‘धारा 370 के लिये 56 इंच से काम नहीं चलेगा, ज्यादा बड़ा जिगरा चाहिये’

धारा ३७० है क्या और ये कैसे कश्मीर को विशेष दर्ज़ा दिलाती है, आज इस पर बात कर लेते हैं कि इसे ख़त्म किया भी जा सकता है या नहीं और किया जा सकता है तो कैसे ?

New Delhi, Jun 26 : जब से बीजेपी ने कश्मीर में चार साल राज़ करने के बाद महबूबा मुफ़्ती का दामन छोड़ा है, पूरे देश में ये चर्चा होने लगी है, बल्कि साफ़ साफ़ कहे तो ये उम्मीद बंधने लगी है कि अब तो धारा ३७० बस ख़त्म हुई ही समझो. आखिरकार मोदी जी ने २०१४ में अपने चुनाव अभियान की शुरुआत जम्मू की ही जनसभा से तो की थी और अपनी पार्टी के संस्थापक श्यामा प्रसाद मुख़र्जी की शहादत का हवाला देते होते हुए घोषणा की थी जम्मू कश्मीर का विशेष दर्ज़ा देने वाली धारा ३७० को समाप्त कर दिया जाएगा.

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इसलिए आज ३७० के बारे में दो चार बातें कर लेते हैं. धारा ३७० है क्या और ये कैसे कश्मीर को विशेष दर्ज़ा दिलाती है, इस पर चर्चा फिर कभी. आज इस पर बात कर लेते हैं कि इसे ख़त्म किया भी जा सकता है या नहीं और किया जा सकता है तो कैसे.धारा ३७० को संविधान के उस भाग में रखा गया है जिसमे संविधान के अस्थायी प्रावधान रखे गए. यानी ये धारा वैसे भी अस्थायी मानी गयी थी और इसे तो बदला ही जाना था. यही नहीं इस धारा में एक उपबंध ये भी स्पष्ट रूप से रखा गया था (धारा ३७०-६) कि भारत के राष्ट्रपति के आदेश से इस धारा क़ी बाकी व्यवस्थाओं को बदला जा सकता है बशर्ते कि जम्मू कश्मीर की संविधान सभा उससे सहमत हो.

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( अगर कश्मीर के बारे में आपका ज्ञान अफवाह-तंत्र का मोहताज़ नहीं रहा है तो आपको पता होना चाहिए कि सिर्फ जम्मू कश्मीर ही नहीं बल्कि भारत में शामिल होने वाले हरेक रजवाड़े से कहा गया था कि वे भी अपनी अपनी संविधान सभाएं बना लें और अपना संविधान बनाएं जो केंद्रीय संविधान सभा द्वारा बनाये जा रहे संविधान के मातहत काम करेगा. कश्मीर के अलावा त्रावणकोर और दो अन्य रियासतों ने संविधान सभाओं का गठन कर भी लिया था पर उन्होंने संविधान नहीं बनाया. कश्मीर ने संविधान बनाया. और हाँ, इस संविधान की प्रस्तावना में भी जम्मू कश्मीर को भारतीय संघ का अविभाज्य अंग बताया गया है. यहाँ पर थोड़ा सा ये भी ध्यान रख लें कि राज्यों का अलग संविधान कोई नयी या विस्फोटक बात नहीं है. अमेरिका के हर राज्य का अपना अलग संविधान है.)

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चलिए धारा ३७० पर लौटते हैं. अगर ये धारा अस्थायी है और धारा में ही राष्ट्रपति के आदेश से इसकी व्यवस्थाओं को बदलने का प्राविधान है तो समस्या कहाँ है. समस्या ये है कि राष्ट्रपति के आदेश से परिवर्तन की सहूलियत देते हुए संविधान ने ये पाबन्दी भी लगा राखी है कि राष्ट्रपति के ऐसे आदेश को जम्मू कश्मीर की संविधान सभा से सहमति लेनी होगी. लेकिन संविधान सभा तो कबकी भंग की जा चुकी है. मोदी जी के आने के बाद २०१५ में जम्मू कश्मीर हाई कोर्ट ने ये फैसला भी दे दिया कि अब क्योंकि संविधान सभा है ही नहीं इसलिए राष्ट्रपति के आदेश से ३७० को नहीं बदला जा सकता. सुप्रीम कोर्ट ने भी हाई कोर्ट के इस फैसले को सही माना. कई लोग मानते हैं की सरकार ने ये केस सही तरह से नहीं लड़ा. आखिरकार जम्मू कश्मीर में सदर -ए-रियासत को राज्यपाल और प्रधानमंत्री को मुख्यमंत्री बनाने का फैसला भी तो १९६५ में लिया गया था. तब तक राज्य की संविधान सभा भंग हो चुकी थी. पर वो एक अलग मसला है. मुद्दे की बात ये है कि ३७० अब अस्थायी प्रावधान नहीं रहा. अब ये भी संविधान की अन्य धाराओं की तरह एक धारा है और इसे बदलने के उन्ही सब प्रक्रियाओं से गुज़रना होगा. गरज़ ये कि दोनों सदनों में दो तिहाई बहुमत की दरकार होगी जो है नहीं. बस एक रास्ता है – अध्यादेश. इसके लिए ५६ इंच से काम नहीं चलेगा. ज़्यादा बड़ा ज़िगरा चाहिए.

(वरिष्ठ पत्रकार प्रभात डबराल के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)