‘राहुल का आत्मसमर्पण तो बाघ बहादुर की नियति की तरह ही लगता है’

कल रात जब कांग्रेस ने यह घोषणा कर दी कि राहुल गांधी प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी नही होंगे तो बाघ बहादुर याद आ गया ।

New Delhi, Jul 26 : बंगाल के गांवों पहले एक लोक नाटक हुआ करता था। कलाकर पूरे शरीर को बाघ के चमड़े की तरह रंग लेता था और चेहरे पर बाघ का मुखौटा पहनकर नाचता – खेलता और लोगों का मनोरंजन किया करता था। इन कलाकारों की जबरदस्त मांग हुआ करती थी । उनकी कमाई अच्छी खासी तो हो ही जाती थी उनकी इज्जत भी खूब होती थी। कई कलाकार तो केवल इज्जत के लिए इस कला को जिंदा रखे हुए थे।

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इसी पर एक फ़िल्म बाघ बहादुर के नाम से बनी है । बाघ बहादुर के दिन अच्छे से गुजर रहे थे वह अपनी प्रेमिका को लेकर तमाम सपने संजोए हुए था कि एक दिन गांव में सचमुच का बाघ लेकर एक व्यक्ति पहुच गया ।उसके आने के बाद सारी भीड़ असली बाघ की ओर चली गयी ।बाघ बहादुर बेहद अपमानित महसूस करने लगा । प्रेमिका भी बाघ मालिक की ओर लपक गयी। अब तो बाघ बहादुर को अपमान का घूंट और कड़वा हो गया । उसने भीड़ में घोषणा की कि वह असल बाघ से लड़कर यह बता देगा कि किसमे अधिक ताक़त है । यह उसकी हताशा और बौखलाहट थी कि अपने अपमान का बदला लेने के लिए अपनी जान भी कुर्बान करने को तैयार हो गया । आखिरकार बाघ के पिंजड़े में बाघ बहादुर घुसा और बाघ ने उसकी जान ले ली ।

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कल रात जब कांग्रेस ने यह घोषणा कर दी कि राहुल गांधी प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी नही होंगे तो बाघ बहादुर याद आ गया । यह कांग्रेस के लिए लगभग सुसाइडल कदम है। मायावती ,ममता , अखिलेश ,शरद पवार जैसे लोगो के लिए वे अपनी उम्मीदवारी छोड़ रहे हैं। साफ लग रहा है कि राहुल को असली बाघ का सामना करना पड़ रहा है।

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मोदी के आने से पहले राहुल के लिए मैदान साफ था। लेकिन मोदी की लोकप्रियता को देखते हुए उनकी बेचैनी बढ़ती गयी ।अब चुनाव नजदीक है तो गले मिलना या आंख मारना उनकी बेचैनी को ही जाहिर करता है। हालत यहाँ तक आ गयी कि उन्होंने खुद को पप्पू कहलाना भी स्वीकार कर लिया । और अब पी एम प्रत्याशी का पद छोड़ने की घोषणा एकदम से आत्मघाती कदम ही है । लोकतंत्र में विपक्ष का नही होना खतरनाक है लेकिन बाघ बहादुर तो केवल बाघ की हैसियत के खिलाफ लड़ रहा है। सम्भव है कि पिंजरे में बंद बाघ की ताकत कम भी हुई हो यानी सत्ता में आने के बाद मोदी के खिलाफ एन्टी इनकम्बेंसी भी मैटर करता हो लेकिन राहुल का आत्मसमर्पण तो बाघ बहादुर की नियति की तरह ही लगता है ।

(वरिष्ठ पत्रकार योगेश किसलय के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)