चीन में मुसलमानों की दुर्दशा

सिंक्यांग प्रांत तिब्बत की तरह सदियों तक चीनी कब्जे के बाहर रहा है और 20 वीं सदी में वहां चीन-विरोधी बगावतें होती रही हैं।

New Delhi, Aug 13 : संयुक्तराष्ट्र संघ की मानव अधिकार समिति ने चीन के मुसलमानों पर होनेवाले अत्याचारों के विरुद्ध जोरदार आवाज उठाई है। चीन के उइगर और हुइ मुसलमानों पर जिस तरह के अत्याचार हो रहे हैं, यदि उनकी सच्ची कहानी प्रकट हो जाए तो भारत के मुसलमानों को पता चलेगा कि चीन के मुसलमान गुलामों से भी बदतर जीवन जी रहे हैं। अभी ताजा रपट के अनुसार चीन के उइगर प्रांत में लगभग दस लाख मुसलमानों को जेल में बंद करके रखा हुआ है और 20 लाख को पकड़कर उल्टी पट्टी पढ़ाई जा रही है याने इस्लाम-विरोधी प्रशिक्षण दिया जा रहा है।

Advertisement

लगभग सवा करोड़ उइगर मुसलमान चीन के सिंक्यांग प्रांत में रहते हैं। इस प्रांत की राजधानी का नाम उरुमची है। इस प्रांत में यारकंद-जैसे इतिहास-प्रसिद्ध शहर हैं। यह चीन के पश्चिमी सीमांत पर गोबी रेगिस्तान के पार बसा हुआ है। इस प्रांत की सीमा भारत, पाकिस्तान, मंगोलिया और मध्य एशिया के देशों को स्पर्श करती है।

Advertisement

सिंक्यांग प्रांत तिब्बत की तरह सदियों तक चीनी कब्जे के बाहर रहा है और 20 वीं सदी में वहां चीन-विरोधी बगावतें होती रही हैं। इस प्रांत के कई शहरों में समय बिताने का अवसर मुझे मिला है। इसके निवासियों की शक्ल-सूरत, भाषा, भूषा, भोजन और भजन चीनी हान लोगों से एकदम अलग है। इस प्रांत में इतने हान चीनियों को बसा दिया गया है कि उइगर लोग अपने ही घर में अल्पसंख्यक बन गए हैं।

Advertisement

उन्हें सड़कों पर नमाज नहीं पढ़ने दी जाती है। यदि कोई उइगर सरकारी कर्मचारी हो तो उसे दाढ़ी नहीं रखने दी जाती है। टोपी नहीं पहनने दी जाती है। ईद पर भीड़ नहीं लगाने दी जाती है। बुर्के पर प्रतिबंध है। कुरान और इस्लामी साहित्य खुले-आम बेचने नहीं दिया जाता। उन्हें ऊंचे पद नहीं दिए जाते। कम्युनिस्ट पार्टी के अफसरों का शिकंजा सर्वत्र कसा रहता है। हर साल दंगों में सैकड़ों उइगर और चीनी मारे जाते हैं। उइगर मुसलमानों को राष्ट्र का दुश्मन माना जाता है। उन्हें आतंकवादी समझा जाता है। हुइ मुसलमानों के साथ चीनी सरकार थोड़ी नरम है, क्योंकि वे हान और मंगोल जातियों के मिश्रण से बने हैं। संयुक्तराष्ट्र संघ ने चीन पर वंशवादी और धर्म-विरोधी होने के दो आरोप एक साथ लगाए हैं। चीन के बौद्ध, मुसलमान और ईसाई दूसरे दर्जे के नागरिकों की तरह जीवन बिता रहे हैं।

(वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार डॉ. वेद प्रताप वैदिक के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)