‘कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है जिसे अलग करने का सोचना ही गुनाह है’

घाटी के ज़्यादातर लोग आज़ादी चाहते हैं लेकिन वो उन्हे कभी नहीं मिल सकती क्योंकि भारत, पाकिस्तान, चीन, रूस और अफगानिस्तान कोई भी नहीं चाहता कि कश्मीर अलग देश बने।

New Delhi, Jun 26 : ये पोस्ट उन मित्रों के लिए है जो कश्मीर के बारे में जानते हैं या जानना चाहते हैं। अगर आज जम्मू कश्मीर में ये जनमतसंग्रह कराया जाये, मै यह नहीं कह रहा कि कराया जाना चाहिए- बिलकुल भी नहीं कराया जाना चाहिए , इसका सवाल ही नहीं पैदा होता – लेकिन अगर ये वोट लिया जाये कि वहां के नागरिक भारतीय बने रहना चाहते हैं या स्वाधीन कश्मीर के नागरिक बनना चाहते हैं तो बताइये इस जनमत संग्रह का नतीजा क्या होगा. जम्मू का मुझे मालूम है ९९ प्रतिशत से ज़्यादा लोग भारतीय बने रहना पसंद करेंगे. लद्दाख मे भी ये तै मानिये की ९५ प्रतिशत से ज़्यादा भारत्तीय बने रहना चाहेंगें. कश्मीर घाटी मे क्या होगा- ये आप सोचिये और चाहें तो बताइये.

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जनरल मुशर्रफ और सैफउद्दीन सोज़ ने क्या कहा उस पर कतई मत जाइये. उनमे से एक पाकिस्तानी है और दूसरा ‘देशद्रोही’ – दोनों कह रहे हैं Jammu And Kashmirघाटी के ज़्यादातर लोग आज़ादी चाहते हैं लेकिन वो उन्हे कभी नहीं मिल सकती क्योंकि भारत, पाकिस्तान, चीन, रूस और अफगानिस्तान कोई भी नहीं चाहता कि कश्मीर अलग देश बने.

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इसलिए शांति स्थापना के लिए कोई और रास्ता ढूंढना होगा. दोनों का कहना है कि स्वाधीन कश्मीर तो कभी बन ही नहीं सकता, वो कोई ऑप्शन ही नहीं है. पर आप इन दोनों की बात बिलकुल मत मानिये. आप तो अपने अनुभव और ज्ञान के आधार पर सोचिये कि अगर जनमतसंग्रह हुआ तो घाटी के लोग क्या कहेंगे.

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जनमतसंग्रह कभी नहीं होना है, होना भी नहीं चाहिए- ये ऑप्शन है ही नहीं क्योंकि कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है जिसे अलग करने का सोचना ही गुनाह है. लेकिन वहां पाकिस्तान की एजेंसियों ने अशांति फैला रखी है उससे निपटने के लिए ये तो मालूम होना ही चाहिए न कि वहां के लोग क्या सोच रहे हैं. वरना सही रणनीति कैसे बनेगी. आतंकियों और पत्थरबाजों से तो हमारे जांबाज़ सुरक्षाकर्मी निपट ही लेंगे. लेकिन घाटी में रह रहा आम कश्मीरी, उसके दिमाग में क्या चल रहा है ये भी तो मालूम रहना चाहिए की नहीं. ऐसे में अगर हमारे रणनीतिकारों में से कोई ईमानदारी के साथ इस नतीजे पर पहुंचे कि घाटी के ज़्यादातर लोग तो आज़ादी वाला ऑप्शन चाहेंगे इसलिए इस बात को ध्यान में रखकर ही हमें रणनीति बनानी चाहिए तो ऐसी सोच वाले रणनीतिकार को आप क्या कहेंगे – देशद्रोही?

(वरिष्ठ पत्रकार प्रभात डबराल के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)