‘अगर मोदी सरकार कश्मीर समस्या को हल नहीं कर पाई तो ये फिर किसी के बूते की नहीं है’

कश्मीर : ज़रूरी है कि सेना की पृष्ठभूमि के किसी सख्त व्यक्ति को नया गवर्नर बना कर आतंकवादियों की कमर ही नहीं तोड़ी जाए बल्कि उन्हें सीधे कब्रिस्तान में ही जगह दी जाए ।

New Delhi, Jun 19 : कश्मीर में महबूबा सरकार से भाजपा की समर्थन वापसी देर से लिया गया, सही फ़ैसला है । महबूबा की नित बढ़ती मनबढ़ई के चलते इस की भूमिका तो कठुआ मामले के समय ही बन गई थी। लेकिन कठुआ मामला यह फ़ैसला लेने के लिए एक कच्चा मामला था। पत्थरबाजों से हमदर्दी और सेना के खिलाफ एफ आई आर की हद हो गई थी। रमजान में सीजफायर के दौरान सेना के जवान औरंगजेब और पत्रकार सुजात बुखारी की हत्या ने महबूबा को हाशिए पर डाल दिया ।

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अब राष्ट्रपति शासन तो वहां लगना तय ही है । 25 जून को खत्म हो रहा राज्यपाल वोहरा का कार्यकाल अभी भले बढ़ा दिया गया है लेकिन ज़रूरी है कि सेना की पृष्ठभूमि के किसी सख्त व्यक्ति को नया गवर्नर बना कर आतंकवादियों की कमर ही नहीं तोड़ी जाए बल्कि उन्हें सीधे कब्रिस्तान में ही जगह दी जाए ।

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सेना को खुली छूट दे कर पूरे कश्मीर को तीन-चार साल सेना के हवाले रखा जाए । सारा मानवाधिकार और सेक्यूलरिज्म , फेक्यूलरिज्म मुल्तवी कर सीधे घर में घुस कर आतंकवादियों को खत्म कर दिया जाए । पत्थरबाजों और पाकिस्तानी झंडा लहराने वालों को देखते ही गोली मार दिया जाए । धारा 370 समाप्त कर देश की मुख्यधारा में लाया जाए कश्मीर को और उसे फिर से स्वर्ग बनाया जाए ।

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लेकिन स्वर्ग बनाने के पहले कश्मीर के नर्क को नेस्तनाबूद करना बेहद ज़रूरी है । तय मानिए कि अगर मोदी सरकार कश्मीर समस्या को हल नहीं कर पाई तो फिर आगे किसी भी सरकार में यह बूता नहीं होगा । इस लिए भी कि कश्मीर में भारत के लिए अब सिर्फ़ करो या मरो का रास्ता ही शेष रह गया है ।

(वरिष्ठ पत्रकार दयानंद पांडेय के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)