ईनाम अगर मौत भी है तो क्या हुआ, सिर्फ जीतना ज़रुरी है- Prakhar Srivastav

यहां जीतने वालों को मिलने वाली थी बेहद दर्दनाक मौत, लेकिन कुछ जाबांजों ने हार के बजाय जीत को चुना।

New Delhi, Apr 29 : ये वतन से मुहब्बत की ऐसी दास्तां है जिसकी मिसाल पूरी इंसानियत के इतिहास में नहीं मिलती। अब तक आपने यही सुना होगा की जीतने वाले को ईनाम मिलता है, लेकिन उस दिन हुए मैच का कायदा कुछ और था, यहां जीतने वालों को मिलने वाली थी बेहद दर्दनाक मौत, लेकिन कुछ जाबांजों ने हार के बजाय जीत को चुना। ज़िंदगी के बदले मौत को चुना।

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ये दूसरे विश्वयुद्ध की बात है, हिटलर की नाजी सेना ने सोवियत संघ के बड़े शहर कीव पर कब्ज़ा कर लिया। हजारों लोगों को बंदी बना लिया गया, कैदियों में दुनिया की मशहूर ‘कीव डायनामो’ फुटबॉल टीम के कई खिलाड़ी भी थे। जेल की चार दीवारी भी इस टीम के कप्तान निकोलई ट्रूसेविच के फुटबॉल के जूनून को कम नहीं कर पाईं। कप्तान निकोलई को नाजी कैंप में जब भी समय मिलता वो अपनी कीव डायनामों के खिलाड़ियों के साथ फुटबॉल खेलने लगते, हिटलर की नाजी सेना के अधिकारियों ने जब उन्हे देखा तो सोचा क्यों ना जर्मनी की किसी मजबूत टीम से इनका मुकाबला करवाया जाए। नाजी सेना ने जर्मनी की मशहूर टीम ‘फ्लेकल्फ’ को कीव बुलाया, नाज़ी किसी भी सूरत में हारना नहीं चाहते थे। उन्होने कीव डायनामों के खिलाड़ियों को साफ-साफ कह दिया की मैच में अगर उन्होने जीतने की जुर्रत की तो पूरी टीम का अंजाम सिर्फ मौत होगा।

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9 अगस्त 1942 को कीव के ज़ेनिट स्टेडियम में करीब पचास हज़ार लोगों और कैदियों के सामने मैच शुरु हुआ। जर्मन सेना के बड़े बड़े जनरल भी मैच देखने आए, हिटलर के नाज़ियों को पूरा भरोसा था कि मौत के डर से रुसी कैदियों की टीम जीतने की ज़ुर्रत नहीं करेगी। मौत का मैच शुरु हो चुका था, जर्मन टीम ने सारे नियम कायदे ताक पर रख दिए। नाज़ी रैफरी ने उन्हे खुली छूट दे रखी थी, मैच की शुरुआत में ही जर्मनी की फ्लेकल्फ ने पहला गोल ठोक दिया, पहला हॉफ हो चुका था और स्कोर था, फ्लैकल्फ 3 कीव डायनामो 0, हॉफ टाइम के दौरान नाज़ी अधिकारियों ने एक बार फिर कीव डायनामों के खिलाड़ियों को धमकी दी की वो एक भी गोल ना करें, और अगर गोल किया तो बदले में मिलेगी गोली, लेकिन इंसानी इतिहास की रौंगटे खड़े कर देने वाली जाबांज़ी की कहानी तो अभी शुरु होने वाली थी।

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दूसरे हॉफ के दूसरे मिनट में ही कीव डायनामों ने गोल करके जैसे ऐलान कर दिया कि उन्हे मौत मंज़ूर हैं लेकिन हार नहीं, इसके बाद कीव डायनामो ने एक के बाद एक दो और गोल ठोक दिए। रुसी टीम ने स्कोर बराबर कर दिया था, लेकिन अभी तो बहुत कुछ बाकी था, मैच के आखिरी मिनटों में रुसी टीम कीव डायनामों ने दो और गोल ठोक दिए। जब रैफरी ने मैच खत्म होने की सीटी बजाई तो स्कोर था। फ्लैकल्फ 3, कीव डायनामो 5… रुसी बंदियों की टीम ने हिटलर की टीम को 5-3 से रौंद दिया था।
इस हार के बाद नाज़ी सैनिकों की आंखों में खून उतर आया। दूसरी तरफ स्टेडियम में मौजूद भीड़ पर छा चुका था जुनून, आज़ादी का जूनुन, लेकिन इसी भीड़ को नहीं मालूम था जिन खिलाड़ियों ने उन्हे ये खुशी दी है उनका अंजाम बहुत भयानक होने वाला है। मैच के अगले दिन ही कीव डायनामों की पूरी टीम को नाज़ियों के सबसे खतरनाक यातना शिविर करोलेंको भेज दिया गया। जहां सात दिन के अंदर सबसे पहले कीव डायनामो के कप्तान निकोलई ट्रूसेविच को मौत के घाट उतारा गया। इसके बाद पूरी की पूरी कीव डायनामो की टीम को एक के बाद एक गोली मार दी गई, जुल्म की इंतहा का अंदाज़ा लगाइए कि इनमें से एक भी खिलाड़ी की लाश तक नहीं मिली। 75 साल गुज़र चुके हैं, कीव डायनामों की जाबांज टीम कहां दफन है कोई नहीं जानता, लेकिन कीव का वो ज़ेनिट स्टेडियम आज भी मौजूद हैं जहां इंसानी इतिहास की ये वीरगाथा लिखी गई थी। जो याद दिलाता है कि देश के लिए जीतने का इनाम अगर मौत भी है तो क्या हुआ, सिर्फ जीतना ज़रुरी है।

(वरिष्ठ पत्रकार प्रखर श्रीवास्तव के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)