इमरजेंसी : ‘फिरकापरस्त-तानाशाह’ जगह-जगह आज ‘तानाशाही’ की निंदा करती तकरीर करते नजर आ रहे हैं!

इमरजेंसी : ‘फिरकापरस्त-तानाशाह’ जगह-जगह आज ‘तानाशाही’ की निंदा करती तकरीर करते नजर आ रहे हैं! विचित्रताओं से भरे भारत में ही यह संभव है!

New Delhi, Jun 26 : देश के हर लोकतंत्रवादी ने इंदिरा गांधी की तानाशाही का विरोध किया था! कुछेक थे, जो माफी मांगने या सफाई देती मुद्रा में भी दिखे थे। कुछ खामोश रह गये! कुछ ने अपनी स्थिति के मुताबिक इमरजेंसी-विरोधी सीमित अभियान का समर्थन किया! पर यह भी सच है कि उस समय जितना दमन हुआ, उसके मुकाबले कोई बड़ा आंदोलन नहीं हुआ था! इसीलिए उसे ‘आजादी की दूसरी लड़ाई’ कहना मुझे अटपटा लगता है! ज्यादातर विपक्षी नेता तो एक-दो दिन के अंदर ही किसी प्रतिरोध-आंदोलन के बगैर गिरफ्तार हो गये।

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हां, यह सच है कि इमरजेंसी में दमन उत्पीड़न तेज हो गया। अनेक जगहों पर गरीब उजाड़े गये। पुलिस और अन्य सरकारी सेवाओं के लोगों ने अपनी कामयाबी साबित करने के लिए जनता पर बेइंतहां जुल्म ढाया!

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केरल के प्रखर वामपंथी युवा कार्यकर्ता और इंजीनियरिंग के प्रतिभाशाली छात्र राजन सहित जन आंदोलनों के कई युवा कार्यकर्ता बिहार, बंगाल और आंध्र आदि में मारे गये थे। कर्नाटक की मशहूर अभिनेत्री और सामाजिक कार्यकर्ता स्नेहलता रेड्डी जेल यातना के बाद इस कदर बीमार पड़ीं कि उनकी मौत हो गई!

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यह तो हुई अतीत की बात!
पर आज का परिदृश्य कैसा दिलचस्प, किन्तु विडम्बना पूर्ण है!
‘फिरकापरस्त-तानाशाह’ जगह-जगह आज ‘तानाशाही’ की निंदा करती तकरीर करते नजर आ रहे हैं! विचित्रताओं से भरे भारत में ही यह संभव है!
क्यों साथी गौरी लंकेश, रोहित वेमुला (जिनकी आत्महत्या किसी नृशंस हत्या से कम नहीं थी), अखलाक, जुनेद, कासिम सहित सैकड़ों मार डाले गये बेगुनाह लोग ( हेट क्राइम, माब लिंचिंग और फर्जी मुठभेड़ों में) और जेल में पड़े साथी चंद्रशेखर रावण !

(वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)