बाबा पुराण : बाबाओं के चेले मुस्टंडे होते थे और चेलियां बला की खूबसूरत

बाबाओं की मांग उफान पर थी और लंगड़े बाबा, लूले बाबा, अंधे बाबा, काने बाबा, नंगे बाबा, पागल बाबा, नशेड़ी बाबा, गंजेड़ी बाबा, लुच्चे बाबा, टुच्चे बाबा सभी खप जा रहे थे।

New Delhi, Apr 26 : जब देश में पढ़े-लिखे नौजवान एक ढाबा तक नहीं खोल पाते थे, तब बाबा लोग चाँदी काट रहे थे। हर तरफ बाबा लोगों की धूम थी और बाबा बाज़ार में बूम आ गया था। 133 करोड़ लोगों के मुल्क में जहां हज़ारों-लाखों लोगों पर एक डॉक्टर, एक शिक्षक, एक पुलिसिये वगैरह हुआ करते थे, वहां पूरे 33 करोड़ देवी-देवता थे। यानी हर तीसरे-चौथे आदमी पर एक भगवान। कुल मिलाकर भगवानों की तो कोई कमी नहीं थी, कमी थी तो बस भगवान तक आदमी को पहुंचाने वाले बिचौलियों की। अगर एक-एक बाबा सौ-सौ भगवानों का ठेका भी ले लेता, तो भी इस देश में लाखों बाबाओं की गुंजाइश बनी हुई थी। यही वजह थी कि बाबाओं की मांग उफान पर थी और लंगड़े बाबा, लूले बाबा, अंधे बाबा, काने बाबा, नंगे बाबा, पागल बाबा, नशेड़ी बाबा, गंजेड़ी बाबा, लुच्चे बाबा, टुच्चे बाबा सभी खप जा रहे थे।

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लेकिन इन नंगे बाबाओं से नंगे लोग तो खुश हो जाते, चंगे लोगों के मन को संतोष नहीं मिल पाता। उन्हें चिकना-चुपड़ा चमकता-दमकता टिप-टॉप बाबा चाहिए था। इस तरफ काफी वेकेंसी थी। पूंजीपतियों के जागरणों से लेकर टीवी चैनलों तक में इनकी बड़ी मांग थी। मौके का फायदा उठाकर भांति-भांति के लोग इस ज़रूरत को पूरा करने में जुट गये थे। उपदेश देने के इस धंधे में कई बाबा ऐसे थे, जो जवानी के दिनों में हत्या या बलात्कार कर फरार हुए होते थे। पुलिस से भागते-भागते एक दिन उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हो जाती और हुलिया बदल कर बाबा बन जाते। कई बाबा घूसखोरी और भ्रष्टाचार के आरोप में नौकरी से बर्खास्त किये गये होते थे, तो कई बाबाओं के तार राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय तस्करों और दलालों से जुड़े होते थे।

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बाबा लोगों के नाम के आगे श्री श्री 108 या 1008 वगैरह लिखा जाता था। दरअसल बाबा का काम एक श्री से चलता ही नहीं था। वो तो एक-एक श्रीमतियों वाले लोग होते हैं, जिनके नामों के आगे एक ही श्री लगता है, लेकिन बाबा को श्रीमतियों की क्या कमी थी। जितनी श्रीमतियां, उतने श्री। एक वक्त ऐसा आता था जब श्रीमतियों की गिनती करना संभव नहीं रह जाता था, तो अनुमान के आधार पर वो अपने नाम के आगे 108 या 1008 श्री श्री लगा लेते थे।
बाबा लोग यूं ही नहीं सबसे ज्यादा भक्तिनियों का ख़याल रखते हैं। प्यार से पीठ पर हाथ फिराकर आशीर्वाद देना और आसक्ति भरे नेत्रों से मीठी बानी में बात करना। जिन महिलाओं से कभी पति ने सीधे मुंह बात नहीं की, बाबा जब उन पर फुलझड़ी बरसाते, तो उनके दिल को बड़ी ठंडक पहुंचती। बाबा कुकर्मी भी हो सकता है, इस पर उन्हें यकीन ही नहीं होता।

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बाबाओं के चेले मुस्टंडे होते थे और चेलियां बला की खूबसूरत। बाबाओं के चेले हर जायज़ सवाल पर बवाल कर देते, और उनकी चेलियां रंगरेलियों में मगन रहतीं। बाबाओं के चेले कानून को अपनी जेब में लेकर घूमते, तो उनकी चेलियां कानून बनाने वालों को पल्लू में बांधकर रखतीं। बाबा लोगों के चेलों ने कितने हवाई अड्डों, रेलवे स्टेशनों और स्वयंसेवी संस्थाओं के दफ्तरों पर धावा बोला, अगर इसका हिसाब नहीं, तो उनकी चेलियों ने कितने नेताओं-पूंजीपतियों पर डाका डाला, इसका भी जवाब नहीं।
जो भी हो, हर तरफ बाबा लोगों की धूम थी और जनता उनके चरणों में दरी की तरह बिछी जाती थी। एक-एक बाबा को इतना चढावा मिलता, जिससे हजारों लोगों के पोते-पोतियां पल जाएँ। जो लोग गरीब ठेले वालों से आठ-आठ आने के लिए हुज्जत करते थे, वो बाबा पर अपना सब कुछ न्योछावर करने को तैयार थे। लोगों को सादगीपूर्ण जीवन का उपदेश देने वाले बाबा हवाई जहाज़ों में उड़ते और पूंजीपतियों का अतिथि बनकर फाइव स्टार होटलों और बड़े-बड़े फार्म हाउसों में रुकते। बिना गद्दे वाले विस्तर और बिना एसी के कमरे में बाबा को नींद नहीं आती। बाबाओं की देह पर इतनी चर्बी चढ़ी होती थी कि उनके खान-पान पर टिप्पणी करके नज़र लगाने को जी चाहता है।

