पारिवारिक दलों में यही होता है, परिवार के लोग मालिक और बाकी स्टाफ

तेज प्रताप चाहते हैं कि पूर्वे जी जितना तेजस्वी की बात सुनते हैं, उतना ही उनकी बात भी सुनें. तेज प्रताप बड़े भाई हैं, इसलिए उनका हक अधिक है।

New Delhi, Jun 12 : लालूजी राजद के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं, रामचंद्र पूर्वे प्रदेश अध्यक्ष. मगर तेजस्वी और तेज प्रताप की राष्ट्रीय जनता दल में क्या हैसियत है, यह नहीं मालूम. ढूंढकर थक गया पर इंटरनेट पर कहीं जानकारी नहीं मिली. राजद के ऑफिशियल वेबसाइट पर तो यह जानकारी है ही नहीं. राजद की कार्यकारिणी जब गठित होती है तो खबर में सिर्फ यही बात आ पाती है कि शाहबुद्दीन कार्यकारिणी में हैं, शहाबुद्दीन के बदले उनकी पत्नी हिना शहाब को कार्यकारिणी में रखा गया है. बांकी कौन लोग किस पद पर हैं, यह पता नहीं चल पाता.

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तेजस्वी लीडर ऑफ अपोजीशन हैं, डिप्टी सीएम रह चुके हैं. तेज प्रताप स्वास्थ्य मंत्री रह चुके हैं. यानी हर लिहाज से पार्टी में तेजस्वी तेज प्रताप से सीनियर हैं. पूर्वे जी भी होंगे. वरिष्ठ भी हैं और प्रदेश अध्यक्ष तो हैं ही. मगर इन दिनों पूर्वे जी दोनों भाइयों के बीच फुटबॉल बने हैं. तेज प्रताप मीडिया को बता रहे हैं कि पूर्वे जी उनकी बात नहीं सुनते, नहीं मानते. तेजस्वी कहते हैं, ऐसी कोई बात नहीं है, कुछ गलतफहमी है.
पारिवारिक दलों में यही होता है. परिवार के लोग पार्टी के मालिक होते हैं, बांकी लोग स्टॉफ. इसलिए तेज प्रताप चाहते हैं कि पूर्वे जी जितना तेजस्वी की बात सुनते हैं, उतना ही उनकी बात भी सुनें. तेज प्रताप बड़े भाई हैं, इसलिए उनका हक अधिक है. वे मानते हैं, बड़े होने की वजह से उनका पार्टी नेता बनने का स्वाभाविक हक था, मगर उन्होंने कुरबानी दी. उन्हें उनका हक नहीं मिला. हां, गम छुपाने के लिए कहते हैं कि वे कृष्ण हैं और तेजस्वी अर्जुन. आज लालू जी के जन्मदिन में वे विवाद को खत्म करने के लिए अपनी कार पर तेजस्वी को बिठाकर निकले और मीडिया से कहा कि देखिये, वे सारथी हैं. कृष्ण हैं.

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मगर तेज प्रताप के मन में धृतराष्ट्र वाला दंश है. बड़े भाई होने की वजह से डिप्टी सीएम और लीडर ऑफ अपोजीशन पद पर उनका हक था. तेज प्रताप के गुस्से पर तेजस्वी भी नरम पड़ जाते हैं. लालू और राबड़ी भी कुछ नहीं कहते. पार्टी के ज्ञानी पुरुष रघुवंश बाबू, जगदा बाबू, मनोज झा वगैरह भी कुछ नहीं करते. क्योंकि यह परिवार का मामला है. परिवार पार्टी से परे ही नहीं, ऊपर भी है.
राजद के आधिकारिक वेबसाइट पर जाइयेगा तो ही दिखेगा कि पहले परिवार फिर पार्टी. अबाउट वाले कॉलम में पहला नंबर लालू जी का है, दूसरा राबड़ी जी का, तीसरा तेजस्वी जी का और चौथा तेज प्रताप जी का. इसके बाद अबाउट पार्टी, आइडियोलॉजी, कंस्टीच्यूशन वगैरह-वगैरह.

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हमलोग इन मसलों पर सवाल नहीं करते. वे समझदार लोग भी नहीं करते, जो हर मामले में भाजपा और मोदी की, संघ की खिंचाई करते हैं, मीन-मेख निकालते हैं. वे भी नहीं जो सामाजिक न्याय की लड़ाई के वैचारिक अगुआ हैं. हमें राजद में आंतरिक लोकतंत्र के मसले पर क्यों चु्प रहना चाहिए. यह तो लोकतंत्र का तमाशा है, बताशा है. वहां बताशा छन रहा है. आप कैसे ऐसे लोगों से बेहतर लोकतंत्र की उम्मीद करते हैं, जो परिवार में इस बात के लिए लड़ रहे हैं कि वे बड़े हैं, मगर पार्टी का बिहार अध्यक्ष उनका हुकुम नहीं मानता. ठीक उसी तरह जैसे राहुल और प्रियंका यूपीए के दौर में लड़ने लगते कि मनमोहन सिंह उनकी बात नहीं सुनते. जैसे राहुल ने मनमोहन सिंह का अध्यादेश फाड़ कर फेंक दिया था.
मैंने कल लिखा था कि विकल्प बेहतर होना चाहिए, तो कई लोग कूट करने लगे. मगर ऐसे लोगों के भरोसे आप कैसे बेहतरी की उम्मीद रख सकते हैं. यह एक बड़ा सवाल है. इसकी अनदेखी कर आप कुछ नहीं कर सकते. बदलाव तो बिल्कुल नहीं. हां, वोटों का गणित बिठाकर सामने वाले को पराजित जरूर कर सकते हैं, मगर वह बदलाव नहीं होगा.

(वरिष्ठ पत्रकार पुष्य मित्र के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)