संसद के इस सत्र को सफल करें

संसद के इस सत्र में छह अध्यादेशों पर मुहर लगनी है, तीन तलाक और पिछड़े वर्ग संबंधी महत्वपूर्ण विधेयक भी कानून बनने हैं।

New Delhi, Jul 18 : संसद का मानसून सत्र अब शुरु हो रहा है। हो सकता है कि यह संसद का अंतिम सत्र सिद्ध हो, क्योंकि आम चुनाव जल्दी कराए जाने की खबर आजकल जोरों पर है। आशंका यही है कि पिछले सत्र की तरह यह सत्र भी कहीं बाँझ ही सिद्ध न हो। पिछले सत्र में दोनों सदनों में मुश्किल से 20-30 प्रतिशत ही काम हुआ। राष्ट्रीय महत्व के मुद्दों पर न तो सार्थक बहस हुई और न ही कई महत्वपूर्ण विधेयक कानून बन पाए।

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दोनों सदनों के सत्र हंगामे और बहिष्कार की बलि चढ़ गए। इस सत्र को बेहतर बनाने की अपील सत्तारुढ़ दल और विरोधी दल भी कर रहे हैं लेकिन दोनों ही एक दूसरे की टांग-खिंचाई से बाज नहीं आ रहे हैं। Parliament12यदि कांग्रेस का आरोप भाजपा पर यह है कि वह संसद में महिला-आरक्षण का कानून तो बनाती नहीं है और तीन तलाक विरोधी कानून के जरिए मुस्लिम महिलाओं को पटाने में लगी हुई है तो भाजपा का आरोप है कि कांग्रेस मुस्लिम बुद्धिजीवियों के जरिए मुसलमान मर्दों को पटाने में लगी हुई है।

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एक जमाना था जबकि जनसंघ और भाजपा को मुस्लिम-विरोधी कहा जाता था। अब कांग्रेस को हिंदू-विरोधी कहा जा रहा है। इसके अलावा राज्यसभा के उप-सभापति के चुनाव को लेकर भी सत्तारुढ़ और विरोधी दलों में दांव-पेंच चल रहे हैं। कश्मीर, किसान-मांगें, रोजगार, मंहगाई, सांप्रदायिक हत्याएं, बैंकों से हुई लूट-पाट आदि मुद्दों पर सांसदगण एक-दूसरे की लू उतारने में कोई कसर नहीं उठा रखेंगे। उन्हें इस बात का भी डर नहीं है कि उनकी सारी धींगामस्ती आजकल करोड़ों नागरिकों को टीवी चैनलों पर भी दिखाई पड़ती है।

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संसद के इस सत्र में छह अध्यादेशों पर मुहर लगनी है, तीन तलाक और पिछड़े वर्ग संबंधी महत्वपूर्ण विधेयक भी कानून बनने हैं। यदि यह सत्र सिर्फ महिलाओं को संसद में 33 प्रतिशत आरक्षण देने का सिर्फ कानून ही पास कर दे तो इसे मैं सफल सत्र कह दूंगा। पाकिस्तान ने इस चुनाव में 5 प्रतिशत सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित की हैं। भारत के दोनों सदनों में क्रमशः 66 और 28 महिलाएं हैं। याने लगभग 11-12 प्रतिशत। इन्हें तीन गुना करें, उसके पहले सभी दल अपने-अपने संगठनों में कम से कम 20 प्रतिशत पदों पर तो महिलाओं को प्रतिष्ठित कर दें। 1996 से चला यह मामला अभी तक अधर में लटका हुआ है।

(वरिष्ठ पत्रकार डॉ. वेद प्रताप वैदिक के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)