आरक्षण हटाओः आरक्षण बढ़ाओ !

आरक्षण : योग्यता के अलावा यदि आप किसी भी अन्य आधार को मानेंगे तो वह अन्याय, अकर्मण्यता, भ्रष्टाचार और शिथिलता को बढ़ाएगा।

New Delhi, Aug 07 : भाजपा के पूर्व अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री श्री नितिन गडकरी की हिम्मत की मैं दाद देता हूं। उन्होंने आरक्षण के बारे में वही बात कह दी, जो मैं अकेला पिछले 20-25 साल से कह रहा हूं। जातिवादी आधार पर सरकारी नौकरियों में दलितों और पिछड़ों को आरक्षण देने का मैं स्वयं अंध-समर्थक था। डाॅ. राममनोहर लोहिया की आवाज़ में आवाज मिलाकर हम नौजवान आज से 50-55 साल पहले कहा करते थे- ‘‘संसोपा ने बांधी गांठ। पिछड़े पावें सौ में साठ।।’’

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लेकिन अब जन्मना आरक्षण का बांझपन देखकर मैं इस नतीजे पर पहुंचा हूं कि जहां तक सरकारी या गैर-सरकारी नौकरियों का सवाल है, आरक्षण किसी भी आधार पर नहीं दिया जाना चाहिए, वह जातिवादी आधार हो या आर्थिक आधार ! रोजगार या नौकरी का एकमात्र आधार हो, योग्यता। बस योग्यता !

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योग्यता के अलावा यदि आप किसी भी अन्य आधार को मानेंगे तो वह अन्याय, अकर्मण्यता, भ्रष्टाचार और शिथिलता को बढ़ाएगा। इसलिए अब संसद को कानून पास करके आरक्षण को बिल्कुल खत्म कर देना चाहिए याने आरक्षण हटाओ। लेकिन मैं अब आरक्षण बढ़ाओ का पक्ष लूंगा।

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कैसा आरक्षण ? शिक्षा में आरक्षण ! 50 प्रतिशत नहीं, 60 प्रतिशत ! वह जन्म के आधार पर नहीं, कर्म के आधार पर ! जो भी गरीब हो, वंचित हो, पिछड़ा हो, अशिक्षित हो, उसके बच्चों को शिक्षा-संस्थाओं में आरक्षण मिले। उसकी जात न पूछी जाए। आरक्षण का अर्थ सिर्फ कक्षा में प्रवेश ही नहीं, बल्कि मुफ्त शिक्षा, मुफ्त भोजन, मुफ्त वस्त्र और मुफ्त निवास भी। यदि वह व्यवस्था लागू हो जाए और इसे काम-धंधों के प्रशिक्षण पर भी लागू कर दिया जाए तो आज के ‘आरक्षित लोग’ आरक्षित नौकरियों की भीख पर लानत मार देंगे। वे अपने दम-खम पर आगे बढ़कर दिखाएंगे। समतामूलक समाज खड़ा हो जाएगा। दस साल में ही भारत का नक्शा बदल जाएगा। सैकड़ों सालों से चली आ रही सड़ी-गली जाति-व्यवस्था का समूल-नाश हो जाएगा।

(वरिष्ठ पत्रकार डॉ. वेद प्रताप वैदिक के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)