दूसरे को समझती है.

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वही पुराना तालमेल बैठ चुका है.’ वे आगे जोड़ते हैं, ‘लेकिन नीतीश जेडीयू के अध्यक्ष भी हैं और उनके लिए पार्टी और भाजपा का गठबंधन चलाना मुश्किल हो रहा है. हाल ही में हुए विधान परिषद चुनाव में भाजपा ने नीतीश कुमार से आधी सीटें मांग लीं. विधानसभा में भाजपा के सिर्फ 53 विधायक हैं जबकि जेडीयू के 70 सदस्य हैं. फिर भी भाजपा ने तीन और जेडीयू ने तीन उम्मीदवार उतारे.. सुनी-सुनाई है कि नीतीश कुमार ने भाजपा के सामने लोकसभा चुनाव का फॉर्मूला रखा है. इसके तहत जेडीयू चाहता है कि बिहार की 40 में से 20 सीटों पर ही भाजपा चुनाव लड़े और बाकी 20 सीटें अपनी सहयोगी पार्टियों के लिए छोड़ दे. लेकिन भाजपा के लिए मुश्किल यह है कि इस वक्त बिहार से उसके 22 लोकसभा सांसद हैं. पिछली बार भाजपा 40 में से 30 सीटों पर चुनाव लड़ी थी जिसमें से 22 सीटें भाजपा को मिलीं. राम विलास पासवान की पार्टी सात सीटों पर चुनाव लड़ी और छह सीटें जीत गई. उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी ने तीनों सीटों पर चुनाव लड़ा था. उसने तीनों सीटें जीतीं, पर बाद में एक सांसद बागी हो गया. बिहार में अभी नीतीश की पार्टी के सिर्फ दो ही सांसद हैं.

भाजपा के सामने संकट यह है कि वह नीतीश कुमार की पार्टी को लोकसभा में कितनी सीटें देने का वादा करे.. बिहार में इन दिनों नीतीश कुमार और राम विलास पासवान की बढ़ती मुलाकातों की भी चर्चा है. अब तक पटना में नीतीश कुमार और राम विलास पासवान के बीच पांच मुलाकातें हो चुकी हैं. दलित मुद्दे पर राम विलास का बयान भी भाजपा के लिए थोड़ी मुश्किल खड़ी कर रहा है. राम विलास अपने कोटे की एक सीट छोड़ने के लिए तैयार हैं. मतलब लोक जनशक्ति पार्टी पिछली बार सात सीटों पर लड़ी थी तो इस बार वह छह सीटों पर सहमत हो सकती है. भाजपा के एक वरिष्ठ नेता से जब पूछा गया कि राम विलास और नीतीश कुमार की नजदीकी से भाजपा को क्या किसी तरह की परेशानी हो सकती है, तो उनका जवाब था, ‘राम विलास आने वाले वक्त में कुछ खास समस्या नहीं बनेंगे, वैसे भी उनकी पार्टी में ज्यादातर फैसले बेटे चिराग पासवान लेते हैं जो फिलहाल भाजपा के साथ ही बने रहना चाहते हैं.’ ऐसे में नीतीश कुमार की समस्या है कि आखिर वे लोकसभा में कितनी सीटों पर समझौता कर लें. सुनी-सुनाई से कुछ ज्यादा है कि भाजपा ने उनसे लोकसभा चुनाव छोड़कर आने वाले विधानसभा चुनाव पर ध्यान देने की गुजारिश की है. उसने एक नया फॉर्मूला भी उछाला है, इस फॉर्मूले में भाजपा अपने 22 सांसदों की सीट अपने पास रखेगी यानी 22 सीटों पर पार्टी चुनाव लड़ेगी. राम विलास पासवान की पार्टी के छह सांसद हैं, छह सीटें उसे मिंलेगी. उपेंद्र कुशवाहा अगर तब तक एनडीए में रहे तो उनके दो सांसद हैं, उन्हें दो सीटें ही दी जाएंगी. इस तरह 40 में से नीतीश की पार्टी को सिर्फ 10 सीटें ही मिलने की संभावना है.. अब सवाल है कि क्या बिहार की एक चौथाई सीट पाकर नीतीश कुमार संतुष्ट होंगे क्योंकि इसी बिहार में हमेशा से जेडीयू भाजपा से ज्यादा सीटें लड़ती आई है?