सत्ता की ताकत से किसी का नाम बदला जा सकता है, लेकिन जरुरी नहीं लोग उसे मंजूर करें !

वे समाज, इतिहास और भूगोल को भी अपने घर की चारदीवारी या दीवार समझने की भूल कर रहे हैं, जिस पर अपनी मर्जी से कभी कोई भी रंग चढ़ाया जा सकता है!

New Delhi, Jul 31 : सत्ता की ताकत से किसी नगर, किसी शहर या रोड का नाम बदला जा सकता है! लेकिन कोई जरूरी नहीं कि उन सभी नये नामों को स्थानीय लोग दिल से मंजूर करें! मैं यहां किसी व्यक्ति या नेता की लोकप्रियता की बात नहीं कर रहा! मैं तो सिर्फ वह जमीनी सच्चाई बता रहा हूं, जिसे हमारा मौजूदा निज़ाम और उनके अति-उत्साही हुक्मरान इतिहास और भूगोल पर अपना खास रंग चढ़ाने की जल्दबाजी में समझने की कोशिश नहीं कर रहे!

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शायद वे समाज, इतिहास और भूगोल को भी अपने घर की चारदीवारी या दीवार समझने की भूल कर रहे हैं, जिस पर अपनी मर्जी से कभी कोई भी रंग चढ़ाया जा सकता है!
इस वक्त मैं पूर्वी उत्तर प्रदेश के भारत विख्यात कस्बे मुगलसराय से होकर गुजर रहा हूं! सदियों से जो नाम चला आ रहा था, उस नाम को हमारी सरकार ने अचानक बदल दिया। कस्बे के लोगों से इस बाबत किसी तरह का विचार विमर्श नहीं हुआ। काफी वक्त बीत गया, अब यह आधिकारिक स्तर पर ‘पंडित दीनदयाल उपाध्याय नगर’ है! यहां के रेलवे स्टेशन का नाम भी मुगलसराय से पंडित दीनदयाल उपाध्याय नगर जंक्शन कर दिया गया है! शासन की तरफ से सड़क और शहर में हर जगह नये नाम की बड़ी बड़ी पट्टियां लगी हुई हैं। पर यहां आज भी हरेक के मुंह से मैं कस्बे और स्टेशन के नाम पर ‘मुगलसराय’ ही सुन रहा हूं! सत्ता और शासन की मंशा और कोशिश को नजरंदाज कर रहे हैं लोग! उनके लिए यह अब भी मुगलसराय ही है! दुकानों, मकानों, दफ्तरों और सड़कों पर हर जगह यही नाम चल रहा है!

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न जाने कब से यह नाम जन-जन की जुबां पर है। किस ने इसका नामकरण किया और क्यों किया, किसी एक व्यक्ति या शासक ने किया या आम जन के बीच से उभरा यह नाम; इस बारे में कोई भी प्रमाणिक जानकारी नहीं है! पर लगता यही है, मुगलसराय नाम सदियों से है। मेरा गांव यहां से कुछ किमी दूर गाजीपुर(पता नहीं, कोई इसका नाम भी बदल डाले!) जिले में पड़ता है।

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पैदाइश इसी इलाके की है, बचपन इधर ही बीता। इसलिए आज जब वाराणसी एयरपोर्ट उतरकर आगे की यात्रा के लिए जीटी रोड की तरफ चला तो इस कस्बे से गुजरते हुए यादों के कई गलियारे खुलते गये! आखिर मेरे दिलो-दिमाग से भला कोई कैसे उतार लेगा मुगलसराय को! मुगलसराय जिंदाबाद!

(वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)