‘योगी जैसा ईमानदार मुख्यमंत्री असफल हुआ तो प्रदेश के लिए अच्छा नहीं होगा’
CM योगी को कार्य करने की freedom नहीं है, यही कारण है कि प्रदेश में विकास कार्य जिस गति से होने चाहिए थे नहीं हो पा रहे हैं।
New Delhi, Apr 27 : उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव मौर्य का गम्भीर आरोप है कि ‘CM योगी के अधिकारी मंत्रियों की भी नहीं सुनते’। कारण क्या हो सकते हैं ? या तो अधिकारी पूर्व सरकारों के प्रति आज भी वफ़ादार हैं या फिर सरकार को अधिकारियों से काम लेना नहीं आता, यह सही है कि भ्रष्टाचार रुक नहीं पा रहा है और CM योगी के ग्रामीण भ्रमण में साफ़ हो गया कि सरकार के कार्यक्रम धरातल पर भी नहीं उतर पा रहे हैं।
सरकार की चिंता है वस्तुतः २०१९ का चुनाव है, बोखलाहट में अधिकारियों को दोष देकर अकर्मण्यता से पल्ला झाड़ना सबसे आसान रास्ता है। अधिकारियों पर CM योगी की चेतावनी भी कोई असर नहीं कर रही है, अधिकारियों की तैनाती या तो दिल्ली से हो रही है या फिर संगठन मंत्री सुनील बंसल कर रहे है, जो ‘सुपर CM’ के नाम से जाने जाते हैं। ऐसी स्थिति में अधिकांश उच्च अधिकारी सरकार के नियंत्रण से बाहर हो गए हैं। जिले के अधिकारी सामान्य कार्यकर्ता की तो दूर विधायकों/सांसदों तक की भी नहीं सुन रहे हैं। CM योगी पर अभी तक भ्रष्टाचार का दाग़ नहीं लगा है जबकि कई मंत्रियों पर भ्रष्टाचार के आरोप लग चुके हैं।
यदि योगी जैसा ईमानदार मुख्यमंत्री असफल हुआ तो प्रदेश के लिए अच्छा नहीं होगा, अब तो लोग कई मामलों में भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरी पूर्व सरकारों को भी याद करने लगे हैं। बिल्डर/भूमाफ़िया आज भी हावी होने लगे हैं, प्रदेश में हालिया बलात्कार की घटनाओं ने सरकार की ख़ूब किरकिरी की है।
मुख्यसचिव नौकरशाही का मुखिया होता है लेकिन इस सरकार में कई अपर मुख्यसचिव/ प्रमुख सचिव उनकी बात नहीं मान रहे हैं। मुख्य सचिव का पद पिछले कई वर्षों में कमज़ोर हुआ है, इस कार्यालय का नौकरशाही पर नियंत्रण कम हुआ है। इस सरकार में भी काफ़ी निर्णय मुख्य सचिव की बिना जानकारी के कई प्रमुख सचिवों द्वारा मंत्री से मिलकर चुपचाप ले लिए जा रहे हैं।
मुख्यमंत्री कार्यालय की नौकरशाही का नियंत्रण भी या तो दिल्ली में हैं या फिर संगठन मंत्री सुनील बंसल के हाथ में हैं। प्रदेश में कई सत्ता के केंद्र हो गए हैं। CM योगी को कार्य करने की freedom नहीं है, यही कारण है कि प्रदेश में विकास कार्य जिस गति से होने चाहिए थे नहीं हो पा रहे हैं। बुंदेलखंड के किसी दलित के घर ‘घास’की रोटी क्यों नहीं खाते नेतागण ? यदि दलित प्रेम इतना ही उमड़ रहा है तो प्रदेश के सभी मंत्री ग़रीब दलितों को अपने घर बुलाकर भोज क्यों नहीं कराते ? सब ‘Stage Managed’ खोखला ड्रामा सा लगता है। वोट के लिए ‘घसीट’ से दलित पटने वाले नहीं हैं। ग़रीब तो सभी वर्गों/जातियों में हैं। क्या उनका वोट नहीं चाहिए, नौकरशाही ने प्रतापगढ़ में CM योगी के भोजन के लिए गाँव के सबसे मालदार दलित परिवार का चयन करा दिया। इस परिवार में चार सरकारी नौकर हैं, एक राजपत्रित अधिकारी भी हैं। कैसा दलित के घर भोज हुआ यह ? २५ लोगों ने खाना खाया और उसमें भी चार सब्ज़ी व एक दाल के साथ, कौन गाँव का ग़रीब दलित खिला सकता है ऐसा खाना, अच्छा होता यदि ‘असली’ ग़रीब दलित के घर जो जैसा बना था उसे चख लिया जाता, चटनी व सुखी रोटी, शायद ज़्यादा अपनापन लगता !
पता नहीं, आप मेरी बातों से कितना सहमत हैं ?