छोटे-छोटे शहरों में बाबा लोगों की बड़ी-बड़ी सभाएं लगतीं। बड़े-बड़े शहरों में और भी बड़ी सभाएँ लगा करतीं। बाबा के दर्शन के लिए लोगों को टिकट कटाना पड़ता। हज़ारों लोग लाइन लगाकर बैठते। बीच-बीच में बाबा उनको नचाता-गवाता रहता। आगे बैठने वाले लोगों को बाबा को नंगी आँखों से देखने का सौभाग्य मिलता, तो पीछे बैठने वाले उन्हें क्लोज सर्किट टीवी पर देखकर ही अघाने की कोशिश करते। इन बड़ी-बड़ी सभाओं के लिए दीवारों पर बड़े-बड़े कलरफुल इश्तेहार लगाए जाते थे। टीवी पर लाखों के विज्ञापन दिये जाते थे। इन इश्तेहारों में बाबा लोगों को बापू या महाराज कहा जाता। कई बाबाइनें भी पैदा हो गयी थीं, जिन्हें मां या माता वगैरह कहा जाता था।
75-75 साल के बुड्ढे-बुड्ढियां भी अपने से कम उम्र के बाबाओं और बाबाइनों को बापू और माता वगैरह कहते और लालायित होकर चरण-स्पर्श करते। कई लोग ऐसे होते थे, जिन्होंने अपने खुद के मां-बापों को जिन्दगी भर झाड़ू से झांटा होता, लेकिन बाबा के दरबार में वो झाड़ू लगाने के लिए भी बेहाल थे।
इस मुल्क में जनता को उल्लू बनाकर अपना उल्लू सीधा करने वालों में बाबा लोग नेता लोगों से भी ज्यादा सफल हो रहे थे। इसीलिए बड़े-बड़े नेता बाबाओं के चेले होते और बाबाओं का पत्ता सत्ता में भी खूब चलता। सरकारें तोड़ने-जोड़ने में उनकी बड़ी भूमिका होती।

ऐसे में आश्रमों के लिए बड़े-बड़े प्लॉट उन्हें औने-पौने दामों में मिल जाते। उन आश्रमों में पूरी प्राइवेसी और एकाग्रता के साथ बाबा को सारे कुकर्म करने और तिकड़म चलाने की सुविधा मिल जाती। कई आश्रमों में चरस और गांजा की भी सुविधा होती और कई जगहों पर सुंदरियां भी उपलब्ध हो जातीं। पर उपदेश कुशल बाबाओं का मंच के पीछे का सारा समय कुकर्मों और तिकड़मों में चला जाता। जनसंचार माध्यमों और चाटुकार चेलों का चक्कर ऐसा था कि इन पर पर्दा पड़ा रहता और दिन-रात गुणगान चलता रहता।
कई बाबा तो भगवान को बेचते-बेचते और उनकी तस्करी करते-करते खुद भगवान बन बैठे थे। बाबाओं के भगवान बनने में कुछ घिसे-पिटे तरीके बड़े कारगर साबित हो रहे थे। मसलन, बाबा लोग अपनी असली उम्र किसी को नहीं बताते। कभी किसी 90 साल के बूढ़े को आगे कर देते, जो बताता कि अपने बचपन से वो बाबा को ऐसे ही देख रहा है। जनता इसे चमत्कार मानती। भगवान बनने की दिशा में दूसरा कदम ये होता कि बाबा लोग अपनी सभाओं में बीच-बीच में चमचों को बैठा देते। फिर एक-एक कर उनसे सवाल पूछते, और चमचे उनके चमत्कारों की श्रद्धाविभोर होकर चर्चा करते।
मूर्ख, अंधविश्वासी, शॉर्टकट तलाशती मनोबल विहीन और डरी हुई जनता बाबा की लंबी दाढ़ी में छिपे तिनके नहीं देख पाती और बाबा सारे कुकर्म करके भी भगवान बन जाता।

नोट- यह बाबा पुराण काफी पुराना है। करीब 15-20 साल। इसलिए, इसके कुछ आंकड़े अपडेट कर दिए गए हैं। यह कई अखबारों-पत्रिकाओं और वेबसाइटों पर पहले ही प्रकाशित हो चुका है।